आपरेशन गंगा को लेकर सीनियर सिटीजन का गुस्सा क्या दर्शा रहा है?

आपरेशन गंगा को लेकर सीनियर सिटीजन का गुस्सा क्या दर्शा रहा है?

सीनियर सिटीजन में रोज की तरह जोरदार बहस चल रही थी। आज बहस का मुद्दा भारत सरकार का आपरेशन गंगा ही था। एक का कहना था कि भारत के नागरिक हैं, विपरीत परिस्थिति में उन्हें वापस लाने की जिम्मेदारी देश की ही है, किंतु देश उनके आने की व्यवस्था का खर्च क्यों उठाए।

वैसे तो यूक्रेन में कई देशों के नागरिक फंसे हैं लेकिन अपने लोगों को सुरक्षित निकालने के लिए भारत ने दुनिया का सबसे तेज ऑपरेशन चलाया। अपने नागरिकों और वहां फंसे छात्रों को बाहर निकाला। आपरेशन की कामयाबी यह है कि युद्ध के बीच ये छात्र सुरक्षित देश लौटे। एक छात्र को ही जान गवांनी पड़ी। इस अभियान की खास बात यह रहीं कि युद्धरत रूस और यूक्रेन ने तिरंगा लगी बसों को सुरक्षित रास्ता प्रदान किया। खबर तो यहां तक आई कि भारतीयों की सुरक्षित निकासी के लिए रूसी सेना की तरफ से छह घंटे हमले भी रोक दिए गए थे।

इस अभियान की खास बात यह है कि भारत सरकार आपरेशन का पूरा खर्च खुद वहन कर रही है। छात्रों को यूक्रेन से निकाल कर लाने, दूसरे सीमावर्ती देश में उनके रहने और खाने आदि की व्यवस्था करना सरल काम नहीं था, किंतु केंद्र सरकार के दृढ़ संकल्प के कारण यह हो सका। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि यूक्रेन में फंसे एक−एक छात्र को निकाल कर लाया जाएगा। एक छात्र के भी यूक्रेन में रहने तक आपरेशन  जारी रहेगा। इस आपरेशन और भारत सरकार की कार्रवाई की पूरी दुनिया में तारीफ हो रही है। पर यूक्रेन में पढ़ने गए छात्र और उनके अभिभावकों के बयान पीड़ादायक रहे। एक छात्रा की मांग थी कि उसे मुंबई से दिल्ली अपने पैसे से आना पड़ा। सरकार यह पैसा उसे दे, क्योंकि यह छात्रों को निःशुल्क लाने का दावा कर रही है। एक अभिभावक ने कहा कि उसने 50 लाख रुपये कर्ज लेकर बेटे को पढ़ने भेजा था, अब क्या होगा। उनका मन्तव्य रहा कि सरकार यह पैसा भी उसे दे। किसी की शर्त थी, कि वह भारत आएगा तो अपने पालतू कुत्ते के साथ, तो किसी की जिद थी कि उसे अपनी पालतू बिल्ली लेकर प्लेन में नहीं आने दिया जा रहा।

आज सुबह मैं रोज की तरह घूमने पार्क में पहुंचा तो वहां कुछ सीनियर सिटीजन में रोज की तरह जोरदार बहस चल रही थी। आज बहस का मुद्दा भारत सरकार का आपरेशन गंगा ही था। एक का कहना था कि भारत के नागरिक हैं, विपरीत परिस्थिति में उन्हें वापस लाने की जिम्मेदारी देश की ही है, किंतु देश उनके आने की व्यवस्था का खर्च क्यों उठाए। ये छात्र वहां समाज सेवा करने नहीं गए थे। वहां से लौटकर भी समाज सेवा नहीं करेंगे। योग्य भी नहीं थे। योग्य होते तो देश के मेडिकल काँलेजों में प्रवेश मिल जाता। मां-बाप ने पैसे के बल पर उन्हें यूक्रेन डॉक्टर बनाने भेजा था। अब वहां से उल्टी−सीधी डॉक्टरी पढ़कर अपना  अस्पताल चलांएगे। मरीज देखने की मोटी फीस लेंगे। अपने मोटे कमीशन के लिए उल्टे−सीधे टैस्ट करांएगे। दवाई भी कमीशन वाली लिखेंगे। जिस तरह से बस चलेगा मरीज के परिवार को लूटेंगे। इन पर क्यों सरकारी पैसा लुटाया जा रहा है? एक का कहना था कि ये पैसा देश के टैक्स पैयर (टैक्स देने वाले नागरिक) का है। सरकार का नहीं कि खैरात बांट दे। ये कहीं और देश की जरूरत पर लगाया जा सकता था। एक अन्य की राय थी कि आज चीन के आक्रामक रुख को देखते हुए सेना के संसाधन बढ़ाने और आधुनिक शस्त्रों की खरीद पर खर्च होना चाहिए था। फालतू के लिए टैक्सदाताओं की खून पसीने की कमाई का खरबों रुपया इन पर बर्बाद कर दिया।

एक ने कहा कि यह तो जीवन के खतरे हैं। चुरु का एक व्यापारी छह माह पूर्व आठ लाख रुपये लेकर यूक्रेन गया था। युद्ध के हालात में सब छोड़कर भागना पडा, फिर तो सरकार उसके भी नुकसान की भरपाई करे। एक अन्य ने यूक्रेन से भारत लौटी उसे बेटी के अभिभावकों की प्रशंसा की जिन्होंने बेटी के भारत आने पर उसके किराये के 32 हजार रुपए प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री कोष में जमा कर दिये। बहस में शामिल सबने इस बिटिया के अभिभावकों की प्रशंसा की। उनके लिए ताली बजाई। कहा कि अन्य छात्र−छात्राओं के अभिभावकों को इस तरह की जिम्मेदारी का परिचय देना चाहिए। एक व्यक्ति ने इसी को लेकर वायरल हो  रहा एक युवती का वीडियो सबको सुनाया। इसमें भी कुछ ऐसा ही कहा गया जो आज बहस में कहा जा रहा था। सबने इस वीडियो की तारीफ की। सबने इन छात्र और अभिभावकों के रवैये की आलोचना की। मांग की कि सरकार इन छात्रों पर व्यय हुआ पैसा इनके परिवार से वसूल करे। देर होती देख मैंने बहस बीच में ही छोड़ खिसकना बेहतर समझा। वैसे इन सीनियर सिटीजन की बात मुझे तो सही सी लगी, आप क्या महसूस करते हैं ये आप जानें।