क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता। 9837117141
प्रचलित अपने ही किस्सों में ऐकलव्य आया जिसे शूद्र होने की वजह से धनुर्विद्या नहीं दी गयी ।परंतु दृढ़ इच्छाशक्ति के चलते गुरु की मूर्ति बना कर अभ्यास आरम्भ किया और पारंगत हो गया ।परंतु नीयति ने गुरुदक्षिणा के चलते दाहिने हाथ का अंगूठा कटवा दिया ।
श्रेष्ठ धनुर्धर की प्रतियोगिता में कर्ण को प्रतिभागी नहीं बनने दिया ।
इन दोनों घटनाओं के पीछे उद्देश्य मात्र यही था कि अर्जुन को गुरु द्रोणाचार्य विश्व का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर स्थापित करना चाहते थे ।
अर्थात पक्षपात का रवैया आदि काल से लेकर आज तक चल रहा है ।जब कि समाज के सर्वांगीण विकास के लिए सम्पूर्ण राष्ट्र में समान पाठ्यक्रम व समान शिक्षा का प्रावधान होना चाहिए ।लेकिन जीवन के आरम्भिक काल से ही प्राथमिक शिक्षा के स्तरों में जमीन आसमान का अंतर होता है ।अर्थात वर्ग विभाजन समाज में शैक्षिक स्तर से आरम्भ होकर आगे तक चलता है ।आप ही सोचिए एक बच्चा टाटपट्टी पर बैठ कर रसोई घर की ओर ताकता है कि कब भोजन बनेगा और कब वह खाएगा ,कब उसे सरकार पुस्तकें ,वर्दी, देगी । सरकारी तंत्र में उनको बेचारों की श्रेणी में ही गिना जाता है ।यद्यपि आज विद्यालयों की सूरत में आमूल चूल परिवर्तन आया है शिक्षकों का वेतन भी बेहतर है परंतु उन बच्चों को कौनसा कलेक्टर बनना है यह मानसिकता अध्यापकों के दिमाग में ही नहीं समाज के दिमाग में भी स्थायी रूप से घर करी हुई है ।अपवाद में गुदड़ी के लाल सब जगह होते हैं ।
समाज में विशिष्ट वर्ग को विशिष्ट सुविधाएं आज ही नहीं पहले भी मिलती थी ।अजमेर में एक मेयो कोलेज जो आज भी है उसमें केवल राजपरिवार के बच्चे ही शिक्षा प्राप्त कर सकते थे यह विशेषता थी।
आज परिस्थितियों ने पलटा खाया है ।संविधान सबको समान दृष्टि से देखता है ।परंतु बच्चे की परवरिश कहाँ, कैसे और किस वातावरण में हुई है उसके व्यक्तित्व निर्माण में अहम भूमिका अदा करती है ।हमारा विचार है कि पब्लिक स्कूल और सरकारी स्कूल के मध्य की दीवार तोड़ने का समय आ गया है ।राष्ट्र को बुद्धिमान,मेहनती नागरिक देने के लिए अमीर और गरीब के बच्चे को समान सुविधाएं समान अवसर मिलने चाहिए ।
यदि ऐसा नहीं होता है तो प्रतिभाएं कुंठित होंगी क्योंकि सरकारी विशेष रूप से ग्रामीणांचल में विज्ञान एवं गणित के शिक्षक उपलब्ध नहीं होते ।जबकि उच्च शिक्षा के लिए ये विषय अति महत्वपूर्ण होते हैं ।
दूसरी ओर सुविधाओं में रहने वाले विद्यार्थियों का चरित्र और व्यक्तित्व इन से भिन्न रूप से विकसित होता है।
समानता में देश के भविष्य का विकास होता है ।यह आज जो फीस पर ,विभिन्न मदों की धनराशि पर विवाद उठते माता पिता सड़कों पर आकर संघर्ष करते हैं यह सब नहीं होता ।विशेष वर्ग का निर्माण करने वाले विद्यालयों की नींव धन पर आश्रित होती है ।उनको बनाने वाले शुल्क लेकर ही इतना बडा़ साम्राज्य स्थापित कर पाते हैं ।उसकी देखरेख में होने वाला धन भी अभिभावकों से ही वसूलना होता है ।दूसरे और आसान शब्दों में कहा जाए तो यही कहा जा सकता है कि वहाँ पैसा फैंको और बच्चों को शिक्षित करो ।
हमारा तो शिक्षा विभाग को यही सुझाव है कि ऐसे स्कूलों को अधिग्रहित करके अपने सरकारी विद्यालयों के साथ मिलाकर नये सिरे से शिक्षण आरम्भ करें और शिक्षकों की नियुक्ति और वेतन पर भी अपनी मोहर लगाए ।
अंत में कोरोना के कारण अब और भी नये सिरे से शिक्षण होने जा रहा है। परिणाम क्या होते हैं कह नहीं सकते हालात् हर हाल में विचारणीय होंगे नयी सोच के साथ।
अनिलासिंह आर्य