क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता। 9837117141

गाजियाबाद। दिल्ली मेरठ एक्सप्रेस-वे के मुआवजे के घोटाले में जिला प्रशासन द्वारा बृहस्पतिवार रात को सिहानी गेट थाने में दर्ज कराई गई एफआइआर में तत्कालीन सब रजिस्ट्रार दो और तत्कालीन एडीएम भू अध्याप्ति घनश्याम सिंह आरोपित बन सकते हैं।
दरअसल, भूमि अधिग्रहण का नोटिस जारी होने के बाद भी अशोक सहकारी समिति द्वारा बैनामे किए गए, बैनामे पर रोक होने के बावजूद तत्कालीन सब रजिस्ट्रार ने बैनामा होने दिया। इसके बाद तत्कालीन एडीएम एलए ने बिना जांच किए ही 22 करोड़ रुपये का मुआवजा भी बांट दिया। एडीएम पूर्व में दर्ज मामले में भी आरोपित हैं और फरार चल रहे हैं।
अपर जिलाधिकारी प्रशासन ऋतु सुहास ने बताया कि मटियाला और रसूलपुर सिकरोड़ा गांव में दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेस-वे के लिए अधिग्रहीत की गई जमीन में रोक के बावजूद जमीन का बैनामा किया जाना गलत था, इस मामले में छह साल पहले ही कार्रवाई की जानी चाहिए थी।
वहीं इस संबंध में अपर जिलाधिकारी भू अध्याप्ति ने मुआवजा वितरण किया था, जबकि मुआवजा बांटने से पहले ही इसकी जांच आवश्यक थी कि 2012 में रोक लगने के बावजूद 2016 में बैनामा कैसे कर दिया गया?
ऐसे में सरकार को 22 करोड़ रुपये की आर्थिक क्षति नहीं होती। जमीन का बैनामा करने और मुआवजा बांटने में नियमों का पालन नहीं किया गया है। इस मामले में दर्ज कराई गई एफआइआर में अन्य आरोपितों के नाम विवेचना के दौरान प्रकाश में आएंगे। सभी दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
बता दें कि गाजियाबाद में एडीएम एलए के पद पर कार्यरत रहे घनश्याम सिंह का नाम मेरठ के तत्कालीन कमिश्नर प्रभात कुमार की उस जांच रिपोर्ट में भी सामने आया था, जिसमें तत्कालीन जिलाधिकारी गाजियाबाद निधि केसरवानी और विमल कुमार शर्मा डीएमई और ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेस-वे के लिए अधिग्रहीत की गई जमीन में अनियमितता बरतने पर आरोपित बनाया गया था।