चुनाव एवम अवसरवादी गठबंधन।

  अभी हाल ही में पांच राज्यो में विधान सभा चुनाव सम्पन्न हुए है और इन पांच राज्यो में से चार में भाजपा की सरकार चल रही थी जबकि एक राज्य में कांग्रेस की। इन पांचों राज्यो का यदि पूर्व का इतिहास देखे तो हर कार्यकाल में नई पार्टी की सरकार बनती रही तथा सत्तारूढ़ पार्टी की वापसी नही होती थी। उन्ही में सबसे बड़े एवम प्रमुख राज्य उत्तरप्रदेश की बात यदि हम करे तो यहां भी पिछले 37 वर्षों से यही परम्परा चली आ रही थी इसलिए क्षेत्रीय दलों द्वारा जबरदस्त ताल इस राज्य में ठोंकी जाती रही है तथा चुनावो से पहले जाति एवम धर्म पर आधारित अवसरवादी गठबंधन सदैव बनते रहे है। इस बार भी सत्तारूढ़ भाजपा से नाराज होकर छिटके दो छोटे दल एवम के अन्य जाति आधारित नेता भाजपा को गालियां देते हुए मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के खेमे में इस मन्शा से जा बैठे कि हम भाजपा का सूपड़ा साफ कर देंगे। उनमें सुभासप के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर एवम पिछड़ा वर्ग के स्वामी प्रसाद मौर्या प्रमुखता से भाजपा को गाली देते नजर आए तथा चुनाव में स्वामी प्रसाद मौर्य तो अपनी सीट भी नही बचा पाए। इसी प्रकार दिल्ली बॉर्डर पर चले किसान आंदोलन जिसमे पाश्चिमी उत्तरप्रदेश से किसान नेता राकेश टिकैत की अगुवाई के चलते समस्त जाट समाज मे भाजपा के विरोध का बिगुल उन्होंने बजा कर लगभग हाशिये पर जा चुकी राष्ट्रीय लोकदल पार्टी के मुखिया जयंत चौधरी को भी नया जीवन दान करते हुए उन्हें समाजवादी पार्टी की गोद मे बैठा कर भाजपा को जड़ मूल से उखाड़ने का ऐलान उन्होंने कर दिया था। समाजवादी पार्टी मुखिया अखिलेश यादव ने जयंत चौधरी की पार्टी को पाश्चिम में 30 सीट पर गठबंधन कर चुनाव में उतारा भी परन्तु अखिलेश और जयंत की यह जोड़ी भी बहुत ज्यादा करिश्मा नही कर सकी तथा मात्र आठ सीट ही जीत पाई तथा कुल मिलाकर उत्तरप्रदेश विधानसभा की 403 सीट में से मात्र 125 सीट पर ही समाजवादी गठबंधन कामयाब हो सका जबकि सारे मिथक तोड़ते हुए योगी आदित्य नाथ की अगुवाई में भाजपा ने 273 सीट जीत कर पूर्ण बहुमत से अपनी सरकार लगातार दोबारा बनाने में सफलता पाई। 

  चुनाव आते जाते रहते है परन्तु अब पहले की भांति जनता किसी भी पार्टी को अधूरा बहुमत देकर सत्ता में नही भेजती तथा बहुत सोच विचार कर पूर्ण बहुमत से ज़रकर बनवाती है ताकि उसे विकास कार्यो के लिए पूरा अवसर मिले। उत्तरप्रदेश में चनावो में जो बड़ा बदलाव इस बार धर्म के आधार पर देखने को मिला और जिस प्रकार मुस्लिम समुदाय ने बिल्कुल एकजुट होकर समाजवादी पार्टी के पक्ष में मतदान किया वह अतुलनीय है क्योंकि उनकी इस एकाग्रता को भांपते हुए ही हिन्दू समाज ने भी एक जुट होकर भाजपा को वोट किया तथा मोदी योगी द्वारा कोरोना काल मे विकसित एक विशेष लाभार्थी वर्ग के सहयोग के कारण भाजपा दोबारा लगातार उत्तरप्रदेश में सरकार बनाने में कामयाब हुई।

   वैसे धर्माधारित ध्रुवीकरण आने वाले समय के लिए एक खतरनाक संकेत है जिस पर हम अगले लेख में बात करेंगे, जरा सोचिए….


- डॉ मुकेश गर्ग

(लेखक एक स्वतंत्रत उद्यमी, विचारक एवम स्तंभकार है)