क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता। 9837117141
(सम्पादकीय)
फौज की कौन जात?
सर्वोच्च अदालत ने ‘अग्निपथ’ से जुड़े तमाम कानूनी विवादों को दिल्ली उच्च न्यायालय को सौंप दिया है। अब देश में कोई भी अन्य अदालत ‘अग्निपथ’ के मामलों की सुनवाई नहीं कर सकती। आखिरी फैसले तक पहुंचने से पहले सर्वोच्च अदालत दिल्ली हाईकोर्ट का अभिमत जानना चाहती है, लेकिन हमारी सियासी जमात में राजद, आम आदमी पार्टी (आप) और कांग्रेस ने ‘अग्निपथ’ भर्ती योजना को ‘जातिवाद’ से जोड़ दिया है। शिक्षा और बौद्धिक विवेक के स्तर पर अधकचरी राजनीति ने सवाल करने शुरू किए हैं कि जब सेना में आरक्षण की व्यवस्था ही नहीं है, तो भर्ती के आवेदकों से जाति प्रमाण-पत्र क्यों मांगे जा रहे हैं? राजद नेता तेजस्वी यादव ने तो यहां तक खोखले आरोप लगाए हैं कि चार साल के कार्यकाल के बाद जिन 25 फीसदी ‘अग्निवीरों’ को पात्रता और योग्यता के आधार पर चुना जाएगा, संघ और भाजपा जाति-धर्म देखकर सैनिकों की छंटनी कर सकें, लिहाजा जाति प्रमाण-पत्र लिए जा रहे हैं। सेना में जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्र, नस्ल आदि के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाता। सभी जवान एक साथ रहते हैं, एक साथ देश के लिए लड़ते हैं और एक साथ ही, एक ही प्रकार का खाना खाते हैं, यह निष्कर्ष हमारा नहीं, बल्कि उन जनरलों का है, जिन्होंने सेना में दशकों खपाए, युद्धों और ऑपरेशनों का नेतृत्व किया और असंख्य युवाओं की भर्तियां भी करते रहे। सेना किसी आम राजनेता या उसके अनाप-शनाप बयानों के लिए नहीं है। सेना भारतीय मातृभूमि की है। फौजी की कौन जात हो सकती है? खुद सेना ने स्पष्ट किया है कि भर्ती के लिए चयन-प्रक्रिया में जाति-धर्म की कोई भूमिका नहीं है। अलबत्ता यह ‘ऑपरेटिव’ पार्ट है। यानी प्रशासनिक कार्यों के मद्देनजर सैनिक की जाति और उसके धर्म की जानकारी ली जाती है। मसलन-कोई सैनिक युद्ध या किसी ऑपरेशन के दौरान ‘शहीद’ हो जाता है, तो उसके अंतिम संस्कार के संदर्भ में यह जानकारी अनिवार्य है।
सैनिक को किस रेजिमेंट में भेजना है, यह भी तय करना होता है, लेकिन जाति महत्त्वपूर्ण नहीं है। यदि सैनिक सिख, जाट, गोरखा, डोगरा आदि है, तो इन समुदायों में भी कई जातियां होती हैं, लेकिन रेजिमेंट समुदाय के आधार पर ही तय कर दिया जाता है। सेना ने इसी संदर्भ में एक हलफनामा सर्वोच्च अदालत में भी दाखिल कर रखा है। राजनीतिक दल तो सेना में विभिन्न रेजिमेंट्स को भी जातिवाद, क्षेत्रवाद से जोड़ कर आंकते हैं, जबकि रेजिमेंट्स सैन्य रणनीति का हिस्सा रहे हैं। सैनिकों को उसी तरह का प्रशिक्षण भी दिया जाता रहा है। अंग्रेजों ने सबसे पहले ‘मद्रास रेजिमेंट’ का गठन 1758 में किया। सिख रेजिमेंट का 1944 में गठन भी ब्रिटिश हुकूमत के दौरान किया गया। अंग्रेजों का भारत में जातिवाद से क्या सरोकार था? आज देश में पंजाब, सिख, डोगरा, जाट, राजपूताना, गोरखा, मराठा, गढ़वाल, महार, नागा आदि कई रेजिमेंट्स हैं। क्या वे जातियों के आधार पर ही बनाए गए हैं। जनरल शंकर प्रसाद का कहना है कि आज़ादी से पहले भी जाति के बारे में पूछा जाता था, 2019 के भर्ती फॉर्म में भी जाति का कॉलम था और ‘अग्निपथ’ में भी है। इसे लेकर भ्रम फैलाना या अफवाहें तैयार करना ‘अपराध’ है।
सेना ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, दलित, ओबीसी, आदिवासी के आधार पर भर्तियां नहीं करती। समुदाय, क्षेत्र, भाषा या राज्य आदि महत्त्वपूर्ण हैं, क्योंकि उन्हीं के आधार पर रेजिमेंट मिलते हैं। ‘अग्निपथ’ अखिल भारतीय स्तर की भर्ती योजना है। उसमें देश के किसी भी इलाके से कोई भी पात्र युवा भर्ती हो सकता है, लेकिन राजद, आप और कांग्रेस के ट्वीट विभाजित मानसिकता को दर्शाते हैं। ये दल संसद में बहस की मांग कर सकते हैं, क्योंकि यह उनका संवैधानिक अधिकार है, लेकिन खासकर नौजवानों को गुमराह करना ‘अपराध’ है। एक नीति, एक योजना, चार साल की भर्ती आदि को लेकर विपक्ष सरकार को कटघरे में खड़ा कर सकता है, लेकिन जाति के कॉलम पर फिजूल सवाल मत करें। इससे सेना का ही नुकसान होगा। सेना की एक ही मूल जाति है-भारत या हिंदुस्तान। विपक्ष के नेता कुछ अध्ययन भी कर लिया करें। ऐसा नहीं होना चाहिए कि किसी ने कोई भी मुद्दा बता दिया और विपक्ष ने हंगामा शुरू कर दिया। यह नगरपालिका नहीं, भारत की सर्वोच्च संसद है, विपक्ष भी उसकी गरिमा का हिस्सा है। भारतीय सेना में प्रविष्ट करने वाला हर नौजवान हिंदुस्तानी है तथा सभी जवानों की यही पहचान है। हर जवान जब दुश्मन से टकराता है तो भी उसकी यही पहचान होती है।