पूजन सामिग्री बेचने वाली दुकानों पर पूजा का घी अलग सस्ता क्यों मिलता है …..??

 क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता। 9837117141


ऐसा देखा गया है .....पूजन सामिग्री बेचने वाली दुकानों पर पूजा का घी अलग सस्ता क्यों  मिलता है …..??
 

पूजा में  व्यर्थ निकृष्ट घृत कपड़े फल मिठाई क्यों चढ़ाते हो जो तुम खा नहीं सकते …?

जो तुम पहिन नही सकते ...?

जो तुम्हारे लिए व्यर्थ है 

वही सामिग्री पूजा में कुछ लोभी , लोलुप  व्यापारियों द्वारा बेची जा रही है और लालचियों भगतों द्वारा खरीदी और देव पूजन में भेंट की जा रही है,, 

यह कहानी नहीं बल्कि एक कड़वी सच्चाई है

अभी कॉलोनी में घुसते ही मन्दिर के पास वाली दुकान पर भीड़ देखकर याद आया कि लोग पूजा का सामान खरीदने उमड़े हैं।

इससे हमें यह ध्यान आया कि फिर से आप सबको सतर्क कर दें। लोग पूजा के लिए घी खरीदने जाने पर माँगते हैं..

 "भइया, पूजा वाला घी देना!"

ये पूजा वाला घी क्या होता है भई ? 🚩

आप जैसे अनजान और नादान लोगों को पुनः बता दें कि यह मरे हुए जानवरों की वसा(चर्बी) होती है जो घी के नाम पर बेची जा रही है। 

क्योंकि इसको कोई खाता तो है नहीं। तो सस्ते के नाम पर यही खरीद लेते हैं लोग कि "जलाना ही तो है।"

आप नौ दिन व्रत रहकर अपने आराध्य को घी के नाम पर मरे हुए जानवर की चर्बी अर्पित करना चाहते हैं ? बताइये ??

घी जलाते ही क्यों हैं पूजा, यज्ञ, हवन आदि में ?? 

इसका कारण कभी सोचे ??

शुद्ध घी को यदि जलाएंगे तो उसका धुआँ जहाँ जहाँ जाएगा, वहाँ वहाँ की वायु को शुद्ध करता जाएगा। यह सारे हानिकारक बैक्टीरिया, कीटाणु आदि को मार देता है। इसीलिए हमारे ज्ञानी ऋषि मुनियों ने इसको पूजा पाठ आदि के साथ जोड़ा था। 

अब जरा आप सोचिये! कि केवल  सस्ते के लालच में आप मरे हुए जानवरों की सड़ी गली चमड़ी/ वसा को पूजा, यज्ञ, हवन आदि के नाम पर अपने घर में जला रहे हैं। इससे कीटाणु मरेंगे ?? 

या और बुरी तरह फैलेंगे ??

और, यह सारा धंधा भी मलेच्छों का ही है। अब सोचिये कि वो आपके धर्म का सर्वनाश करने के लिए उस 'पूजा वाला घी' में और क्या क्या मिलाते होंगे। मतलब कि खुद के घर को जानवरों के श्मशान की दुर्गन्ध से भर भी लो, अपने छोटे छोटे बच्चों तथा बुजुर्गों के शरीर के भीतर बीमारी के कीटाणु भी भर दो, और साथ के साथ मलेच्छों का यह घी खरीद कर उन्हें और धनवान भी बनाओ।

अच्छा है न ?

खाने वाला शुद्ध घी ही जलाने में आप कितने गरीब हो जाएंगे भाई ? 

कितना कुन्तल घी आप जला देते हैं ?

चुनाव आपका है, इच्छा है आपकी...!!!

आचार्य अनिल जानी, मेरठ