यूनान मिस्र रोमा सब मिट गए जहां से, कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी

 यूनान मिस्र रोमा सब मिट गए जहां से, कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी


यह "कुछ बात"विश्व में विशिष्टतम स्थान से विभूषित हमारी संस्कृति में निहित है। जिसने संपूर्ण विश्व को "वसुधैव कुटुंबकम" का मंत्र देकर इसे अपना परिवार मानने का संदेश दिया है। संस्कृति का ही आश्रय लेकर मानव जाति अनादि काल से निरंतर विकास की ओर उन्मुख रही है। मनुष्य की नैतिक, बौद्धिक, सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक उपलब्धियां संस्कृति की संज्ञा से अभिहित की जाती हैं। इसी के चलते भाषा, साहित्य ,लिपि ,कला, तकनीक ,विज्ञान एवं धर्म का उद्भव एवं विकास होता है । सोचने, समझने एवं विचार विमर्श करने की विवेकमय प्राकृतिक शक्ति मनुष्य को संस्कृति की ओर से उन्मुख करती है। और उसे पशुओं से पृथक करती है। 

     राष्ट्र मात्र भौगोलिक और राजनीतिक स्तर पर निर्धारित भूखंड नहीं होता, बल्कि यह अपने आप में विचार और भाव समाहित किए होता है । जो वहां के स्त्री ,पुरुषों ,जाति, धर्म, दर्शन, कला, तकनीक, ज्ञान और संस्कार में परिलक्षित होता है। और यही राष्ट्र की आत्मा होती है ।भारतवर्ष का नाम लेते ही समस्त ज्ञान, धर्म और दर्शन का भाव मन में प्रतिविम्बित होने लगता है । जिसमें वैदिक ऋचाओं से लेकर शंकराचार्य के अद्वैत दर्शन  का सार समावेशित हो जाता है। इस आध्यात्मिक ज्ञान और दर्शन का केंद्र उत्तर प्रदेश है। जो हिंदुस्तान के हृदय स्थल के रूप में विराजमान है। 

     राजनीतिक रूप से उत्तर प्रदेश का जन्म 24 जनवरी सन 1950 को भारत के गवर्नर जनरल द्वारा "यूनाइटेड प्रोविंसेस आर्डर" पारित करने के साथ हुआ जिसके अंतर्गत यूनाइटेड प्रोविंसेस को उत्तर प्रदेश नाम दिया गया। 2,38,566 वर्ग किलोमीटर में विस्तृत यह भूभाग अपनी विशाल जनसंख्या से भी समृद्ध है। सांस्कृतिक धरोहर की मेरुदंड पतित ,पावनी गंगा और यमुना नदियों की जलोढ़ मिट्टी इस भूखण्ड को उपजाऊ बनाने के साथ-साथ सांस्कृतिक एवं धार्मिक नगरी के रूप में भी वैभव प्रदान करती हैं। 

     हिंदुस्तान की प्राचीन सभ्यता का उद्गम स्थल उत्तर प्रदेश है। वैदिक काल में इसे ब्रह्मर्षि देश या मध्य देश के नाम से जाना जाता था आज से लगभग 4000 वर्ष पूर्व आर्य सर्वप्रथम यही आए थे । और इनके ही नाम पर इस देश का नाम आर्यावर्त, और आर्यों के एक राजा भरत के नाम पर भारतवर्ष पड़ा। संपूर्ण विश्व को ज्ञान और अध्यात्म की रोशनी देने वाले चारों वेद रामायण, महाभारत, श्रीमद्भगवद्गीता जैसे ग्रंथ इसी प्रदेश में लिखे गए। श्रीमद्भागवत गीता में उल्लिखित "धर्मो रक्षति रक्षतः" भारत की न्यायपालिका का प्रेरणा वाक्य बना। नृत्य, संगीत आदि समस्त कलाओं के अधिष्ठाता, लोक कल्याणार्थ गरल पान करके ,विश्व को "सत्यम शिवम सुंदरम" का संदेश देकर नीलकंठ के रूप में सुशोभित, आदिदेव भारतीय सभ्यता संस्कृति में सेंधव काल से अद्यतन काशी में ,बाबा विशेश्वर के रूप में विराजित हैं । इन्हीं के त्रिशूल पर मोक्षदायिनी काशी बसी है। जो 12 ज्योतिर्लिंगों में एक है। 

      लोक को मर्यादा और कर्तव्यनिष्ठा का पाठ पढ़ाने वाले राम ,लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न इसी प्रांत की उर्वर धरती से प्रसूत हैं । आज जब भाई भाई का हिस्सा हड़पना चाहता है तब राम जिन का राज्याभिषेक होने जा रहा था, वह  माता कैकेई एवं पिता दशरथ के वचन को सर्वस्व मानकर राज्य सिंहासन त्याग कर वन चले जाते हैं। तो वहीं पर भरत जिनको संपूर्ण राज सिंहासन  मिल जाने के बाद भी उसे न स्वीकार करके राम की खड़ाऊ सिंहासन पर रखकर उनके प्रतिनिधि के रूप में शासन व्यवस्था संचालित करते हैं। यह संस्कार सिर्फ उत्तर प्रदेश की संस्कृति में ही दृष्टिगोचर होते हैं। नारी स्वाभिमान का साक्षात्कार कराने वाली सीता का समाहित स्थल इसी प्रदेश में है। तथा विश्व को राजनीति से परिचित कराने वाले कृष्ण यहीं की विभूति हैं।  

      छठी शताब्दी ईसा पूर्व से भारत और उत्तर प्रदेश का क्रमबद्ध तरीके से व्यवस्थित इतिहास प्राप्त होने लगता है। जब महात्मा बुद्ध और महावीर स्वामी की कर्म स्थली के रूप में इसके गौरव में संवर्धन होता है। "सब्बम दुखम्" कहकर संसार को दुखमय मानकर बुद्ध उस दुख से निजात पाने के लिए मध्यम मार्ग का अनुसरण करने की शिक्षा देते हैं। जिसका आशय है जीवन में न तो अत्यधिक कठोरता होनी चाहिए और न ही सरलता। अर्थात संतुलित आचरण करके व्यक्ति हर प्रकार के दुखों से छुटकारा पा सकता है। आज जब हम तृतीय विश्वयुद्ध की ओर  तेजी से आगे बढ़ रहे हैं, तब संसार के लिए बुद्ध का शांति उद्घोष समस्त संसार को युद्ध की विभीषिका से बचाने में नितांत उपयोगी है। सारनाथ के निकट ऋषि पत्तन अथवा चौखंडी नामक स्थान पर बुद्ध का स्तूप है। यहीं पर उन्होंने  अपना प्रथम उपदेश देकर  ऐसे धर्म की नींव रखी जिसका विस्तार न सिर्फ भारत अपितु विश्व के अन्य देशों जैसे चीन ,जापान में भी हुआ। उनका प्रथम उपदेश धर्मचक्र प्रवर्तन के नाम से प्रसिद्ध है। धर्मचक्र प्रवर्तन के प्रतीक अशोक के एकाश्मक स्तंभ के शीर्ष भाग पर स्थित चौकी पर चार सिंह बने हैं, जो चारों दिशाओं में मुँह किये हैं।तथा 32 तीलियों वाला चक्र धारण किये हुए हैं।यह विश्व में मूर्ति विन्यास में अप्रतिम होने के साथ साथ आध्यात्मिक ज्ञान का सर्वश्रेष्ठ निदर्शन हैं। धर्मचक्र प्रवर्तनाय को भारतीय संसद द्वारा प्रेरणा वाक्य के रूप में स्वीकार किया है। तथा स्वतंत्रता के उपरांत भारत सरकार ने राजकीय चिन्ह के रूप में भी इसे स्वीकार किया। आदि गुरु शंकर के वेदांत की परीक्षा भी इसी काशी में हुई थी। 

      मौर्य और गुप्त शासकों ने संपूर्ण भारत को एक सूत्र में बांधकर राष्ट्रीय चेतना और राजनीतिक एकता की दिशा में उल्लेखनीय योगदान दिया। 12 वीं सदी में मुस्लिम शासन की स्थापना के बाद उत्तर भारत में महान शक्तिशाली सम्राटों का शासनकाल रहा। जिन्होंने स्थापत्य और वास्तुकला में रुचि लेते हुए विश्व विख्यात इमारतों का निर्माण करवाया। इनमें फतेहपुर सीकरी ,आगरा में ताजमहल, एत्माद्दौला का मकबरा कला की दृष्टि से उत्कृष्ट है। मुगल काल में साहित्य, संगीत, कला का विकास हुआ। हिंदी और उर्दू भाषा यहीं पर फली फूली। और हिंदी को भारत की राजकीय भाषा होने का गौरव मिला। हिंदी साहित्य के क्षेत्र में तुलसीदास, कबीर दास, रैदास ,सूरदास ,भारतेंदु हरिश्चंद्र, महावीर प्रसाद द्विवेदी, रामचंद्र शुक्ल, प्रेमचंद्र, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, मैथिलीशरण गुप्त, सुमित्रानंदन पंत, अज्ञेय, महादेवी वर्मा जैसे लेखकों ने अपनी रचनाओं से देश को समृद्ध किया। उर्दू साहित्य में रहीम, रसखान,  फिराक गोरखपुरी, जोश मलीहाबादी, अकबर इलाहाबादी, नजीर, वसीम बरेलवी ,चकबस्त प्रमुख रहे। 

     संगीत का विकास गुप्त काल में हुआ। एक मुद्रा पर समुद्रगुप्त को वीणा बजाते हुए चित्रित किया गया है। सितार और तबले का विकास भी यही हुआ। तानसेन और बैजू बावरा जैसे विश्व प्रसिद्ध संगीतज्ञ मुगल बादशाह अकबर के समय में थे। भारत के प्रमुख मंदिरों के समीप निर्मित मस्जिद तथा उत्तर प्रदेश के राजकीय चिन्ह पर मछली का चित्र भारत की गंगा जमुनी तहजीब एवं सभी धर्मों में आपसी समन्वय व मेल मिलाप की भावना का सुंदर दृश्य प्रस्तुत करता है। कालक्रम में भारत में ब्रिटिश सत्ता की स्थापना हुई। तब औपनिवेशिक शासन के विरोध में वृहद स्तर पर प्रथम क्रांति 10 मई 1857 में मेरठ में हुई। जिसमें रानी लक्ष्मीबाई ,झलकारी बाई, उदा देवी, बेगम हजरत महल, तात्या टोपे और नाना साहब की भूमिका काफी महत्वपूर्ण थी। 

    उत्तर प्रदेश, भारत की सांस्कृतिक धरोहर की आत्मा है। जिसकी संस्कृति के संवहन में तत्युगीन महापुरुषों, आचार्यों, ऋषियों तथा विचारकों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। जो न सिर्फ भारत अपितु विश्व में इसे उत्कृष्ट स्थान प्रदान करता है।

- डॉ कामिनी वर्मा, एसोसिएट प्रोफेसर, काशी नरेश राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय ज्ञानपुर, भदोही, उत्तर प्रदेश