जब पुतिन भीड़ में होते हैं तब वह चार स्तरीय गार्ड्स से घिरे रहते हैं लेकिन इसमें से सिर्फ एक सेक्शन को ही देखा जा सकता है।
हाइलाइट्स
- चार स्तरीय सुरक्षा घेरे में रहते हैं पुतिन, सिर्फ एक घेरा ही देता है दिखाई
- हर विदेशी दौरे से पहले एक क्रैक टीम करती है जांच, भीड़ में भी देती है सुरक्षा
- सब कुछ फेल होने पर भी एक बख्तरबंद गाड़ी रहती है तैयार, भारी हथियारों से लैस
- मॉस्को : रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन एक रहस्यमय जीवन जीते हैं। उनके परिवार और निजी जीवन के बारे में ज्यादा जानकारी सार्वजनिक रूस से उपलब्ध नहीं है। लोगों को जो भी पता है वह सिर्फ एक अनुमान है। जितना कड़ा पहरा पुतिन अपनी पर्सनल लाइफ पर लगाकर रखते हैं, उतनी ही कड़ी सुरक्षा में वह खुद भी रहते हैं। पुतिन 24/7 उच्च प्रशिक्षण वाले बॉडीगार्ड्स की एक टीम से घिरे रहते हैं। इस टीम के पास एक बुलेटप्रूफ ब्रीफकेस होता है और पुतिन को खतरा महसूस होने पर इन्हें किसी की भी जान लेने की छूट होती है।
- पुतिन 1999 से रूस पर राज कर रहे हैं। उनका शासनकाल बेपरवाह फैसलों और सख्त नीतियों से भरपूर रहा है। जाहिर है कि वह अपनी सुरक्षा को लेकर भी बेहद गंभीर और सतर्क रहते हैं। डेलीस्टार की रिपोर्ट के अनुसार पुतिन और अन्य हाई-रैंक अधिकारियों की सुरक्षा के लिए फेडेरल प्रोटेक्टिव सर्विस जिम्मेदार है जिसमें 50,000 कर्मचारी काम करते हैं। FPS के पास बिना किसी वारंट के तलाशी और निगरानी, गिरफ्तारी और अन्य सरकारी एजेंसियों को आदेश जारी करने का अधिकार है।
हर विदेशी दौरे से पहले पुतिन एक क्रैक टीम का गठन करते हैं जिसके गार्ड पहले से वहां पहुंचकर फोरेंसिक रूप से हर संभावित खतरे की जांच करते हैं। यह टीम होटल के कमरों जैसी बारीक चीज से लेकर पुतिन की सड़क यात्रा के लिए निर्धारित सड़कों की भी जांच करती है। जब पुतिन भीड़ के सामने स्टेज पर खड़े होकर भाषण दे रहे होते हैं तब भी 'जितना संभव हो' उतना सुरक्षित होते हैं। जब पुतिन भीड़ में होते हैं तब वह चार स्तरीय गार्ड्स से घिरे रहते हैं लेकिन इसमें से सिर्फ एक सेक्शन को ही देखा जा सकता है।
इस घेरे के पहले स्तर के गार्ड्स आम बॉडीगार्ड के कपड़ों में होते हैं और हर तरह के हमले के लिए तैयार रहते हैं। ये हर तरह के खतरे को लेकर पूरी तरह सतर्क रहते हैं और अक्सर बुलेटप्रूफ ब्रीफकेस या केवलर छाता लेकर चलते हैं जो पुतिन को गोलियों को बौछार से बचा सकते हैं। ये बॉडीगार्ड भी बुलेटप्रूफ जैकेट पहने होते हैं और इनके पास एक 9 एमएम गुरजा पिस्टल होती है जो एक मिनट में 40 राउंड फायर कर सकती है।
यूक्रेन जिस भौगोलिक इलाके में हैं, उसपर कई बार आक्रमण हुआ। मंगोल, पोलिश-लिथुआनियन कॉमनवेल्थ, ऑस्ट्रिया-हंगरी, ओटमॉन, रूस के जार... यूक्रेन पर बहुतों का शासन रहा है। 17वीं और 18वीं सदी में इसका इलाका पोलैंड और रूसी साम्राज्य के बाद बंट गया। 20वीं सदी में रूसी क्रांति के बाद, यूक्रेन की आजादी का आंदोलन शुरू हुआ। 23 जून 1917 को यूक्रेनियन रिपब्लिक को अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिली। 1922 में जब सोवियत यूनियन बना तो उसमें यूक्रेनियन SSR भी शामिल था। 1991 में सोवियत के विघटन के बाद यूक्रेन को फिर आजादी मिली।
यूक्रेन पूर्वी यूरोप का एक प्रमुख देश है। 2,782 किलोमीटर लंबी तटरेखा वाले यूक्रेन की सीमा कई देशों से लगती है। पूर्व और उत्तर-पूर्व में यूक्रेन की सीमा रूस से लगती है। यूक्रेन के उत्तर में ही बेलारूस है जिसने खुलकर रूस का समर्थन किया है। पश्चिम में पोलैंड, स्लोवाकिया और हंगरी हैं। यूक्रेन के दक्षिण में रोमानिया और मोलदोवा हैं। यहां का सबसे बड़ा शहर राजधानी कीव है।
- यूक्रेन पूरे यूरोप का सबसे गरीब देश है। गरीबी के अलावा भ्रष्टाचार यहां की सबसे बड़ी समस्या है।
- यूक्रेन की रैंकिंग विकासशील देश की है। मानव विकास सूचकांक में यूक्रेन 74वें स्थान पर है।
- यहां की जमीन काफी उपजाऊ है जिसके चलते यूक्रेन दुनिया के सबसे बड़े अनाज सप्लायर्स में शामिल हैं।
- GDP के आधार पर यूक्रेन की अर्थव्यवस्था दुनिया में 55वीं सबसे बड़ी है। PPP के आधार पर 40वां नंबर।
- यूक्रेन के पास संयुक्त राष्ट्र, काउंसिल ऑफ यूरोप जैसी प्रमुख संस्थाओं की सदस्यता है।
- यूक्रेन नैचरल गैस और पेट्रोलियम का उत्पादन और प्रोसेसिंग खुद करता है मगर अपनी ज्यादातर ऊर्जा जरूरतों के लिए रूस पर निर्भर है।
- यूक्रेन की 80% नैचरल गैस सप्लाई का आयात होता है, जिसमें रूस का बड़ा हिस्सा है।
- दोनों देशों के बीच विवाद की जड़ नाटो है। नाटो यानी नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन। इसे 1949 में शुरू किया गया था। यूक्रेन नाटो में शामिल होना चाहता है, लेकिन रूस नहीं चाहता कि ऐसा हो।
- तनाव यहीं से शुरू हुआ और अंजाम युद्ध तक आ पहुंचा। यह समझना जरूरी है कि यूक्रेन और रूस विवाद में नाटो की एंट्री कहां से हुई और रूस यूक्रेन के लिए इतना पागल क्यों हो गया?
- 1939 से 1945 के बीच दूसरा विश्व युद्ध हुआ। इसके बाद सोवियत संघ ने पूर्वी यूरोप के इलाकों से सेनाएं हटाने से इनकार कर दिया। 1948 में बर्लिन को भी घेर लिया। इसके बाद अमेरिका ने सोवियत संघ की विस्तारवादी नीति को रोकने के लिए 1949 में नाटो की स्थापना की।
- नाटो बना, तब इसके 12 सदस्य देश थे। अमेरिका के अलावा ब्रिटेन, फ्रांस, कनाडा, इटली, नीदरलैंड, आइसलैंड, बेल्जियम, लक्जमबर्ग, नॉर्वे, पुर्तगाल और डेनमार्क।
- आज इसमें 30 देश हैं। यह एक सैन्य गठबंधन है, जिसका मकसद साझा सुरक्षा नीति पर काम करना है। अगर कोई बाहरी देश किसी नाटो देश पर हमला करता है, तो उसे बाकी सदस्य देशों पर हुआ हमला माना जाएगा और उसकी रक्षा के लिए सभी देश मदद करेंगे।
दूसरा विश्व युद्ध खत्म होने के बाद दुनिया दो खेमों में बंट गई थी। दो सुपर पावर बन चुके थे। एक अमेरिका और दूसरा सोवियत संघ। 25 दिसंबर 1991 को सोवियत संघ टूट गया। इससे अलग होकर 15 नए देश बने। ये 15 देश थे, यूक्रेन, आर्मीनिया, अजरबैजान, बेलारूस, इस्टोनिया, जॉर्जिया, कजाकिस्तान, कीर्गिस्तान, लातविया, लिथुआनिया, मालदोवा, रूस, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान। इसके बाद दुनिया में अमेरिका एकमात्र सुपर पावर बचा। इससे अमेरिका के नेतृत्व वाला नाटो दायरा बढ़ाता चला गया। सोवियत संघ से टूटकर अलग बने देश धीरे-धीरे नाटो के सदस्य बनते चले गए। 2004 में इस्टोनिया, लातविया और लिथुआनिया नाटो में आ गए। 2008 में जॉर्जिया और यूक्रेन को भी नाटो में शामिल होने का न्योता दिया गया था, लेकिन दोनों देश सदस्य नहीं बन सके।
2014 के राष्ट्रपति चुनाव में यूक्रेन में विक्टर यानुकोविच की जीत हुई। वे रूस समर्थक माने जाते हैं। उनकी जीत के बाद यूक्रेन में विद्रोह हो गया। इसे ऑरेंज रिवॉल्यूशन कहा गया। प्रदर्शनकारी दोबारा गिनती की मांग कर रहे थे। तब रूस ने इन प्रदर्शनों के पीछे पश्चिमी देशों का हाथ होने का दावा किया। 2008 में विपक्षी नेता ने यूक्रेन के नाटो में शामिल होने का प्लान पेश किया। अमेरिका ने इसका समर्थन किया, लेकिन रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने विरोध किया।
नाटो ने जॉर्जिया और यूक्रेन को शामिल करने का ऐलान किया, लेकिन रूस ने जॉर्जिया पर हमला कर दिया और 4 दिन में उसके दो इलाकों पर कब्जा कर लिया। दरअसल, पुतिन को यह चिंता सता रही है कि अगर यूक्रेन नाटो से जुड़ जाता है तो रूस पूरी तरह इसके देशों से घिर जाएगा और उसे यह गवारा नहीं। पुतिन का तर्क है कि यूक्रेन नाटो में जाता है तो भविष्य में नाटो देश की मिसाइलें यूक्रेन की धरती पर फिट की जा सकेंगी, जो रूस के लिए बड़ी चुनौती हो सकती हैं।
सैन्य ताकत हो या रक्षा पर खर्च, दोनों मामलों में रूस और नाटो का कोई मुकाबला नहीं है। नाटो के मुताबिक, 2021 में सभी 30 देशों का अनुमानित संयुक्त खर्च 1,174 अरब डॉलर से ज्यादा का है। 2020 में नाटो के देशों ने 1,106 अरब डॉलर खर्च किए थे। रूस ने 2020 में रक्षा पर 61.7 अरब डॉलर का खर्च किया था। नाटो के 40 हजार से ज्यादा सैनिक कभी भी लामबंद होने के लिए तैयार हैं। अगर युद्ध में नाटो सीधे शामिल हुआ तो उसके पास 33 लाख से ज्यादा जवान हैं। रूस के पास 12 लाख की सेना है, जिसमें से 8 लाख जवान सक्रिय हैं।
समय समय पर पुतिन कहते रहे हैं कि यूक्रेन भाषा, संस्कृति और राजनीतिक नजरिए से रूस का ही हिस्सा है। रूस चाहता है कि पूर्वी यूरोप में नाटो अपना विस्तार बंद करे। पुतिन यूक्रेन के नाटो में शामिल न होने की गारंटी मांग रहे हैं। वह कह चुके, 'हमें कोई बात नहीं करनी, हमें गारंटी चाहिए तुरंत। क्या हम अमेरिकी बॉर्डर पर मिसाइलें तैनात कर रहे हैं? नहीं, हम नहीं कर रहे, बल्कि वे हमारे घर आए और हमारी दहलीज पर मिसाइलें खड़ी कर दीं।' पुतिन चाहते हैं कि पूर्वी यूरोप में नाटो अपने विस्तार को 1997 के स्तर पर ले जाए और रूस के आसपास हथियारों की तैनाती बंद करे। रूस ने उन 14 देशों को नाटो का सदस्य बनाने को भी चुनौती दी है जो वार्सा संधि का हिस्सा थे। 1955 में नाटो के जवाब में वार्सा संधि हुई थी, जिसका मकसद सभी सदस्य देशों को सैन्य सुरक्षा मुहैया कराना था। हालांकि, सोवियत संघ के टूटने के बाद इस संधि का बहुत ज्यादा मतलब नहीं रह गया।
1917 से पहले रूस और यूक्रेन रूसी साम्राज्य का हिस्सा थे। रूसी क्रांति के बाद जब साम्राज्य बिखरा तो यूक्रेन ने खुद को स्वतंत्र देश घोषित कर दिया, लेकिन कुछ सालों बाद वह सोवियत संघ में शामिल हो गया। 1991 में यूक्रेन को आजादी मिली। यूक्रेन के दो हिस्से हैं, पहला पूर्वी और दूसरा पश्चिमी। पूर्वी यूक्रेन के लोग खुद को रूस के करीब मानते हैं तो पश्चिमी यूक्रेन के लिए यूरोपियन यूनियन करीब है। पूर्वी यूक्रेन के कई इलाकों पर रूस समर्थित अलगाववादियों का कब्जा है। यहीं के डोनेट्स्क और लुहांस्क को भी रूस ने अलग देश के तौर पर मान्यता दे दी है। 2014 में रूस ने हमला कर क्रीमिया को अपने देश में मिला लिया था। यूक्रेन कह चुका है कि हम नाटो के करीब जाएं तो रूस को अड़ंगा डालने का हक नहीं। लेकिन रूस यूक्रेन पर हर तरह के दबाव डाल रहा है।
सब कुछ फेल होने पर तैयार रहता है प्लान-बी
सुरक्षा घेरे की दूसरी परत पुतिन से कुछ दूरी पर भीड़ में होती है। ये अंडरकवर गार्ड्स साधारण कपड़ों में मौजूद होते हैं और पुतिन की तरफ बढ़ते किसी भी खतरे को देखकर इन्हें तत्काल कार्रवाई करने की छूट होती है। गार्ड्स का तीसरा घेरा भीड़ के किनारे पर और चौथा छतों पर स्नाइपर्स के रूप में मौजूद होता है जिन्हें किसी भी खतरे को तुरंत 'सूंघ लेने' के आदेश होता है। अगर ये सभी परतें फेल भी हो जाएं तो भी पुतिन के निकट एक बख्तरबंद कार मौजूद होती है जो भारी मिलिट्री अटैचमेंट से लैस होती है।