क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता। 9837117141
मित्रों कल नंगला बेर में गंगा दशहरा पर आने जाने वालों को जल पिला कर पुण् कमाया जा रहा था। हमारे पति ने उनको समझाया कि भाई मेरे स्टील के ग्लास ही रख लो। पर्यावरण पर दुनिया जाग रही है और हम सो रहे हैं जागते हुए ।
पता नहीं उन्होंने सुझाव माना या नहीं ।जो ऐसा कार्यक्रम धर्म लाभ हेतु कर रहे हैं तो अधर्म क्यों?
क्षमता वान ही ऐसे आयोजन कर सकता है तो वह ग्लास स्टील या पीतल के भी खरीद सकता है ।
लेकिन हमें आसान यही लगता है और उनको मांजना होता है ।
सादा जल तो ओक से भी पीया जा सकता है लेकिन वह तो शर्बत है जो ग्लास से ही पीया जाएगा ।
यह कार्यक्रम मात्र विशेष दिन ही क्यों ?प्यास तो हर दिन और हर समय लगती है।तब एक ग्लास भी खरीद कर पीना होता है।
हमें याद है जयपुर में और किशनगढ़ रैनवाल में हर चौराहे पर प्याऊ होती थी जहाँ कितना भी पानो पीओ कोई पैसा नहीं देना होता था।
लेकिन वो अब गुजरे जमाने की बात हो गयी ।
प्यास की तलब तो अब भी होती है ।परंतु मिटाने के तौर तरीकों में बदलाव आ गया ।
भौतिकता की दौड़ में लगे मनुष्य की प्यास के अनेक रूप हो गये जो इंसानियत को सत्तर ताले बंद किए है और हैवान अपना नाच दिखा कर संस्कारों को मुँह चिढ़ा रहा है ।
किसी की भी भावनाओं को आहत करने का कोई इरादा नहीं ।क्योंकि समाज में बहुत कुछ है करने को ।जिससे जितना हो जाए तारीफे काबिल है जी ।
अनिलासिंह आर्य