जरूरी तो नहीं कि हम आपको अच्छे लगें। परंतु जिन्दगी का सफर तो तय करना ही है। तो राह के दोनों किनारों पर निगाह डालते हुए अपनी ही धुन में चलते चलिए। थोड़ा मुस्कराते हुए हाथ उनका थामते हुए जो आपके हाथ को पकड़ लें।शिकवा-शिक़ायत नहीं क्योंकि न जाने कब आप ही अनजाने सफर पर निकल जाएं।
तब आप पीछे बहुत बातें, बहुत से किस्से जिनसे आप भी वाकिफ न होंगे उनको लोगों की जुबान पर छोड़ जाएंगे दूसरों को बताने के लिए।
अपमान और मान पर आपका वश नहीं है क्योंकि यह अन्य की भावनाओं पर आश्रित होता है।आपकी और अन्य की सोच समान हो ऐसा प्रकृति के स्वभाव में नहीं होता।
अतः अपने लिए अपने सिद्धांतों का समूह निश्चित करके उन को जीवन में उतारने का शत-प्रतिशत प्रयास रहे।किसी का भी पूर्वाग्रह के वशीभूत होकर अपमान न हो,यथासम्भव सम्मान दे पायें ऐसा विचार कर व्यवहार हो तो श्रेष्ठ है।
मानव स्वभाव है कि किसी के जाने के पश्चात प्रशंसा की पुल बांध दिये जाते हैं।
हाँ मानसिक पीड़ा व अवसाद से गुजरना पड़ता है परंतु असीम संतोष, आत्मिक सुख अवश्य ही मिलता है जब आपसे कभी भी किसी का
अपमान या किसी को हानि नहीं होगी।
तो फिर आइए हम मानसिक बैचेनी से आत्मिक आनन्द की ओर प्रयाण करें।
अनिला सिंह आर्य