मूर्खता का कल्पना लोक
सुनते हैं कभी रामराज्य था। इसपर संदेह किए बगैर यह अनुमान लगाना ज़्यादा उचित होगा कि रामराज्य कितने बड़े भूभाग पर था। क्या यह अयोध्या तक सीमित था? उत्तर रामायण के अनुसार राम ने राजकाज संभालने के पश्चात अश्वमेध यज्ञ किया था जो कुछ अन्य राज्यों पर सफलता प्राप्त करते हुए ऋषि वाल्मीकि के आश्रम पर ठहर गया था। वहां उन्हीं के पुत्रों लव और कुश ने यज्ञ के अश्व को ही नहीं पकड़ा बल्कि पुरुषोत्तम राम की कथित नैतिकता भी पकड़ ली। इसके अलावा लंका और सुग्रीव का राज्य अयोध्या के उपनिवेश माने जा सकते हैं। वहां रामराज्य था या नहीं यह यह शोध का विषय हो सकता है।असुरक्षित वन क्षेत्रों को निर्भय कर देने की व्यवस्था रामराज्य की परिकल्पना है।जब से इतिहास लिखा जा रहा है और जब जब इतिहास दोहराया जाता है रामराज्य की मांग जोर पकड़ने लगती है। रामराज्य का स्वप्न दिखाकर कई सरकारें आईं और गईं। प्रजा जो नागरिक होने के भ्रम में जीती है, अपने शासक से राम होने की अपेक्षा करे न करे परंतु उससे राम के राज्य की आशा करती रहती है। रामराज्य क्या एक भ्रम है?रामराज्य वस्तुत: एक स्वप्न ही है जो बंद और खुली आंखों से हमेशा देखा जाता है और देखा जाता रहेगा।विपक्ष हमेशा सत्तापक्ष पर रामराज्य न लाने का आरोप लगाता है परंतु स्वयं रामराज्य के फेर में नहीं पड़ता। विपक्ष समेत सभी पक्षों को भली प्रकार पता है कि रामराज्य किसी भी दशा में लाया नहीं जा सकता है। इसके बाद भी रामराज्य की परिकल्पना और उसकी स्थापना के दावे किए जाते हैं और विरोधी पक्ष अपना हलक सुखा लेता है यह बताने में कि इनके फेर में नहीं आना ये रामराज्य कहीं से भी लेकर नहीं आ सकते हैं। रामराज्य में पुलिस व्यवस्था नहीं थी, अखिल भारतीय स्तर के भ्रष्ट अधिकारी नहीं थे,देश लूटने वाले व्यापारी और सत्य से बढ़कर झूठ बोलने वाले नेता नहीं थे।राजा स्वयं सर्वोच्च न्यायाधीश होता था और उसमें नैतिक भय,इहलोक-परलोक, यश-अपयश का भय भी रहता था।इन सबसे परे केवल सत्ता के आकांक्षी, सबसे निम्न मनुष्यत्व के साथ जीने वाले लोगों से रामराज्य की अपेक्षा प्रजा की घोर मूर्खता नहीं तो क्या है।