होली पर भगवान कृष्ण (व्यंग्य)

 होली पर भगवान कृष्ण (व्यंग्य)

भगवान का कीर्तन मेरी पत्नी को बहुत अच्छा लगता है जिसमें प्रसिद्ध हिट फिल्मी धुनों पर ठुमकते, कीर्तन मंडली के सजे धजे नायक ‘कृष्ण’ बांसुरी मुंह से छुआए उनके पास आकर बैठ जाते हैं और सौ रुपए लेकर ही उठते है और पुनः नर्तन करने लगते हैं।

भगवान का कीर्तन मेरी पत्नी को बहुत अच्छा लगता है जिसमें प्रसिद्ध हिट फिल्मी धुनों पर ठुमकते, कीर्तन मंडली के सजे धजे नायक ‘कृष्ण’ बांसुरी मुंह से छुआए उनके पास आकर बैठ जाते हैं और सौ रुपए लेकर ही उठते है और पुनः नर्तन करने लगते हैं। हमने स्थानीय ईश्वर प्रेम संस्था से संपर्क किया और अखबार में खबर छपवा दी  कि होली के सालाना, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक आयोजन में श्रद्धालुओं की ओर से भगवान कृष्ण को स्वयं शामिल होकर होली खेलने का न्योता दिया गया है। हमें पता था कि काम ज़रा मुश्किल है लेकिन प्रेम वश तो कोई कुछ भी कर सकता है। अच्छी तरह जानते हैं हम कि कोई बुलाए न बुलाए, वसंत हर बरस आता है कोई उसे पहचाने न पहचाने वह मादक सरसों के साथ दिन रात नृत्य में मगन रहता है। कितने ही किस्म के फ़ायदों से अब अपरिचित हो चुकी दुनिया में, टेसू के सुर्ख फूल खिलते ही हैं और उसका मान रखने के लिए कुछ लोग तो उससे होली के रंग बनाते ही हैं। 

होली खेलने के लिए बेशक हजारों कंपनियाँ शरीर को नुकसान पहुंचाने वाले रंग बनाने में मशगूल रहती हैं लेकिन लाखों कलियाँ अपनी गर्दन ठंड के कंबल से बाहर निकालकर रंगीन फूल बन चुकी होती हैं। इन सब बातों ने भी प्रेरित किया कि इस बार भगवान कृष्ण को होली पर आना ही चाहिए। हमने इस आयोजन के लिए फेसबुक पर भी पोस्ट डाल दी तो लाईक करने वालों ने अग्रिम और्गैनिक रंग डालने शुरू कर दिए। पिचकारियों में, हाथ से बाल्टी भर रंग फेंकना शुरू कर दिया। कल्पनाशील मित्रों ने आग्रह दिया कि होली के मौका पर रंगभरा रास भी आयोजित किया जाए। इस आयोजन के लिए साथी साथ लाने का वायदा भी किया जाने लगा। रास रचाने के लिए गोपियों के प्रस्ताव आने लगे यह प्रशंसा करते हुए कि भगवान कृष्ण के प्रिय नृत्य रास के रस के बिना होली कैसे मनाई जा सकती है।

हमारे एक पुराने दोस्त बांसुरी बजाते और आजकल डीजे भी चलाते हैं उन्होंने हमें फोन कर अधिकार से कहा, प्यारे धर्म का काम कर रहा है, चिंता न करो बांसुरी भी बजा देंगे और डीजे पर भक्तों को नचा भी देंगे। हमें लगा क्या मैं ऐसा धार्मिक जुलूस जैसा कार्यक्रम आयोजित करने जा रहा हूँ जिसमें युवा विद्यार्थियों को भांग का घोटा पिलाकर, दो केले खिलाकर, डीजे की धुन पर फिल्मी धुन वाले भजनों पर सड़क पर कई घंटे नचाया जा सकता है। कुछ बंदों ने सलाह दी कि किसी व्यवसायिक सेवाएँ ली जाएँ तो आयोजन निखर उठेगा और भगवान कृष्ण अति प्रसन्न हो जाएंगे। आमदनी भी खूब होगी। हमारे मन और तन से टेसू के फूल, केवड़े की मादक सुगंध, कोयल की कूक, आम के बौर और पुरानी गोपिकाएँ भी बाहर आने लगे थे। 

एक ख़ास बात, उस रात जब कृष्ण ख्वाब में आए तो वे आकर्षक स्वप्निल वस्त्रों में रहे लेकिन बांसुरी नहीं बजा रहे थे। उनके पांव के नीचे घास हरी मुलायम न होकर उदासी के रंग में लिपटी थी जिसमें तीखे कांटे भी थे। उनमें से कुछ कांटे उनके पाँवों को घायल कर चुके थे और कुछ कांटे उनके हृदय की तरफ बढ़ रहे थे, उनकी पसंदीदा दर्जनों गाएं उनसे दूर मुंह छिपाए खड़ी थी। खास बात यह कि उनके सिर से मोर का पंख गायब था। दिलचस्प बात यह कि उनकी शक्ल हमारी पत्नी से मिल रही थी। हमने जैसे ही उनसे बात करने का निवेदन किया, ख्वाब बिखर गया। सुबह होने पर सपना सुनकर पत्नी ने समझाया, हमने होली के प्रतिमानों का मनचाहा नवीनीकरण कर दिया है। वर्तमान व्यवस्था में सुरक्षित यही रहेगा कि भगवान कृष्ण जहां हैं वहीं होली खेलें, बस उनकी बांसुरी हमारे लिए ‘राग चैन’ बजाती रहे।