कहते हैं एक तो एक ही होता है।
एक है तो अनेक हैं।और वो गोल चमकता खनकता सिक्का हो तो क्या कहना।
नोट बहुत मिल जायेंगे जितने का चाहिए लेकिन नहीं मिलता तो वो एक की कीमत का नोट। एक जिसे शगुन मानते हैं लाखों की गडाडी होती है वह तब तक अधूरी ही थी है जब तक उसके ऊपर एक ना हो । शादी के या अन्य अवसरों पर बैंक से या बाजार से अधिक कीमत देकर भी व्यक्ति लेता है। एक का नोट हमारे पास भी सम्भाल कर रखा है।
एक में ही ब्रम्हाण्ड कैसे समा जाता है। लेकिन समानता तो है ही। सयाने भी कहते हैं एक सधे तो सब सधे। गलत क्या कहते हैं? इंगित एक अंगुली से होता है देर कहीं क्यों भटकें कृष्ण एक अंगुली पर गोवर्धन पर्वत बालपन में उठा लेते हैं अपनों को घोर वर्षा से बचाने के लिए तो बड़े पन में अंगुली पर घूमते सुदर्शन चक्र से सौ गलती होने पर सज़ा भी देते हैं।
एक की महिमा अपरम्पार है क्योंकि ईश्वर एक है नाम चाहे अनेक हैं, सूर्य, चंद्रमा एक ही हैं बेशक नाम बहुत हैं। जल जल ही है जो जीवन देता है हवा एक ही है जो अनेकार्थ लिये है ।अर्थात पूरब,पश्चिम, उत्तर दक्षिण तो है परंतु धरा से निकली भावना मानवता की एक ही है ।
बहुत पहले एक फिल्म का गाना था गरीबों की सुनो वो तुम्हारी सुनेगा, तुम एक पैसा दोगे वो दस लाख देगा।
माना कि एक पैसे का जमाना अतीत के अंधेरे में खो गया है परंतु एक रुपया भी अनुपलब्ध ही है।
आप भी सोच रहे होंगे कि एक का चक्कर क्या है।कुछ नहीं जी ।बात बस इतनी सी है कि जिन्दगी में खोना और पाना ही तो है।गिलास आधा खाली है या आधा भरा है यह हमारी सोच पर निर्भर है।
हमने ऊपर वाले का बहुत-बहुत आभार व्यक्त किया कि हमें उसने बहुत दिया कि वर्णन करने के लिए शब्द नहीं। तो एक ही में स्वयं को क्यों ना सीमित करें।जो मिले जितना मिले सुकून है कि झोली खाली नहीं और चलते चलते सरे राह एक का सिक्का मिल ही गया ठीक वैसे ही जब ऑटो से उतरने पर पाया कि पर्स को ले गया और हम खाली हाथ सड़क पर खड़े रह गये ।लेकिन लौटते हुए रेत में एक के तीन सिक्के मिले।
कबीर का दोहा अंत में आप याद दिला ही दें
गौ धन,गज धन बाजी धन और रतन धन खान ।
जब आवे संतोष धन सब धन धूरि समान। ।
अनिला सिंह आर्य