क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता। 9837117141
अग्नि पथ बहुत आग बरसा रहे है गरमी में कि मौसम भी शरमा गया और बरस गया ।
ये कैसा विरोध है कि हम अपने ही राष्ट्र की सम्पत्ति को फूंक देते हैं। बड़े जनाब बड़े ही अक्लमंदी हैं देश के युवा को आंख मूंद कर आग के हवाले करने में तनिक भी संकोच नहीं करते यह सोच कर कि उनका भविष्य अंधकारमय हो सकता है जब वो किसी अपराध में पंजीकृत हो जाएंगे। आज हम अपने ही राष्ट्र के विरोध में जाते हैं हम भूल जाते हैं कि अब विदेशी शासन नहीं हैं जहाँ हम हिंसात्मक आंदोलन करके अपनी जायज या नाजायज मांग मनवा सकते हैं।
सरकार ने युवाओं के लिए रोजगार का अवसर दिया है जिसमें प्रतियोगी परीक्षा है। आप उत्तीर्ण होते हैं तो चयन होता है।जबरदस्ती तो नहीं है कि आपको सैना में जाना ही है।हम मानते हैं सब आंकड़े प्रस्तुत कर रहें हैं जिसमें लाभ बताया जा रहा है परंतु अनिवार्यता तो पसंद है।हम यह भी मानते हैं कि आज का युवा बहुत चिंतित है भविष्य की सुरक्षा को लेकर,स्थिर व स्थायी रोजगार की तलाश में भटक रहा है उच्च शिक्षा ग्रहण कर करके भी।
ऐसे में हम आपको याद दिलाना चाहते हैं कि लगभग सात या आठ वर्ष पूर्व चतुर्थ श्रेणी के पद के लिये दो तीन लाख ने आवेदन पत्र भरा था जिसमें स्नातक व परास्नातक प्राविधिक शिक्षा के अभ्यार्थी थे ।हार कर सरकार को परीक्षा का कार्यक्रम स्थगित करना पड़ा। आपको पता है सरकारी नौकरी में सुरक्षित भविष्य की कामना के कारण उच्च शिक्षा प्राप्त चयनित होने पर पहली दूसरी कक्षा को पढ़ाते हैं।
लाखों खर्च कर प्राप्त किया ज्ञान कालान्तर में धूल के नीचे दब कर विस्मृत हो जाता है।बहुतों को कह भी देते हैं कि पढ़े डाक्टरी बेचे तेल ये देखो किस्मत के खेल।
हम कैसे भूल जाते हैं कि चम्मच भर कर हमारे मुंह में कोई देने वाला नहीं। पुरुषार्थ तो स्वयं ही करना होगा। माता-पिता बड़ी मेहनत से अपने बच्चों को लायक बनाते हैं। उनके अरमानों पर ऐसी हरकतें करके पानी फेरने का कार्य मत कीजिए।
सरकार से अपील है कि राष्ट्र की सम्पत्ति को हानि पहुंचाने वालों से चिन्हित करके भरपाई करे।जोश या क्रोध में यह तो ज्ञान रहता है कि तोड़ फोड़ करनी है आग लगानी परंतु यह ऐसे में सजगता भी इतनी रहती है कि अपनी सम्पत्ति को हानि नहीं पहुंचाते।
हिंसक होने के अलावा भी विरोध प्रदर्शन हो सकता है।
हमें नहीं भूलना कि भारत वैसे ही अनेक स्तरों पर नाना तंगी के दौर से गुजर रहा है ऐसे में हम आर्थिक चोट देकर कमर तोड़ने का काम करते हैं तो देशद्रोही बनते हैं।
आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसित होने के लिए विचार करना होगा। चंद उंगलियों पर गिने जाने वालों की बात नहीं करते हम लेकिन यह तय है कि हर शख्स परेशान सा है।
क्रोध नहीं क्योंकि इससे तर्क शक्ति का ह्रास होता है शान्त मन से किसी निर्णय पर पहुँचा जा सकता है।
अंत में सोचिये सैना की नौकरी जहाँ मर मिटने का जज़्बा होता है वहाँ यह सब तोड़ फोड़ नहीं है।अपने उद्देश्य को पहचानिए।क्या हम राष्ट्र भक्ति से प्रेरित होकर जाना चाह रहे हैं या मात्र जीविकोपार्जन के लिए जाना चाहते हैं? जीविकोपार्जन के लिए बहुत से क्षेत्र हैं किस्मत आजमाने के लिए।
जो अल्प बुद्धि में वर्तमान हालातों पर विचार आया आपके समक्ष प्रस्तुत है।
किसी को भी ठेस पहुंचाने का कतई मंतव्य नहीं है।