क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता। 9837117141
तरक्की का दामन छोड़ने में ही सुकून.....
हम सभी बेहतर किरदार में खुद को ढालना पसंद करते हैं।औरत होने पर तो ओर भी अथिक सम्भावना होती है ।
बेहतर और खूबसूरत किरदार खूब सजा सँवरा सुंदर लिबास से ढका बेशकीमती गहनों से लदा होता है ।
लेकिन भाईयों बहनों खबरें कुछ अलग ही तस्वीर पेश करती हैं।धरती का कौना कोई भी हो घर कैसा भी हो अदब के दायरे में आज का आदमी बेअदब के साथ बेशरम,बेरहम ,दरिन्दे की शकल में आता है तो उससे भी दो कदम आगे वह किसी भोली भाली मासूम बच्ची का कातिल भी होता है ।
आज की तस्वीर रह रहकर पिछले दौर में ले जाती है हमें जब हम सभ्यता की सीमाओं में जकड़े नहीं थे ।दिल के मालिक थे ।कहने को खुले में रहते थे ।लेकिन हैवानियत से परे थे ।हम खुश थे क्योंकि हमने अपने को किसी लिबास से ढका नहीं था जिसे कोई बेअदबी से उतार देता।
तब इज्ज्त आबरू और अस्मत की ईबारतें नहीं थी ।
आज सब कुछ है तो इज्ज़त लूटी जाने लगी ,आबरू बेआबरु होने लगीऔर अस्मत का आईना दुबारा न जुड़ने के लिए तोडा़ जाने लगा ।
यही तस्वीर तो बन रही है ।हम माँ को बेपरदा इस भूल में कर रहे हैं कि हमारी पैदाइश नंगेपन का अंजाम ही तो थी।इससे भी आगे बताना चाहते हैं कि कोई भी दुनिया में कपड़े पहनकर नहीं आता ।चिकित्सिका नर्स या दायी उसके बाद माँ होतीं हैं जो बच्चे को जन्म लेते ही देखतीं हैं ।उसके बाद साफ करके नहला कर कपड़ा पहनातीं हैं।और हम हैरान हैं कि वही बच्चा बड़ा होकर अपने को ढाँपने वाली को ही मौका मिला और निर्वस्त्र करने में कतई संकोच नहीं करता ?
अधिक नहीं थोडा़ ही है कि चलो हम फिर से जंगली बन जाएं जहाँ सभ्यता खो जाए ।तरक्की का दामन छोड़ने में ही सुकून है वरना उसकी आग की तपिश हमें जीने नहीं देगी और तपिश से पैदा घुटन हमें सांस नहीं लेने देगी।