क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता। 9837117141
बता दें कि डेटा सोनिफिकेशन, सोनिफिकेशन का उपयोग करके डेटा को ध्वनि के रूप में प्रस्तुत करना होता है। इसे इंडिया इन पिक्सल (आईआईपी) द्वारा ट्विटर पर पोस्ट किया गया है, जिसे पीएम नरेंद्र मोदी ने बेहद पसंद किया है।
# जानिए, क्या होता है डेटा सोनिफिकेशन?
डेटा सोनिफिकेशन, सोनिफिकेशन का उपयोग करके डेटा को ध्वनि के रूप में प्रस्तुत करना होता है। डेटा सोनिफिकेशन की एक सामान्य प्रक्रिया में किसी डेटासेट की डिजिटल मीडिया को सॉफ्टवेयर सिंथेसाइज़र और एक डिजिटल-टू- एनालॉग कन्वर्टर पर डायरेक्ट किया जाता है। ताकि ये लोगों द्वारा एक्सपीरिएंस किए जाने के लिए साउंड प्रोड्यूस करे। दूसरे शब्दों में कहें तो, डेटा सोनिफिकेशन के लिए सामान्य प्रक्रिया एक सॉफ्टवेयर सिंथेसाइज़र के माध्यम से एक डेटासेट के डिजिटल मीडिया को निर्देशित कर रही है और एक डिजिटल-से-एनालॉग कनवर्टर में मनुष्यों के अनुभव के लिए ध्वनि उत्पन्न करने के लिए है।
डेटा सोनिफिकेशन के अनुप्रयोगों में स्टार निर्माण के खगोल विज्ञान अध्ययन, क्लस्टर विश्लेषण की व्याख्या और भूविज्ञान शामिल हैं। इससे जुड़ीं विभिन्न परियोजनाएं वैज्ञानिकों और संगीतकारों के बीच सहयोग के रूप में सोनिफिकेशन के उत्पादन का वर्णन करती हैं। डेटा विज़ुअलाइज़ेशन का उपयोग करने के लिए एक लक्षित जनसांख्यिकीय डेटा विज़ुअलाइज़ेशन की दुर्गमता के कारण नेत्रहीन समुदाय है।
# क्या होता है सोनिफिकेशन?
किसी इंफॉर्मेशन को रिप्रेजेंट करने के लिए नॉन-स्पीच ऑडियो का इस्तेमाल करना सोनिफिकेशन कहलाता है। उदाहरणतया, आप किसी तरह का डेटा लें और इससे साउंड क्रिएट करें, ये सोनिफिकेशन होगा। सोनिफिकेशन का उपयोग करके डेटा को ध्वनि के रूप में प्रस्तुत करना है। यह डेटा विज़ुअलाइज़ेशन के अधिक स्थापित अभ्यास के श्रवण समकक्ष है।
# नासा ने अंतरिक्ष में चलाया है अनूठा सोनिफिकेशन प्रोजेक्ट
बता दें कि नासा ने आकाशगंगा की रोशनी को संगीत में बदल दिया है, जिससे इस प्रोजेक्ट की मदद से पहली बार आकाशगंगा को आमलोग सुन सकेंगे। अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा ने चंद्र एक्स-रे वेधशाला, हब्बल टेलिस्कोप और स्पिट्जर टेलिस्कोप से ली गईं आकाशगंगा की तस्वीरों को दिखाया। जिससे पता चला कि आकाशगंगा की अलग-अलग तस्वीरें अलग-अलग तरह का साउंड दे रही हैं।
मसलन, ब्रह्मांड में मौजूद आकाशगंगा से निकलने वाली रोशनी को अब आवाज के रूप में सुनकर समझा जा सकता है। आकाशगंगा में जितनी रोशनी होगी, आवाज में उतार-चढ़ाव उतना ही बढ़ता जाएगा। जैसे रोशनी कम होगी, आवाज का उतार-चढ़ाव घटेगा। इस तरह की तकनीक को सोनिफिकेशन कहते हैं। यह डाटा को साउंड में तब्दील करने की प्रक्रिया है। अमेरिकन स्पेस एजेंसी नासा ने इस प्रोजेक्ट की शुरुआत की है। इस प्रोजेक्ट की मदद से पहली बार आकाशगंगा को आम लोग सुन सकेंगे।
# नासा ने भी ट्विटर पर शेयर किए थे वीडियो
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने भी ट्विटर पर वीडियो शेयर किया है। वीडियो में आकाशगंगा की तस्वीर पर साउंड बाएं से दाईं ओर बढ़ता है। जिससे पता चलता है कि कहां पर कितनी रोशनी है। जैसे ही यह तेज रोशनी के करीब पहुंचता है, इसके साउंड में बदलाव आता है। नासा के मुताबिक, यूजर 400 प्रकाश वर्ष दूर से दिखने वाली तस्वीर को साउंड के रूप में सुन सकता है। ये तस्वीरें चंद्रा एक्स-रे वेधशाला, हब्बल टेलिस्कोप और स्पिट्जर टेलिस्कोप से ली गई हैं। आकाशगंगा की अलग-अलग तस्वीरें अलग-अलग तरह का साउंड दे रही हैं।
# जानिए, क्या है आकाशगंगा
इसे आसान भाषा में ऐसे समझ सकते हैं कि हम पृथ्वी पर रहते हैं, यह ग्रह है। ऐसे सभी ग्रह सौर मंडल का हिस्सा हैं। सौर मंडल आकाशगंगा का एक छोटा सा हिस्सा है। आकाशगंगा कई तरह की गैस, अरबों ग्रहों के सौर मंडल और धूल से मिलकर बनी है। आकाशगंगा के बीचों-बीच एक बहुत बड़ा गढ्डा है ब्लैक होल कहते हैं।
# आकाशगंगा की दूसरी तस्वीर का साउंड है साइंस और आर्ट का स्वर्ग में मिलन जैसा
गौरतलब है कि ट्विटर पर सोशल मीडिया यूजर्स इसे अमेजिंग टेक्नोलॉजी बता रहे हैं। एक यूजर ने दो टूक लिखा, यही कारण है कि मैं विंड चाइम्स को पसंद करता है। यह तस्वीर से एक छोटे म्यूजिक बॉक्स में तब्दील हो रहा है। वहीं, एक अन्य यूजर ने साफ साफ शब्दों में लिखा, यह साइंस और आर्ट का स्वर्ग में मिलन होने जैसा है। यही वजह है कि अब आमलोगों का रुझान भी इस ओर बढ़ा है और इसके बारे में आदी से अंत तक जानने-समझने की जिज्ञासा लोगों में बढ़ी है।
# यूपीआई के चलते देश में लगातार बढ़ रहा है डिजिटल लेन-देन
बता दें कि इस समय यूपीआई लेन-देन से 313 बैंक जुड़े हुए हैं। वहीं बीते एक साल में यूपीआई से लेन-देन 90 फीसदी बढ़ा है। अक्टूबर 2016 में महज 48 करोड़ रुपये से शुरू हुआ यूपीआई लेन-देन मार्च 2022 तक 9 लाख 60 हजार 581 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। आगे इसके और बढ़ने के प्रबल आसार हैं, क्योंकि यह लेन-देन को सहज और सुरक्षित बनाता है। देश में लगातार डिजिटल लेन-देन बढ़ रहा है, जिसके पीछे यूपीआई का बड़ा योगदान है।