क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता। 9837117141
कहर मचता है। हम हर घटना से दुखी हो जाते हैं । सोशलमीडिया हमें अधिक संवेदनशील बना देता है ।आए दिन होने वाली दरिंदगी पर दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा सरेआम मिले यही मांग चारों दिशाओं से आती है ।
मासूम बच्चियों के साथ हैवानियत के नंगे नाच को क्या नाम दिया जाए?किशोरी हो या युवती या प्रोढ़ा हो ।
मनोवैज्ञानिक के निरीक्षण का विषय है ।कि वो कौनसे दिमाग में उपजने वाले कारक हैं कि ऐसी घटनाएं घटती हैं ।हमारे अपने शहर में दो नाबालिग लड़कियों के साथ अनाचार और अत्याचार हुआ ।एक ओर सोशलमीडिया शांत रहा तो दूसरी ओर सामाजिक संगठनों के द्वारा चले अभियान से वो लापता बच्चियाँ वापस तो आयीं लेकिन उनके साथ क्या हुआ यह न बता पाईं । क्योंकि एक तो टुकड़ों में मिली और दूसरी क्षतविक्षत अवस्था में थी ।
दर्द दिल में होता है तो उफ भी निकलती है ।पीड़ित के लिए आवाज उठाने की भावुकता अच्छी बात है लेकिन एक बात हम जरूर कहना चाहेंगे या पूछना चाहेंगे ।अशोभनीय घटनाओं का विरोध और अपराधियों की गिरफ्तारी और सजा की आवाज विपक्ष ही क्यों उठाता है?दूसरी ओर जाति विशेष या धर्म विशेष के ही लोग धरना प्रदर्शन करते है क्यों?
हमारी सोच कहती है कि पीड़ित का कोई धर्म नहीं ,जाति नहीं, दल नहीं और क्षैत्र नहीं ।यही बात अपराधी पर भी लागू होनी चाहिए ।
हो सकता है कुछ के गले से हमारी बात न उतरे और कुछ को जच जाए ।
और अंत में हम पुलिस प्रशासन से भी पूछना चाहते हैं कि कार्रवाई करने में ढील क्यों बरतता है ? पीड़ित पक्ष को पहुँच और सिफारिश का सहारा क्यों लेना पड़ता है ?
कभी कभी तो अदालत के आदेश पर कार्यवाही होती है क्यों?
इन सबके साथ सिलसिला दरिंदगी का चलता ही जा रहा है खतम होने का नाम ही नहीं ले रहा।