आईवीएफ की सफलता दर को और बेहतर बनाएगी नई तकनीक

 आईवीएफ की सफलता दर को और बेहतर बनाएगी नई तकनीक

निःसंतान दंपत्तियों के लिए सहायक प्रजनन तकनीक आईवीएफ उम्मीद की एक किरण है, लेकिन इस तकनीक की सफलता की राह में कुछ चुनौतियां भी हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए वैज्ञानिकों ने एमपीटीएक्स (mPTX) या एमपीटैक्स नाम का एक लघु कार्बनिक अणु (स्मॉल आर्गेनिक मॉलिक्यूल) का डिजाइन तैयार किया है जो इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) प्रक्रिया की सफलता में अहम भूमिका निभाने वाले स्पर्म की क्षमताओं को बेहतर बनाती है। इसे भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) हैदराबाद में जैवप्रौद्योगिकी विभाग के डॉ. राजाकुमारा ईरप्पा के समूह, मेंगलूर विश्वविद्यालय के डॉ. जगदीश प्रसाद दासप्पा के समूह और मणिपाल एकेडमी ऑफ हायर एजुकेशन के प्रो. गुरुप्रसाद कल्थूर के समूह ने मिलकर विकसित किया है।

इन समूहों के अध्ययन ने यही स्थापित किया है कि एक पेंटोक्सिफाइलाइन डेरिवेटिव के रूप में एमपीटैक्स स्पर्म की आवाजाही या सक्रियता को बढ़ाने, वाइट्रो स्पर्म को लंबे समय तक अक्षुण्ण बनाए रखने और स्पर्म फर्टिलाइजेशन संभावनाओं को बढ़ाने में सहायक सिद्ध होता है। यह भी उल्लेखनीय है कि एमपीटैक्स के माध्यम से आगे बढ़ने वाली इस प्रक्रिया के दुष्प्रभाव नगण्य हैं। फिलहाल आईवीएफ तकनीक में फार्माकॉलोजिकल एजेंट के रूप में जिस पेंटोक्सिफाइलिन का इस्तेमाल किया जाता है, उसकी तुलना में अपेक्षाकृत कम संकेंद्रण वाला एमपीटैक्स शरीर पर कम दुष्प्रभाव दिखाता है। ऐसे में सहायक प्रजनन प्रक्रियाओं में जिन दवाओं का उपयोग किया जा रहा है उनके मुकाबले एमपीटैक्स को एक बेहतर विकल्प के रूप में देखा जा रहा है। 

आईआईटी हैदराबाद के निदेशक प्रो. बीएस मूर्ति कहते हैं, 'मातृत्व-पितृत्व के सुख को शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता। ऐसे में डॉ. राजकुमारा के नेतृत्व में हुई यह खोज निःसंतान दंपत्तियों के लिए खुशियों की सौगात लाएगी, क्योंकि इससे आईवीएफ में सफलता की संभावनाएं और बढ़ गई हैं। साथ ही यह खोज विभिन्न समूहों के साथ में काम करने के जबरदस्त प्रभाव को भी दर्शाती है।'

पुरुष शुक्राणुओं में गतिशीलता की कमी बांझपन की एक प्रमुख वजह मानी जाती है। गर्भधारण के लिए शुक्राणुओं का निषेचन स्थान तक पहुंचना आवश्यक होता है। माना जा रहा है कि यह नई तकनीक गर्भाधान और उसके आगे की प्रक्रियाओं को निर्विघ्न बनाने में सहायक सिद्ध होगी। 

विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसन्धान बोर्ड के द्वारा पोषित इस शोध अध्ययन कस निष्कर्ष ‘नेचर साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित किये गए हैं।