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किसान नेता राकेश टिकैत अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं और उन्होंने पहले ही साफ कर दिया था कि वो चुनाव नहीं लड़ेंगे लेकिन आपको बता दें कि उन्होंने चुनावों में अपनी किस्मत आजमाई है और उसमें उन्हें बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा था, वो भी किसानों के गढ़ में ही।
नयी दिल्ली। उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। देश के सबसे बड़े राज्य में विधानसभा की 403 सीटों के लिए सात चरणों में मतदान होगा। पिछले विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का प्रदर्शन शानदार रहा था। लेकिन इस बार कहा जा रहा है कि भाजपा को किसान आंदोलन की वजह से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कुछ नुकसान हो सकता है। क्योंकि भारतीय किसान यूनियन समेत कई किसान संगठनों ने खुले आम ऐलान किया है कि वो भाजपा का विरोध करेंगे। ऐसे में आज हम आपको भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत के बारे में जानकारी दे देते हैं। इतिहास के पन्नों को पलटे तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दो ही कद्दावर नेता हुए हैं, जिनकी वजह से दिल्ली की राजनीति में हलचल शुरू हो जाती थी और उनकी विरासत को राकेश टिकैत और जयंत चौधरी संभाल रहे हैं।
जाट ही देते हैं असली ठाठ
जाटलैंड कहे जाने वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह और किसान नेता नरेश टिकैत का ही दबदबा रहा है। यहां पर एक कहावत भी खूब दोहराई जाती है- जिसके साथ जाट, उसी की होगी ठाठ। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाटों की आबादी करीब 17 फीसदी हैं। यहां पर जाट, दलित और मुसलमान के बाद तीसरे नंबर पर आते हैं। माना जाता है कि उत्तर प्रदेश की 18 लोकसभा और 120 विधानसभा सीटों पर जाट वोट का सीधा असर होता है। इनके रुख से सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, कैराना, मेरठ, गाजियाबाद, बागपत, गौतम बुद्ध नगर, बुलंदशहर, मुरादाबाद, बिजनौर, संभल, अमरोहा, अलीगढ़ समेत कई सीटों के समीकरण बदल जाते हैं।अपने गढ़ से ही हारे थे टिकैतभले ही किसान आंदोलन के दरमियां संयुक्त किसान मोर्चा ही आगे की रणनीति तय करता रहा हो लेकिन अक्सर एक ही चेहरा हमेशा टेलीविजन जगत और अखबारों में छाया रहता था और वो चेहरा है किसान नेता राकेश टिकैत का, जो अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं। हालांकि उन्होंने साफ कर दिया था कि वो चुनाव नहीं लड़ेंगे लेकिन हम आपको बता दें कि उन्होंने चुनावों में अपनी किस्मत की आजमाइश पहले ही कर ली थी और उसमें उन्हें बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा था, वो भी किसानों के गढ़ से ही।सरल स्वभाव के माने जाने वाले राकेश टिकैत ने साल 2007 में मुजफ्फरनगर की खतौली विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा था और उन्हें हार मिली थी। इस दौरान उन्हें चौथा स्थान मिला था और उनके विरोधी योगराज सिंह ने जीत दर्ज की थी। दरअसल, साल 1967 में अस्तित्व में आने के बाद खतौली विधानसभा सीट पर महेंद्र सिंह टिकैत के आशीर्वाद से ही विधायक चुना जाता रहा है। लेकिन राम मंदिर आंदोलन के बाद यहां की सियासत भी बदल गई। ऐसे में 1991 और 1993 में भाजपा के सुधीर बालियान को जीत मिली थी और साल 2007 में किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत के छोटे बेटे को भी हार का सामना करना पड़ा।