संपादकीय
उत्तर प्रदेश का चुनावी रोमांच अभी से आसमान छूने को बेताब है। अखिलेश यादव की अगुवाई में तेजी से उभरे गठबंधन और भारतीय जनता पार्टी के किले में सेंधमारी करके आए सियासी सूरमाओं ने अप्रत्याशित समीकरण रच दिए हैं। क्या उत्तर प्रदेश में मंडल बनाम कमंडल की पुरानी लड़ाई नए रूप-स्वरूप में लड़ी जाने वाली है?
लगता तो ऐसा ही है। प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बार-बार अयोध्या की यात्रा कर यही संदेश देने की कोशिश की कि राम नाम की पताका फहराने का कॉपीराइट सिर्फ भगवा दल के पास है। उनके वहां से चुनाव लड़ने की खबर भी उड़ी, पर न जाने क्यों, उनका इरादा बदल गया। वह अब गोरखपुर शहर से लड़ेंगे। उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने भी मथुरा की बात उठाकर धर्म और राजनीति के मिश्रण को नई रंगत देने की कोशिश की। इस राग को आगे चलकर मुख्यमंत्री ने भी स्वर दिए कि जब अयोध्या में भव्य मंदिर बन सकता है और काशी में विश्वनाथ कॉरिडोर, तो फिर भला मथुरा नगरी कैसे पीछे रह जाएगी? इससे कुछ पहले खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘विश्वनाथ धाम’ के नए स्वरूप का भव्य लोकार्पण किया था। संदेश स्पष्ट है। भारतीय जनता पार्टी धर्म और विकास की कॉकटेल के सहारे चुनावी समर को जीतने की जुगत करेगी।