"रूस-यूक्रेन जंग" हुक्मरानों को समय रहते समझना होगा "जंग समस्या है समाधान नहीं"

दुनिया में आज हालात ऐसे बन गये हैं कि ताकतवर देशों के हुक्मरानों ने अगर अपना युद्ध के लिए उकसाने वाला रवैया और युद्ध को बढ़ावा देने वाला अपना रवैया तत्काल ही नहीं त्यागा तो भविष्य में स्थित बेहद भयावह हो सकती है।

रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते दुनिया पर हर पल तीसरे विश्वयुद्ध होने के घातक बादल मंडराने लगें हैं। इस जंग के चलते दो धड़ों में विभाजित दुनिया एक बार फिर से एक बहुत बड़े युद्ध के मुहाने पर अचानक से आकर खड़ी हो गयी है। दुनिया में आज हालात ऐसे बन गये हैं कि ताकतवर देशों के हुक्मरानों ने अगर अपना युद्ध के लिए उकसाने वाला रवैया और युद्ध को बढ़ावा देने वाला अपना रवैया तत्काल ही नहीं त्यागा तो भविष्य में स्थित बेहद भयावह हो सकती है। आज समय की मांग है कि दुनिया में अपनी चौधराहट चलाने वाले चंद ताकतवर देश रूस-यूक्रेन के युद्ध को जल्द से जल्द रोकने के लिए बातचीत के माध्यम से धरातल पर तत्काल प्रभावी सकारात्मक कदम उठाएं। क्योंकि रूस-यूक्रेन का युद्ध लंबा समय तक चलने कि स्थिति में भविष्य में इस युद्ध का दायरा रूस-यूक्रेन के साथ-साथ अन्य देशों की भागीदारी होने के चलते बढ़ने की बहुत प्रबल संभावना है, जिसकी वजह से युद्ध के चलते भविष्य में दुनिया भर में बहुत बड़े पैमाने पर जान-माल के नुकसान होने की संभावना बन सकती है, इसलिए इस ज्वलंत मसले से जुड़े हुए सभी पक्षों को समय रहते यह समझना ही होगा कि युद्ध किसी भी समस्या का समाधान नहीं है, बल्कि समस्या का समाधान बैठकर आपसी बातचीत से ही संभव है।

वैसे भी रूस-यूक्रेन के आपसी विवाद का अगर निष्पक्ष रूप से आंकलन करें तो कुछ माह पूर्व से लड़ने पर अमादा बैठे रूस-यूक्रेन के बीच हालात को बिगाड़ने में बहुत सारे देशों की अपने क्षणिक स्वार्थ के चलते बेहद महत्वपूर्ण नकारात्मक भूमिका रही है, उन चंद देशों के बडबोले हुक्मरानों ने पल-पल रूस-यूक्रेन के तनाव को युद्ध की आग के रूप में भड़काने के लिए उसमें अपने बेहद तल्ख जहरीले उकसाने वाले बयानों का घी व कपूर डालकर उसको माचिस की जलती तिल्ली दिखाने का कार्य बखूबी किया है। आज के समय में यह कहना बिल्कुल भी अनुचित नहीं है कि जिस तरह से रूस-यूक्रेन के हुक्मरानों की एक जिद्द ने एक-दूसरे के देशों की जनता के ऊपर युद्ध थोपा है, उसको दुनिया के चौधरी बनने वाले चंद पश्चिमी देशों, नाटो व अमेरिका ने जमकर भड़का कर युद्ध में तब्दील करने का कार्य किया है। आज की परिस्थितियों में दुनिया के शांतिप्रिय देशों के लिए सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि रूस-यूक्रेन के युद्ध को रोकने के लिए यह चंद देश अब भी धरातल पर सकारात्मक पहल नहीं कर रहे हैं, बल्कि उसके विपरीत यह देश अब भी हथियार देने की बात करके युद्ध की आग को ओर तेजी से भड़काने का कार्य कर रहे हैं। हालांकि इस तरह के हालात से अब यह स्पष्ट हो गया है चंद देशों के हुक्मरानों का लक्ष्य युद्ध भड़का कर अपने देशों के निर्मित हथियारों की तिजारत करके अपनी तिजोरी भरने का ही रहता है। वैसे भी देखा जाये तो कहीं ना कहीं इन चंद देशों के बडबोले हुक्मरानों की युद्ध में हर तरह की मदद करने के आश्वासन के झांसे में आकर रूस-यूक्रेन का युद्ध शुरू हुआ है और अब दुनिया के इन चंद ताकतवर देशों के हुक्मरान अपने आलीशान महलों में बैठकर पल-पल दर्दनाक मौत मरती दोनों  देशों की जनता व मानवता की हत्या का तमाशा देख रहे हैं।

वहीं रूस की सेना यूक्रेन की राजधानी कीव पर कब्जा जमाने की धुन में उस तक पहुंच चुकी है, दूसरी तरफ शुक्रवार देर रात (भारतीय समयानुसार) यूक्रेन के ख़िलाफ़ रूस के द्वारा चलाये गये विशेष सैन्य अभियान को लेकर "संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद" की एक अहम बैठक आयोजित हुई, जिस बैठक में यूक्रेन पर रूस के हमले के ख़िलाफ़ प्रस्ताव पेश किया गया, जिसमें 15 सदस्य देशों को वोटिंग करनी थी, जिसमें प्रस्ताव के पक्ष में 11 सदस्यों ने वोट किया था, लेकिन भारत, चीन और यूएई ने वोटिंग में हिस्सा  ही नहीं लिया था और रूस ने अपनी वीटो पावर का इस्तेमाल किया था। हालांकि भारत इस मसले पर लगातार निष्पक्ष रूप से तटस्थ रहकर दोनों देशों के राष्ट्रपति से बातकर के संयम बरतने की निरंतर अपील कर रहा है और कुछ ऐसा न करने को कह रहा है जिससे कि अब स्थिति और अधिक ना बिगड़े। भारत दोनों देशों से लगातार अपील कर रहा है कि हिंसा और दुश्मनी को तुरंत ख़त्म करने के लिए सभी तरह की कोशिशें की जाएं। वैसे भी देखा जाये तो मतभेद और आपसी विवादों को निपटाने के लिए युद्ध नहीं बल्कि बातचीत ही एकमात्र सबसे कारगर ज़रिया है, हालांकि यह रास्ता चाहें कितना भी मुश्किल व लंबा क्यों न हो लेकिन फिर भी उस पर ही चलना मानवता के बेहद हित में है। लेकिन अफसोस की बात यह है कि रूस-यूक्रेन ने आपसी बातचीत व कूटनीति का यह रास्ता छोड़ दिया गया है और युद्ध का रास्ता पकड़ लिया है, लेकिन उन्हें समय रहते ही यह समझना होगा कि इंसानी ज़िंदगी की कीमत पर कभी भी किसी भी समस्या का कोई हल नहीं निकाला जा सकता है, समस्या के निदान के लिए जंग के रास्ते को त्यागकर बातचीत व कूटनीति के रास्ते पर देरसबेर रूस-यूक्रेन को भी लौटना ही होगा। रूस-यूक्रेन दोनों देशों को दुनिया में चल रही समसामयिक वैश्विक व्यवस्था, संयुक्त राष्ट्र चार्टर, अंतरराष्ट्रीय क़ानून और अलग-अलग देशों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के सम्मान का ध्यान रखना होगा। वरना वह दिन दूर नहीं है जब यह मसला रूस-यूक्रेन युद्ध से अपना दायरा को बढ़ाकर के दुनिया को बेहद विचलित करने वाले एक विश्व युद्ध के मुहाने पर लाकर खड़ा कर सकता है।