क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता। 9837117141
जीवन को सुंदर बनाना सीखिए
आप कंजूस मत बनिए । "जोड़ने, जमा करने के चक्कर से बचकर "उदारता" का दरवाजा खुला रखिए ।" आप खुदगर्ज मत बनिए । दूसरों की "सेवा सहायता" के लिए भी प्रयत्नशील रहिए । आप रूखापन धारण मत कीजिए । स्वयं "प्रसन्न" रहने और दूसरों को "प्रसन्न" करने का उद्योग किया कीजिए । आप शुष्क और नीरस मत बनिए, अपने हृदय में "कोमलता", "दया", "करुणा", "भ्रातृभाव" के भावों को प्रवाहित किया कीजिए । आप उजड्ड और अभिमानी मत बनिए, दूसरों का स्वागत-सत्कार "मधुर भाषण" से, "विनम्र व्यवहार" से संतुष्ट करते रहिए । आप कृतघ्न मत बनिए, किसी के किए हुए "उपकार" को भूलिए मत और उसे समय-समय पर धन्यवाद पूर्वक प्रकट करते हुए, "प्रत्युपकार" के लिए प्रयत्नशील रहा कीजिए । अपने क्षेत्र को दोष मत लगाइए, वरन् पवित्र मानिए । अपने शरीर को, अपने परिवार को, अपने कार्य को, अपने स्वजन संबंधियों को, अपनी मातृभूमि को तुच्छ एवं घृणित मत समझिए, वरन् उसमें "पवित्रता", "श्रेष्ठता" और "सात्विकता" की तत्वों को ढूँढ-ढूँढ कर विकसित कीजिए । कुरूपता गंदगी और अंधकार को हटाकर सौंदर्य, स्वच्छता और प्रकाश का प्रसार करिए।हे आत्मन ! प्रेम की वीणा बजाते हुए जीवन को "संगीतमय" बनाओ, इसे एक "सुंदर चित्र" के रूप में उपस्थित करो । जिंदगी को एक भावुक कविता के रूप में रच डालो । "प्रेम" का मधु रस पान करो, खय्याम की तरह अपने प्याले को छाती से चिपकाए रहो, हाथ से मत छूटने दो । "प्रेम" करो ! अपने आप से "प्रेम" करो, दूसरों से "प्रेम" करो, विश्व ब्रह्मांड में बिखरे हुए मूर्तिमान परमेश्वर से "प्रेम" करो । मनुष्यों ! "प्रेम" करो, यदि जीवन का अमृत रस चखना चाहते हो तो "प्रेम" करो । अपने अंतःकरण को "कोमल" बनाओ, "स्नेह" से उसे भर लो । इस पाठ पर बार-बार विचार करो और बार-बार अंतःकरण में गहराई तक उतारने की अनवरत साधना करते रहो..!!