कहानी जयललिता की: कैसे बनीं तमिलनाडु की सबसे बड़ी लीडर

कहानी जयललिता की: कैसे बनीं तमिलनाडु की सबसे बड़ी लीडर

जे जयललिता न नेता बनना चाहती थीं, न अभिनेता। वो एक धाकड़ वकील बनना चाहती थीं। लेकिन महज दो साल की उम्र में पिता का देहांत होने के बाद उनकी मां ने बैंगलोर में उन्हें दादा-दादी के पास छोड़दिया। जिसके बाद वो संध्या नाम से तमिल फिल्मों में एक्टिंग करने लगी।

शुरुआती सफर

जे जयललिता न नेता बनना चाहती थीं, न अभिनेता। वो एक धाकड़ वकील बनना चाहती थीं। लेकिन महज दो साल की उम्र में पिता का देहांत होने के बाद उनकी मां ने बैंगलोर में उन्हें दादा-दादी के पास छोड़दिया। जिसके बाद वो संध्या नाम से तमिल फिल्मों में एक्टिंग करने लगी। यललिता और एमजी रामचंद्रन की जोड़ी तमिल फिल्मों की सबसे हिट जोड़ी रही। एमजी रामचंद्रन तमिल फिल्मों के सुपरस्टार थे। 1930 के दशक से 1984 तक उन्होंने तमिल फिल्मों में काम किया। जब एमजी रामचंद्रन फिल्मों से राजनीति में आए तो वो जयललिता को भी अपने साथ ले आए। एमजीआर ने ही एआईएडीएमके का गठन किया था। 1982 में जयललिता ने एआईएडीएमके की सदस्यता ग्रहण की थी। उन्होंने पहला चुनाव तिरुचेंदुर सीट से जीता था। जिसके बाद से उन्होंने पलटकर कभी पीछे नहीं देखा। तमिलनाडु की राजनीति में 1977 से 1988 तक लगातार 11 साल की अवधि में दो बार मुख्यमंत्री बनने का गौरव सिर्फ एमजीआर को हासिल रहा लेकिन 26 साल बाद उनकी राजनीतिक वारिश ने ये कारनामा कर दिखाया था।

25 मार्च 1989 की घटना

कई बार जिंदगी में हुई घटना बहुत कुछ बदलकर रख देती है। कई बार इतिहास की घटनाएं ऐसी होती हैं जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। 25 मार्च 1989 को भी कुछ ऐसी ही हुई था जिसने तमिलनाडु की राजनीतिक सियासत को बदल कर रख दिया और इसके साथ ही एक ऐसी महिला नेता को जन्म दिया जो तमिल सियासत की लेडी सिंघम बनकर दशकों तक राज करती रहीं।  वर्ष 1989 का विधानसभा चुनाव जिसमें जयललिता गुट के 27 विधायकों ने जीत दर्ज की और वो विपक्ष की नेता बन गईं। लेकिन 25 मार्च 1989 को तमिलनाडु की विधानसभा में जो कुछ भी हुआ उसने लोगों में जयललिता के प्रति सहानुभूति बढ़ा दी और तमिलानाडु का राजनीतिक इतिहास भी बदल कर रख दिया। 1989 की 25 मार्च को तमिलनाडु विधानसभा में बजट पेश किया जा रहा था। जयललिता की पार्टी एआईएडीएमके ने हाल के ही विधानसभा चुनाव में 27 सीटें जीती थीं और तमिलनाडु की विधानसभा को विपक्ष में एक महिला नेता मिली थी। उस वक्त डीएमके सरकार में थी और मुख्यमंत्री थे एम करुणानिधी। सदन में जैसे ही बजट भाषण पढ़ा जाना शुरू हुआ जयललिता और उनकी पार्टी के नेताओं ने विधानसभा में हंगामा शुरू कर दिया। हंगामा इतना बढ़ा कि एआईएडीएमके के किसी नेता ने करुणानिधी की तरफ फाइल फेंकी जिससे उनका चश्मा गिरकर टूट गया। जययलिता ने जब देखा कि हंगामा ज्यादा बढ़ रहा है तो वो सदन से बाहर जाने लगी। तभी मंत्री दुरई मुरगन आ गए और उन्होंने जयललिता को बाहर जाने से रोका और उनकी साड़ी खींची जिससे उनकी साड़ी फट गई और वो खुद भी जमीन पर गिर गईं। सत्ता पक्ष यानी डीएमके और विपक्ष यानी एआईएडीएमके के सदस्यों के बीच विधानसभा में हाथा-पाई हुई। अपनी फटी हुई साड़ी के साथ जयललिता विधानसभा से बाहर आ गईं। यही वो दिन था जब जयललिता ने सदन से निकलते हुए कहा था कि वो मुख्यमंत्री बनकर ही इस सदन में वापस आएंगी वरना कभी नहीं आएंगी। वर्ष 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद चुनाव में कांग्रेस से समझौता किया। दोनों दलों को तमिलनाडु के चुनाव में 234 में 225 पर जीत मिली। जिसके बाद जयललिता तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बन गईं।

जब तपते रेगिस्तान में एमजीआर ने जयललिता को गोद में उठाया

जयललिता और एमजीआर की उम्र में 31 साल का फर्क था। लेकिन एमजीआर जयललिता के लिए सबकुछ थे। एक बार राजस्थान के रेगिस्तान में एमजीआर और जयललिता की फिल्म की शूटिंग चल रही थी। फिल्म के एक गाने में जयललिता को नंगे पांव डांस करना था। उस गर्म रेत पर जयललिता के लिए चलना भी मुश्किल हो रहा था। यह देखकर एमजीआर ने उन्हें अपनी गोद में उठा लिया था। उस जमाने में जयललिता और एमजीआर को लेकर अखबारों में कई तरह के खबर छपते थे। लेकिन एक इंटरव्यू में जयललिता ने कहा कि उनके बीच वहीं रिश्ता था जो एक गुरु और शिष्य में होता है। 

जयललिता को दफनाया क्यों गया था?

5 दिसम्बर 2016 को चेन्नई अपोलो अस्पताल ने प्रेस नोट जारी कर बताया कि रात 11:30 बजे (आईएसटी) उनका निधन हो गया। जयललिता 22 सितंबर से अपोलो अस्पताल में भर्ती थीं, उन्हें दिल का दौरा पड़ने के बाद आईसीयू में भर्ती कराया गया था। द्रविड़ आंदोलन जो हिंदू धर्म के किसी परंपरा और रस्म में यक़ीन नहीं रखता उससे जुड़े होने के कारण इन्हें दफनाया गया था।