हाइलाइट्स
- रूस-अमेरिका दोनों से अच्छे रिश्ते, पसोपेश में फंसा है भारत
- 2014 में खुलकर दिया था साथ, क्रीमिया पर कब्जे को दी थी मान्यता
- चीन-रूस-पाक आए हैं नजदीक, भारत के लिए कोई स्टैंड लेना आसान नहीं
- रूस ने यूक्रेन पर (Russia attacks Ukraine) हमला कर दिया है। अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, जापान, ऑस्ट्रेलिया सहित दुनिया के तमाम मुल्कों ने रूस के इस कदम की निंदा की है। दुनिया की नजर भारत पर भी है। अब तक इस मामले में उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। दबाव जबर्दस्त है। उसका चुप रहना रूस के साथ उसके खड़े होने की मुहर के तौर पर देखा जा रहा है। 2014 में जब रूस ने यूक्रेन से क्रीमिया को अपने में मिलाया (Annexation of Crimea) था तब भारत ने खुलकर अपना रुख रखा था। क्रिमिया के विलय के बाद रूस पर लगे प्रतिबंधों की भारत ने तीखी आलोचना की थी। दुनिया की परवाह किए बगैर भारत अपने पुराने दोस्त रूस के साथ खड़ा रहा था। हालांकि, तब से स्थितियां बहुत बदली हैं। भारत अमेरिका और अन्य यूरोपीय देशों के कहीं ज्यादा करीब हुआ है। वहीं, चीन की आक्रामकता ने भारत के लिए अलग तरह की चुनौतियां खड़ी कर दी हैं। पाकिस्तान भी रूस (Pakistan-Russia Relations) के साथ दोस्ताना संबंध बनाने के लिए हर मुमकिन कोशिश कर रहा है।
आज की तरह तब भी यूक्रेन सहित अमेरिका, यूरोपीय संघ और कई अन्य देशों ने इस विलय की निंदा की थी। इसे अंतरराष्ट्रीय कानून और यूक्रेन की क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करने वाले समझौतों का उल्लंघन बताया था। इसके कारण तत्कालीन G8 के अन्य सदस्यों ने रूस को समूह से निलंबित कर दिया था। इसके बाद रूस के खिलाफ प्रतिबंधों की झड़ी लग गई थी। रूस को क्रिमिया से वापस हो जाने के लिए कहा गया था। रूस टस से मस नहीं हुआ।
क्या होगा भारत का स्टैंड?
तब से अब में स्थितियों में काफी बदलाव हुआ है। भारत के अमेरिका और अन्य यूरोपीय देशों के साथ रिश्तों में पहले से कहीं ज्यादा नजदीकी आई है। वहीं, रूस के साथ भी उसके संबंध पहले जैसे ही मजबूत हैं। अंतर यह आया है कि इस दौरान चीन बहुत ज्यादा आक्रामक हो गया है। वह आए दिन भारत को आंख तरेरता है। दूसरी तरफ हाल में रूस और चीन करीब आए हैं। रूस पर पश्चिमी देशों के सुर में सुर मिला भारत के सामने पड़ोस में ही दो महाशक्तियों से बैर लेने का खतरा खड़ा हो जाएगा।
यूक्रेन-रूस संकट के बीच भारत की उलझन को समझा जा सकता है। यह बहुत नाजुक समय है। दुनिया के ज्यादातर मुल्क रूस को आक्रमणकारी के तौर पर अलग चश्मे से देख रहे हैं। लेकिन, भारत ऐसा नहीं कर सकता है। पुरानी दोस्ती उसको ऐसा नहीं करने देगी। इस पसोपेश को म्यूनिख में भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर के बयानों से भी समझा जा सकता है। उन्होंने क्वाड के एशियाई नाटो होने की धारणा को खारिज किया था। जयशंकर ने कहा था कि चार देशों का यह समूह अधिक विविध और बिखरी हुई दुनिया का जवाब देने का 21वीं सदी का एक तरीका है।
इसके पहले ऑस्ट्रेलिया में हुए क्वाड समूह की बैठक में भी भारत ने रूस के खिलाफ कुछ भी बोलने से मना कर दिया था। यह और बात है कि समूह के अन्य देशों ने रूस की आक्रामकता का खुलकर विरोध किया था।