शुभसंध्या

 क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता 9837117141

शुभसंध्या 
संगठन बनता है समान सोच समान उद्देश्य  के साथ।जब नया होता है तो अन्य अनेक शंकाओं, सम्भावनाओं के साथ देखते हैं विचार धारा व लक्ष्य को ।परंतु कालांतर में कुछ जुड़ते हैं कुछ टूटते हैं । और सफर अपने बनाए रास्ते पर आगे बढ़ता रहता है ।संगठन के दो मार्ग होते हैं पहला स्वार्थ व दूसरा परमार्थ ।स्वार्थ की चर्चा नहीं हम परमार्थ की चर्चा करते हैं ।जिसमें सदस्यों को कुछ प्रतिफल अर्थात् पैसे का लाभ नहीं होता ।वरन अपने निजी समय से समय और क्षमतानुसार संसाधन भी संगठन को देना होता है । संगठन आर्थिक, सामाजिक, व्यापारिक, धार्मिक, जातीय,क्षैत्रिय, प्रांतीय  और राजनीतिक श्रेणी के होते हैं। 
जैसा कि पूर्व में कहा है कि संगठन देता नहीं लेता है ।
संगठन की प्रशासनिक व्यवस्था में लोकतंत्रीय प्रणाली रहती है तब तक स्वस्थ वातावरण रहता है ।सभी परस्पर ईर्ष्या द्वैष से परे केवल समर्पण भाव से काम करते हैं ।परंतु संगठन के स्थायित्व में मजबूती और विस्तार होने तथा सदस्यों के बढ़ने के साथ विकृतियों का समावेश भी होने लगता है ।प्रभुत्व की लालसा  और पैसे का रुआब कुछ को सर्वश्रेष्ठऔर कुछ को कनिष्ठ बनाने के लिए पर्याप्त है ।यहीं से मित्रों विघटन आरम्भ होने लगता है ।उत्साह व निरुत्साह का भाव आता जाता है ।कुंठाओं का जन्म होता है तो संतरे वाली स्थिति नजर आती है ।हम सभी बारम्बार आशा व उपेक्षा के वातावरण को प्रभावी व निष्प्रभावी करते हैं । कभी गिले शिकवे सुने और सुनाए जाते तो हाथ और दिल मिलाए जाते हैं ।
याद रखिए जिसने जन्म लिया उसकी गति और सदस्यों की संख्या जब तक सृष्टि है कम ज्यादा हो सकती है परंतु समाप्त नहीं हो सकता ।हाँ आप की इच्छा है आप उसमें रहना चाहें या नहीं ।संस्था समर्पण तन मन धन का यथायोग चाहती है ।वह उसके बदले में सम्मान् देती है सामाजिक पहचान देती है ।यदि उससे कोई धोखा करता है तो अपमान भी देती है ।
और अंत में मित्रों संस्था में स्थायित्व बड़ी तपस्या का परिणाम होता है तो अक्सर उसको खड़ा करने वाले दरकिनार कर दिए जाते हैं और साधन सम्पन्न ऊपर से आकर तुरंत उसपर हावी होकर सर्वेसर्वा बन बैठता है।उस मंच का स्वामी बन बैठता है जिसे बनाने के लिए कोई पसीना-पसीना हुआ था।
संगठन  में यदि सबको समान  सम्मान्  व तवज्जो दी जाती है सुझाव व कही बात को नजर अंदाज नहीं किया जाता तब स्वस्थ वातावरण रहता है और समाज के लिए निर्णय भी सटीक लिए जा सकते हैं।
जरूरी नहीं मित्रों आप सहमत ही हों ।कारण सब के अनुभव एक समान कैसे हो सकते है?
अनिलासिंह आर्य