आज ही से होली के नवरंग बच्चों के संग अपनी छटा बिखरने लगे। मन पीछे चला गया उनकी उमंग को देखते हुए। चार पांच दिन तक रंगों में डूबने का हुड़दंग रहता था।होली वाले दिन के तो क्या कहने। पिचकारी,रंग गीला सूखा,बाल्टी पानी की रंग वाली और सादी पानी वाली,गुजिया,गुलाब जामुन, नमकीन सब कुछ शुद्ध घर का बनाया होता था।परंतु अब कहाँ। हम तो रंग में रंग कर बेपहचान के हो जाते ।इससे भी आगे कभी मैस या क्लब में होली मनी तो रंगीन पानी से भरे टब में किसी को भी डुबकी लगा देना ,गाना,नाचना फिर दोपहर का खाना और नहाना।
परंतु सब जगह समान रूप से तो होली मनती नहीं।
यहाँ पर देखा नालियों का गंदगी भी होली के दिन सुगंध वाला हो जाता है।कोई गोबर घोलकर फैंकने में आनन्दित होता है तो कोई रंगों के साथ कपड़े फाड़ देते हैं। शायद नशे के कारण ही ऐसा होता है ।बाद में कभी-कभी लड़ाई भी हो जाती है ।
बहाना होली का और मौका बदतमीज़ी और बदले का भी हो जाता है ।अतः सावधानी बरतने की जरूरत है
होली है तो हम सोचते हैं कि हम जो चाहे कर लें। चाहे किसी के लिए रंग में भंग ही हो जाए।होली की दीवानगी होती ही कुछ ऐसी है कि हम दूसरे की सुनना ही नहीं चाहते। कभी आँखों में ऐसा रंग डाल दिया कि तुरंत धोने की जरूरत पड़ गयी,किसी ने नाक में रंग डाल दिया थो मुँह से सांस लेते हुए नाक धोई पड़ी,किसी ने खुश होकर बाल्टी भरी पानी इतनी ताकत से फैंकी कि कान कयी दिन के लिए सूना हो गया।
क्या कर सकते हैं ऐसे में बुरा न मानो होली है जी बस तकिया कलाम सुनने को मिलता है ।
छत पर से गुब्बारे आनें जाने वालों पर फैंक कर बच्चों को जो आनन्द मिलता है अवर्णनीय है। बाल्टी भरी और नीचे डाल कर छुपना यही तो बच्चों का होली का आनन्द है।
सामाजिक समरसता का त्यौहार है होली ।मिलने जुलने का पर्व है होली।
रंग तो हो परंतु रासायनिक न हो जिससे परेशानी हो,चन्दन हो फूल हो।शराब न हो ।
सोचो हम खुश हैं परंतु दूसरों को जरा भी परेशानी हो तो सुखी जीवन की दुआएं नहीं मिलती।होली के रंग कोई तीन चार दिनों के लिये नहीं बल्कि आने वाले सब दिन सतरंगी छटा से ओतप्रोत हों तभी उमंग है,आशा है विश्वास है ।
बच्चों से आरम्भ हुई बात कल पर चली गयी और पुनः बच्चों की खुशियाँ पर ही लाकर रोकते हैं।
अनिला सिंह आर्य