ये चरखा मात्र सूत कातने का साधन नहीं है। यह जीवन को गति देने का पर्याय है तो आर्थिक सुदृढ़ता का माध्यम भी है।
यह चरखा स्वरोजगार व स्वराज तथा आत्मसम्मान का मजबूत कवच है।यह घर घर में बिना कहीं बाहर गये आत्मनिर्भर भारत का पर्याय है तो महिला सशक्तिकरण का सशक्त उदाहरण भी है।गांधी का चरखा आज भी रोजगार की कुंजी है जो सर्दी गर्मी के वस्त्र बनने के सूत तैयार करती है।
इसे कृष्ण का सुदर्शन कहें तो गलत न होगा क्योंकि निर्धनता रूपी राक्षस का संहारक है।
चक्र समय चक्र है जो निरंतर गतिशील है व सबक देता है उनको जो स्वयं को सर्वश्रेष्ठ मानने की भूल करते हैं। उन्हें बताता है कि आज आप ऊपर हैं लेकिन समय चक्र एक ही स्थिति में नहीं रहता अतः कल नीचे आपको पहुँचना है। अतः दूसरों से व्यवहार आज की नहीं कल की सोच के साथ करें।
चक्र चरखे का निरन्तर चलने के लिए प्रेरित करता है।
प्रगतिशीलता का द्योतक है। बड़े बड़े कल कारखानों से रोजगार चंद लोगों के मध्य सिमट कर रह जाता है वहीं लघु उद्योग व हथकरघा अधिक जनों को काम देता है ।
इसे घूमने दीजिए।
अनिला सिंह आर्य।