एक जीवन ऐसा भी - वीर सावरकर

  क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता। 9837117141

एक जीवन ऐसा भी-वीर सावरकर  


वीर विनायक दामोदर सावरकर दो आजन्म कारावास की सजा पाकर कालेपानी नामक कुख्यात अंडमान की सेल्युलर जेल में बन्द थे। वहाँ पूरे भारत से तरह-तरह के अपराधों में सजा पाकर आये बन्दी भी थे। सावरकर उनमें सर्वाधिक शिक्षित थे। वे कोल्हू पेरना, नारियल की रस्सी बँटना जैसे सभी कठोर कार्य करते थे। इसके बाद भी उन्हें अमानवीय यातनाएँ दी जाती थीं।

भारत की एकात्मता के लिए हिन्दी की उपयोगिता समझकर उन्होंने खाली समय में बन्दियों को हिन्दी पढ़ाना प्रारम्भ किया। उन्होंने अधिकांश बन्दियों को एक ईश्वर, एक आत्मा, एक देश तथा एक सम्पर्क भाषा के लिए सहमत कर लिया। उनके प्रयास से अधिकांश बन्दियों ने प्राथमिक हिन्दी सीख ली और वे छोटी-छोटी पुस्तकें पढ़ने लगे। 

अब सावरकर जी ने उन्हें रामायण, महाभारत, गीता जैसे बड़े धर्मग्रन्थ पढ़ने को प्रेरित किया। उनके प्रयत्नों से जेल में एक छोटा पुस्तकालय भी स्थापित हो गया। इसके लिए बन्दियों ने ही अपनी जेब से पैसा देकर ‘पुस्तक कोष’ बनाया था।

जेल में बन्दियों द्वारा निकाले गये तेल, उसकी खली-बिनौले तथा नारियल की रस्सी आदि की बिक्री की जाती थी। इसके लिए जेल में एक विक्रय भण्डार बना था। जब सावरकर जी को जेल में रहते काफी समय हो गया, तो उनके अनुभव, शिक्षा और व्यवहार कुशलता को देखकर उन्हें इस भण्डार का प्रमुख बना दिया गया। इससे उनका सम्पर्क अंडमान के व्यापारियों और सामान खरीदने के लिए आने वाले उनके नौकरों से होने लगा।

वीर सावरकर ने उन सबको भी हिन्दी सीखने की प्रेरणा दी। वे उन्हें पुस्तकालय की हिन्दी पुस्तकें और उनके सरल अनुवाद भी देने लगे। इस प्रकार बन्दियों के साथ-साथ जेल कर्मचारी, स्थानीय व्यापारी तथा उनके परिजन हिन्दी सीख गये। अतः सब ओर हिन्दी का व्यापक प्रचलन हो गया। 

सावरकर जी के छूटने के बाद भी यह क्रम चलता रहा। यही कारण है कि आज भी केन्द्र शासित अंडमान-निकोबार द्वीपसमूह में हिन्दी बोलने वाले सर्वाधिक हैं और वहाँ की अधिकृत राजभाषा भी हिन्दी ही है।