क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता। 9837117141
महंगाई से अब शिवभक्तों की कांवड़ भी अछूती नहीं रही। कांवड़ियों को कांवड़ खरीदने के लिए इस बार अपनी जेब ढीली करनी पड़ रही है क्योंकि कांवड़ बनाने में प्रयोग किया जाने वाला सामान काफी महंगा हो गया है। इस बार सबसे महंगी कांवड़ उत्तर प्रदेश में तैयार हो रही है। यह कांवड़ दिल्ली शाहदरा कांवड़ संघ द्वारा मेरठ में तैयार करवाई जा रही है।
देश में कई चीजें महंगी हो रही हैं। वहीं, महंगाई से अब शिवभक्तों की कांवड़ भी अछूती नहीं रही। कांवड़ियों को कांवड़ खरीदने के लिए इस बार अपनी जेब ढीली करनी पड़ रही है क्योंकि कांवड़ बनाने में प्रयोग किया जाने वाला सामान काफी महंगा हो गया है। 250 रुपये वाली कांवड़ 500 रुपये की हो गई है। कांवड़ बनाने में उपयोग होने वाला बांस, कपड़ा, सजावट का सामान, डंडा, टोकरी, आदि सबके दाम आसमान छू रहे हैं। इस बार सबसे महंगी कांवड़ 2.5 लाख में उत्तर प्रदेश में तैयार हो रही है। यह कांवड़ दिल्ली शाहदरा कांवड़ संघ द्वारा मेरठ में तैयार करवाई जा रही है। खास बात है कि दाम बढ़ने के बाद भी खरीदारी में कमी नहीं है। दिल्ली से लेकर गाजियाबाद, लखनऊ तक कांवड़ खरीदने के लिए लंबी लाइन लगती है।
कांवड़ के दाम
छीके वाले कांवड़- 500-600 रुपये
टोकरी वाली कांवड़- 600-700 रुपये
एक मंजिला कांवड़- 600-900 रुपये
दो मंजिला कांवड़- 1500-3000 रुपये
तीन मंजिला कांवड़- 3000-5000 रुपये
कांवड़ तब बनती है, जब फूल-माला, घंटी और घुंघरू से सजे दोनों किनारों पर वैदिक अनुष्ठान के साथ गंगाजल का भार पिटारियों में रखा जाता है। धूप-दीप की खुशबू, मुख में 'बोल बम' का नारा, मन में 'बाबा एक सहारा। ' भोले नाथ कांवड़ से गंगाजल चढ़ाने से सबसे ज्यादा प्रसन्न होते हैं।
काशी की कांवड़ यात्रा
कांवड़ बनाने में उपयोग होने वाले सामानों पर महंगाई की मार पड़ने के बाद भी कांवड़ियों में बाबा भोले के लिए प्रेम और उत्साह कम नहीं हुआ है। देवाधिदेव महादेव की नगरी काशी में बाबा विश्वनाथ के दर्शन के लिए यूं तो हर समय भीड़ रहती है, मगर सावन में दर्शन के लिए भक्तों का उत्साह और बढ़ जाता है। काशी पूरी तरह से शिवभक्ति के रंग में रंगी है।
कंधे पर कांवड़ उठाकर पहुंचते हैं शिव भक्त
कांवड़ यात्रा के दौरान शिव भक्त उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान से कांवड़ अपने कंधे पर उठाकर हरिद्वार, ऋषिकेश या आसपास के क्षेत्रों से गंगाजल भर कर ले जाते हैं। उससे वह अपने यहां के मंदिरों में भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं।