क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता। 9837117141
संसार में प्रायः देखा जाता है, कि लोग बहुत से काम अच्छे करते हैं, और कुछ कुछ गलतियां भी करते रहते हैं। जब लोग अच्छा काम करते हैं, तब बड़े प्रसन्न होते हैं, और मन में सोचते हैं कि "हमें इसका पुण्य फल मिलेगा। ईश्वर हमारे कर्मों को देखता है। वह हमें सुख देगा।" यह बात ठीक है।
जब कोई व्यक्ति अच्छा काम करता है, तब कुछ स्वार्थी और मूर्ख लोग उसके अच्छे काम का विरोध भी करते हैं। उसे अनेक प्रकार से नुकसान भी पहुंचाते हैं। "ऐसी स्थिति में जो उसे हानि होती है, उसकी पूर्ति ईश्वर कर देता है। क्योंकि वह न्यायकारी है। इसलिए मूर्खों और दुष्टों को ईश्वर दंड भी अवश्य ही देता है।"
अब दूसरी बात यह है, कि "जब कोई व्यक्ति कोई गलत काम करता है, तो ईश्वर उसे भी देखता है। वह अच्छे कर्म का अच्छा फल देता है, और बुरे कर्म का बुरा फल भी अवश्य ही देता है। क्योंकि वह पक्षपात रहित न्यायकारी है।"
अब सोचने वाली बात यह है, कि जब कोई व्यक्ति अच्छा काम करता है, और कोई दुष्ट व्यक्ति उसके अच्छे काम का विरोध करता है, तब तो वह यह सोचता है, कि "ईश्वर मेरा रक्षक है। वह इस दुष्ट आदमी को देखता है। इसके कारण जो मेरी हानि हो रही है, उसकी पूर्ति भी ईश्वर मुझे कर देगा।"
परंतु वही व्यक्ति बुरा काम करते समय यह नहीं सोचता, कि "ईश्वर मुझे देख रहा है। समय आने पर वह मेरे इस बुरे कर्म का दंड भी अवश्य ही देगा।" तो ऐसा लापरवाही का व्यवहार करना अच्छा नहीं है। दोनों बातों को समान रूप से स्वीकार करना चाहिए।
यदि आप के नुकसान की पूर्ति ईश्वर करेगा, तो जब आप कोई ग़लत काम करते हैं, और किसी का नुकसान करते हैं, तब ईश्वर आप को दंड भी तो पूरा पूरा देगा.
"यदि मनुष्य इन दोनों पक्षों को याद रखे, ईश्वर के द्वारा दिए जाने वाले इनाम तथा क्षतिपूर्ति, और दंड को भी याद रखे, तो वह बुरे काम छोड़ देगा, अच्छे काम ही करेगा।"
और यदि सभी लोग ऐसा सोचें, तथा अच्छे काम करें, तो यह धरती स्वर्ग बन जाएगी। परन्तु संसार के व्यवहार को देखकर ऐसा लगता नहीं है, कि यह धरती स्वर्ग बनेगी। फिर भी आशावादी तो रहना ही चाहिए। "कम से कम ईश्वर को न्यायकारी मानकर, हम स्वयं तो अपना सुधार अवश्य कर ही लें। और हो सकता है कि कुछ बुद्धिमान लोग भी हमें देखकर शायद अपना सुधार कर लें।" "इसलिए मनुष्य को सदा अच्छे कर्म ही करने चाहिएं, और बुरे कर्मों को करने से बचना चाहिए।"