बीमार दरख्त (सम्पादकीय)

 

 

क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता। 9837117141

बीमार दरख्त

हरित दिल्ली का नारा बहुत पुराना है। यहां के प्राधिकरणों को इस बात पर नाज भी है कि यहां के हरे-भरे पेड़ दिल्ली की खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं। मगर इस हफ्ते सौ की रप्तार से हवा क्या चली कि इसने इन पेड़ों की सेहत का पर्दाफाश कर दिया। उस तूफान में जितने पेड़ गिरे, शायद उतने एक दिन में कभी नहीं गिरे होंगे। अब नगर निगम को चिंता सताने लगी है कि जिन पेड़ों को उसने विरासत का दर्जा दे रखा है, वे भी नष्ट हो जाएंगे। पिछले सात सालों में करीब तीन सौ विरासत वाले वृक्ष इसी तरह जमींदोज हो चुके हैं।

इसलिए अब एक बार फिर विचार होने लगा है कि इन पेड़ों की सेहत कैसे सुधारी जाए। पेड़ों के गिरने, उखड़ने और टूटने की वजहें तलाशी जा रही हैं। हालांकि यह पहला मौका नहीं है, जब दिल्ली के पेड़ों की सेहत को लेकर मंथन शुरू हुआ है। करीब सात-आठ साल पहले इसे लेकर दिल्ली उच्च न्यायालय ने नगर निगम को आदेश दिया था कि पेड़ों के चारों ओर कम से कम चार फुट जगह छोड़ना जरूरी है। यानी उनके तने के आसपास पक्की जमीन नहीं होनी चाहिए। तब आनन-फानन पेड़ों के आसपास की पक्की जगह खोद डाली गई थी। मगर फिर वही रवैया दिखने लगा है।

आंधी तूफान में मजबूत पेड़ों की शाखें भी टूट जाती हैं। मगर दिल्ली की समस्या केवल तूफान से जुड़ी नहीं है। यहां सामान्य से जरा तेज हवा चलने पर भी पेड़ टूट जाते हैं। शहरी क्षेत्रों में पेड़ों का गिरना बड़े हादसों और नुकसान का सबब बनता है। इस तरह पेड़ गिरने से दिल्ली में हर साल अनेक गाड़ियां टूट जाती हैं, तो कई इमारतों को नुकसान पहुंचता है। कई बार लोग भी घायल हो जाते या जान तक गंवा बैठते हैं।

इसलिए पेड़ों का गिरना न केवल पर्यावरण की दृष्टि से, बल्कि सुरक्षा की दृष्टि से भी बड़ी चुनौती है। मगर जैसा कि हमारे सरकारी महकमों की आदत है, प्राकृतिक आपदा को नियति मान कर उससे बचाव के उपाय तलाशने पर ध्यान नहीं देते, पेड़ों के गिरने को भी इसी मानसिकता के चलते नजरअंदाज किया जाता रहा है। दिल्ली या दूसरे शहरों में दरख्तों के टूटने, जड़ों से उखड़ने की वजहें किसी से छिपी नहीं हैं। मगर उनके समाधान के लिए गंभीरता से प्रयास नहीं किए जाते।

शहरी क्षेत्रों में इस कदर जमीन की ऊपरी सतह को कंक्रीट से भर दिया गया है कि मिट्टी वाली जमीन कहीं नजर ही नहीं आती। फिर प्रदूषण कम करने और सौंदर्यीकरण की मंशा से पेड़ लगाए जाते हैं। उन पेड़ों की जड़ों को फैलने की जगह मिलती नहीं। उनके चारों तरफ कंक्रीट भरी होती है। अदालती आदेश का पालन करते हुए जहां उनके तने के आसपास चार फुट की जगह छोड़ी जाती है, वह उनकी जड़ों तक आक्सीजन पहुंचने के लिए पर्याप्त नहीं होती।


इस तरह जब जड़ें न तो स्वाभाविक रूप से फैल पाती हैं और न उन्हें जरूरत भर की हवा मिल पाती है, तो उनके तने खोखले होने शुरू हो जाते हैं। वे ऊपर से फैल बेशक जाएं, पर उनमें अपना ही वजन उठा पाने की ताकत नहीं होती। जरा भी तेज हवा चलती है, तो वे धराशायी हो जाते हैं। पेड़ लगाना अच्छी बात है, मगर इस तरह उन्हें बीमार रख कर न तो पर्यावरण को स्वस्थ बनाया जा सकता है और न शहर को सुंदर।