क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता। 9837117141
अमेरिका और भारत के सम्बंध!
अचानक से बिना किसी पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अमेरिकन राष्ट्रपति जो बाइडन का भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से वर्चुअल मीटिंग करना और वह भी तब जब भारतीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह एवम भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर पहले ही अपने समकक्ष नेताओ से मुलाकात करने अमेरिका में ही मौजूद हो, अपने आप में किसी बड़ी बात की और संकेत करता है। रूस के यूक्रेन पर हमले एवम यु( के बाद जब अमेरिका ने नाटो संघ के साथ मिलकर रूस पर सैकड़ो प्रतिबंध लगा दिए है तथा यूनाइटेड नेशन एवम यूनाइटेड नेशन ह्यूमन राइट्स कमीशन में रूस के विरु( प्रस्ताव पारित करने के दौरान भारत के तटस्थ रहने के बावजूद अमेरिकी राष्ट्रपति की भारत के प्रधानमंत्री से यह मुलाकात अनेको रहस्यों को जन्म दे गई। अटकलों के विपरीत अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन द्वारा रूस यूक्रेन यु( मे भारत की भूमिका की प्रशंसा की तथा भारत के प्रति हर अमेरिकी सहयोग की बात करके राजनीतिक विश्लेषकों को चौंका दिया।
जबकि वास्तव में अमेरिकी राष्ट्रपति इस समय यूक्रेन के साथ खड़े होने की बात करके बुरी तरह फंस चुके है तथा इस माध्यम से रूस की घटती ताकत को एक बार पुनर्स्थापित करने में रूस की बड़ी मदद कर चुके है जबकी उनकी मंशा इस यु( के माध्यम से रूस को नीचा दिखाने की रही होगी, हाँ इतना अवश्य हुआ है कि नाटो संघ एवम अमेरिकी शह के चलते यूक्रेन रूस से हार मानने को तैयार नही है तथा यु( के 48 दिनों एवम अपनी पूर्णतया बर्बाद हो चुकी आधारभूत संरचना एवम अर्थव्यवस्था के बर्बाद हो जाने के बाद भी यु( विराम नही होने दे रहा है। अमेरिका ने अपने बयानों में भारत को भी धमकियां दी थी तथा ऐसा लग रहा था कि अमेरिका भारत से द्विपक्षीय संबंध खराब कर लेगा परन्तु इन सभी कयासों को धता बताकर अमेरिका का भारत पर डोरे डालना उसका एक ऐसा छिपा मकसद है जिसको साधना उसके लिए बेहद जरूरी हो गया है। अमेरिकन करेंसी डॉलर एक अन्तराष्ट्री करेंसी है तथा इसी
करेंसी की मजबूती के चलते अमेरिका विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनी हुई है लेकिन आज बदले हालातंो में जब भारत मे “ मेक इन इंडिया “ का नारा बुलंद हुआ तो भारत ने हथियारों के आयात जिसमे वह अमेरिकी एवम रूसी हथियारों पर निर्भर था, में जबरदस्त कटौती करते हुए न केवल अपने यहां ब्रह्मोस जैसी खतरनाक मिसाइल बनाई अपितु इसके साथ ही अन्य हथियारों का भी भारी निर्यात शुरू करके अमेरिका जैसे हथियार उत्पादक देशों की नींद उड़ा दी तथा अपने मात्र 2000 करोड़ के निर्यात को 120000 करोड़ पर ला दिया है और यही अमेरिका की परेशानी का सबसे बड़ा सबब है क्योंकि अमेरिका मुख्यतया हथियार एवम नागरिक वायुयानों का ही निर्माण एवम निर्यात करके
अपनी भारी आमदनी करता रहा है और भारत के अतिरिक्त सऊदी अरब जैसे मित्र देशांे से आर्थिक लाभ उठा रहा था जिसमे भारत द्वारा सऊदी अरब को ब्रह्मोस मिसाइल को निर्यात करने से अमरिकी एकछत्र राज्य में सेंध लग गयी।
कुल मिलाकर अमेरिका में निर्यात 21ः घट कर 132 बिलियन डॉलर पर आ गया है जबकि उसका कुल आयात बढ़ कर 90 मिलियन डॉलर प्रतिमाह हो चला है अर्थात कुल मिलाकर “लेंस आफ पेमेंट” की दिक्कत आने लगी तथा उसे अपनी करेंसी को पूर्व की भांति अक्षुण बनाये रखने में पसीने आने लगे है त्तब मध्य पूर्व एशियन देशांे एवम साउदी अरब एवम रूस में भारतीय रुपये को मान्यता मिल जाने से अमेरिका को खतरा सताने लगा और दबी कारण बाइडन
को मोदी के साथ बातचीत करने के लिए विस्मित करने लगा। परिणाम कुछ ही हो परन्तु इस घटनाक्रम से भारत की स्थिति बेहद मजबूत राष्ट्र की निकल कर आई है जो अपने निर्णय स्वयम लेने में सक्षम है तथा देश के दुश्मनों को उन्ही के ठिकानों तक पहुंच कर उनको घर मे ही घुसकर मारता है। क्या विदेश नीति और क्या राष्ट्रनीति, मोदी है तो मुमकिन है, जरा सोचिए.....
(लेखक एक स्वतंत्रत उद्यमी, विचारक एवम स्तंभकार है।)