गोविंद द्वादशी व्रत से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है तथा सभी रोग और कष्ट दूर होते हैं। इस दिन व्रत से पितृदोष शांत होते हैं तथा किसी प्रकार का धनाभाव नहीं रहता है। पूजा के बाद गोविंद द्वादशी कथा जरूर सुननी चाहिए।
हिंदू कैलेंडर के फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को गोविंद द्वादशी व्रत होता है। इस वर्ष यह मंगलवार 15 मार्च 2022 को है, मत-मतांतर के चलते कई स्थानों पर यह व्रत 14 मार्च, सोमवार को भी किया जाएगा। गोविंद द्वादशी के दिन नरसिंह द्वादशी भी मनाया जाता है। इस दिन भगवान गोविंद की पूजा-अर्चना करने का विधान है। इस व्रत को रखने से मनोवांछित फल प्राप्त होता है। इसी दिन भौम प्रदोष व्रत भी है। भौम प्रदोष व्रत होने के कारण भगवान शिव के साथ-साथ हनुमान जी की भी विशेष आराधना की जाएगी।
गोविंद द्वादशी की व्रत कथा
शास्त्रों में गोविंद द्वादशी से जुड़ी पौराणिक कथा प्रचलित है। इस कथा के अनुसार कश्यप ऋषि की पत्नी दिति के हिरण्याक्ष व हिरण्यकशिपु नाम के दो पुत्र थे। हिरण्यकशिपु के पुत्र का नाम प्रह्लाद था वह विष्णु भगवान का परम भक्त था। हिरण्यकशिपु उसको मारने का प्रयास करता लेकिन हर बार वह बच जाता। एक बार भरी सभा में प्रहलाद ने जब भगवान विष्णु के सर्वशक्तिमान होने की बात कर रहा था तभी हिरण्यकश्यपु को क्रोधित हो गया और उसने कहा कि अगर तुम्हारा भगवान है तो उसे इस खम्बे से बुलाकर दिखाओ। उसके बाद भक्त प्रह्लाद ने भक्ति से भगवान विष्णु को याद किया तब श्री विष्णु खम्बे से नृसिंह अवतार में प्रकट हुए और उन्होंने हिरण्यकश्यपु का वध कर दिया। इस प्रकार भगवान नरसिंह ने प्रह्लाद को आर्शीवाद दिया कि इस दिन मेरे स्मरण एवं पूजन से लोगों की सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी और सभी कष्ट दूर होंगे।
गोविंद द्वादशी व्रत में ये पूजा सामग्री करें इस्तेमाल
पंडितों क अनुसार गोविंद द्वादशी व्रत में केले का पत्ता, आम का पत्ता, रोली, मोली, कुमकुम, फूल, फल, तिल, घी, दीपक, पान का पत्ता, नारियल , सुपारी, लकड़ी, भगवान की फोटो, चौकी, आभूषण तथा तुलसी पत्र अवश्य होना चाहिए।
गोविंद द्वादशी व्रत के दिन ऐसे करें पूजा
- गोविंद द्वादशी के दिन नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान के पश्चात भगवान लक्ष्मीनारायण की पूजा करनी चाहिए।
- इस पूजा में मौली, रोली, कुंमकुंम, केले के पत्ते, फल, पंचामृत, तिल, सुपारी, पान एवं दूर्वा आदि रखना चाहिए।
- पूजा के लिए (दूध, शहद, केला, गंगाजल, तुलसी पत्ता, मेवा) मिलाकर पंचामृत से भगवान को भोग लगाएं।
- द्वादशी कथा का वाचन करना चाहिए।
- इसके बाद लक्ष्मी देवी एवं अन्य देवों की स्तुति-आरती की जाती है।
- पूजन के बाद चरणामृत एवं प्रसाद सभी को बांटें।
- ब्राह्मणों को भोजन कराने के बाद दक्षिणा देनी चाहिए। फिर खुद भोजन करें।
- इस दिन अपने पूर्वजों का तर्पण करने का भी विधान है।
- यह व्रत सर्वसुखों के साथ-साथ बीमारियों को दूर करने में भी कारगर है। अत: फाल्गुन द्वादशी के दिन पूरे मनोभाव से पूजा-पाठ आदि करते हुए दिन व्यतीत करना चाहिए।
इस दिन भगवान गोविंद की पूजा-अर्चना करने का विधान है। इस व्रत को रखने से मनोवांछित फल प्राप्त होता है। इसी दिन भौम प्रदोष व्रत भी है। भौम प्रदोष व्रत होने के कारण भगवान शिव के साथ-साथ हनुमान जी की भी विशेष आराधना की जाएगी।
गोविंद द्वादशी व्रत का महत्व
गोविंद द्वादशी व्रत से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है तथा सभी रोग और कष्ट दूर होते हैं। इस दिन व्रत से पितृदोष शांत होते हैं तथा किसी प्रकार का धनाभाव नहीं रहता है। पूजा के बाद गोविंद द्वादशी कथा जरूर सुननी चाहिए। पूजा अर्चना के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराकर दक्षिणा देना चाहिए।