1969 में पहली बार 14 बड़े बैंको का राष्ट्रीयकरण हुआ था। राष्ट्रीकरण के बाद बैंकिंग सेक्टर का व्यापक विस्तार हुआ। ये 19 जुलाई 1969 की बात है जब भारत में कार्यरत अधिकांश प्रमुख वाणिज्यिक बैंकों में से 14 का राष्ट्रीयकरण हुआ।
बैंक राष्ट्रीयकरण की प्रक्रिया
दूसरे विश्व युद्ध के बाद यूरोप में बैंक सरकारों के अधीन करने के विचार ने जन्म लिया। बैंक ऑफ इंग्लैंड का राष्ट्रीय करण हुआ।
भारत में भारतीय रिजर्व बैंक का राष्ट्रीयकरण करने के लिए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (सार्वजनिक स्वामित्व का हस्तांतरण) अधिनियम पारित किया गया था और परिणामस्वरूप 1 जनवरी, 1949 को आरबीआई का राष्ट्रीयकरण किया गया था।
इसी तरह वर्ष 1955 में इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया का राष्ट्रीयकरण हुआ और बाद में इसे भारतीय स्टेट बैंक के रूप में नामित किया गया, जो वर्तमान समय में सार्वजनिक क्षेत्र का सबसे बड़ा बैंक है।
यह भारतीय स्टेट बैंक अधिनियम 1955 द्वारा स्थापित किया गया था और आरबीआई के प्रमुख एजेंट के रूप में भी कार्य करता है और देश भर में बैंक लेनदेन को संभालने के लिए जिम्मेदार है।
इस अचानक राष्ट्रीयकरण के कारण, पूरे देश में बैंकों को अत्यधिक परिवर्तनों का सामना करना पड़ा जिसके कारण अंततः आर्थिक विकास हुआ।
बैंको का राष्ट्रीयकरण
1969 में पहली बार 14 बड़े बैंको का राष्ट्रीयकरण हुआ था। राष्ट्रीकरण के बाद बैंकिंग सेक्टर का व्यापक विस्तार हुआ। ये 19 जुलाई 1969 की बात है जब भारत में कार्यरत अधिकांश प्रमुख वाणिज्यिक बैंकों में से 14 का राष्ट्रीयकरण हुआ और फिर वर्ष 1980 में अन्य 6 बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया जिसने कुल संख्या को बढ़ाकर 20 कर दिया। तीसरा चरण वर्ष 1991 से शुरू होकर अब तक का है। इस अवधि में उदारीकरण की नीति का विधिवत पालन किया गया और इसके परिणामस्वरूप इन बैंकों की एक छोटी संख्या को लाइसेंस मिल गया। उन्हें नई पीढ़ी के तकनीक-प्रेमी बैंकों के रूप में जाना जाता था, जो बाद में ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स, इंडसइंड बैंक, यूटीआई बैंक, आईसीआईसीआई बैंक और एचडीएफसी बैंक में विलय हो गए। बैंकों के तीन क्षेत्रों यानी सरकारी, निजी, विदेशी ने अर्थव्यवस्था के समग्र विकास में अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान दिया। बैंकिंग नीतियों के उदारीकरण के परिणामस्वरूप, बहुत से निजी बैंक भी प्रभाव में आए।
राष्ट्रीयकरण की क्या आवश्यकता थी?
आर्थिक तौर पर उस वक्त ये महसूस किया जा रहा था कि ये निजी बैंक समाजिक विकास की प्रक्रिया में सहायक नहीं हो रहे थे। उस वक्त इन 14 बड़े बैंकों के पास देश की लगभग 80 फीसदी पूंजी थी। इनमें जमा पैसा उन्हीं सेक्टर में निवेश किया जा रहा था। जहां लाभ के ज्यादा मौके थे। सरकार चाहती थी कि इन पैसों का कृषि, लघु उद्योग और निर्यात में निवेश ममुकिन हो सके। एक रिपोर्ट के मुताबिक 1947 से लेकर 1955 तक 360 छोटे मोटे बैंक डूब गए थे। जिनमें लोगों का जमा करोड़ो रुपया डूब गया था। कुछ बैंक कालाबाजारी और जमाखोरी के धंधों में पैसा लगा रहे थे। सरकार ने इन हालातों में बैंकों की जिम्मेदारी अपने हाथों में लेने का फैसला किया। ताकि उनका इस्तेमाल सामाजिक विकास के काम में किया जा सके।
मोदी सरकार ने किया बैंकों का विलय
केंद्र सरकार के 10 सरकारी बैंको को मिलाकर चार नए बैंक बनाने का निर्णय लिया। 4 मार्च 2020 को वित्त मंत्री की बैठक में यह निर्णय लिया गया था। बैंक के विलय की योजना सबसे पहले दिसंबर 2018 में पेश की गई थी, जब आरबीआई ने कहा था कि अगर सरकारी बैंकों के विलय से बने बैंक इच्छित परिणाम हासिल कर लेते हैं तो भारत के भी कुछ बैंक वैश्विक स्तर के बैंकों में शामिल हो सकता है। साल 1991 के वक्त जब नरसिंह राव की सरकार थी और देश आर्थिक संकट से गुजर रहा था उस वक्त के वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने भी उस वक्त के रिजर्व बैंक के गवर्नर रहे ए नरसीमण से कहा था कि वो एक ऐसी कमेटी बनाए जिससे 20-25 सरकारी बैंकों की बजाए आठ--दस सरकारी बैंक रह जाए। लेकिन उस वक्त ये हो न सका। अप्रैल 2021 में 8 से अधिक सरकारी बैंकों का अन्य बड़े बैंकों में विलय किया गया।