गाजियाबाद जिले में महिला शिक्षा पर एक नजर

    क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता 9837117141

गाजियाबाद जिले में महिला शिक्षा पर एक नजर
आज को समझने के लिए अतीत में पहुंचना होता है।ठीक इसी तरह हम जब औरत की बात करते हैं तब अनेकों कालों की पुस्तक के पृष्ठ पलटते हैं। पाषाणचाल के उन्मुक्त जीवन जहाँ मर्यादा नहीं थी,संस्कृति और संस्कार से अपरिचित थे तथा  जीवन शैली की कोई व्याख्या नहीं थी।

मनुष्य सभ्यता की सीढ़ी चढ़ता हुआ परम्परा के दायरे में प्रतिबंधित होने लगा तब से स्त्री शिक्षा की स्थिति उसके सामाजिक स्तरानुसार ही उत्थान और पतन की राहों पर चलती रही। 
हम जानते हैं कि हमारे वेदों ने स्त्री को प्रथम शिक्षिका के पद पर आसीन किया।वह गर्भाधान से ही गर्भस्थ शिशु को अपने आचार विचार के साथ संस्कार देती है।शास्त्रार्थ करने वाली,युद्ध भूमि की सहकर्मी, जीवन के हर पहलू की सहधर्मिणी, नारी पूजनीय बनी,दुर्गा,सरस्वती, लक्ष्मी बनी लेकिन काल ने सब छीना तो मात्र हाड़ मांस का शरीर बनी।
 ऐसे में समाज का आधा अंग निष्क्रिय हुआ, लेकिन परिस्थितिनुसार उसकी क्रियाशीलता का वर्धन आरम्भ हुआ उसके जीवन में  ज्ञान रूपी दीप समाज सेवियों ने प्रज्ज्वलित किया।वह उस दीप को आंधी तूफान में भी अपने हाथ में  लेकर आज भी बालिका शिक्षा के लिए बढ़ती जा रही है। 
शिक्षा ही वह धन है जो खर्च करने से घटता नहीं बढ़ता है। 
गाजियाबाद जिले की बात करें  तो इसमें मोदीनगर विधानसभा,लोनी विधानसभा,  आंशिक पिलखुआ विधानसभा व मुरादनगर विधानसभा का क्षेत्र आता है।
शिक्षा के प्रति जागरूकता आजादी पूर्व ही हो गयी थी।विद्या मंदिर तो थे परंतु अलग से महिला शिक्षा का प्रचार प्रसार नहीं हुआ था ।फलस्वरूप साक्षरता प्रतिशत शून्य स्तर पर ही था क्योंकि वह उच्च वर्ग तक ही सीमित थी ।निम्न वर्ग तक साक्षरता की किरण नहीं पहुँच पायी थी।
अटलजी ने बालिका शिक्षा अनिवार्य तथा निशुल्क करके एक मील का पत्थर स्थापित किया था।
2011 में साक्षरता पर महिला का प्रतिशत 70॰61 था।
नगरीय शिक्षा प्रसार और ग्रामीण शिक्षा प्रसार में अंतर है।शहरों में  लड़कियों का 80% है वहीं ग्रामीणांचल में मुश्किल से 50% है।
समुदाय तथा जातिगत आधार से भी बालिका शिक्षा प्रतिशत में अंतर है।
निर्धनता तथा सम्पन्नता भी साक्षरता को प्रभावित करती है।
माँ की सोच तथा आसपास का वातावरण भी प्रभावी कारक है।
बालिका की स्वयं की आशा भी साक्षरता का कारक है।
दूरस्थ इलाके में यदि आवागमन के संसाधन,तथा विद्युत आपूर्ति बालिका शिक्षा को रफ्तार देते हैं।
शिक्षा का स्तर विद्यालय में उपलब्ध सुविधाओं की गुणवत्ता पर निर्भर करती है। वर्तमान सरकार ने  संज्ञान में लेते हुए कारगर कदम उठाए ही नहीं वरन् पुस्तकें,बस्ते,पोशाक,जूते आदि की व्यवस्था भी कर रही है।वजीफे,भोजन आदि की समुचित व्यवस्था है।
सब कुछ है परन्तु अभाव विद्यालय नहीं जाने देता ऐसी बेटियां मां बाप के मजदूरी पर जाने पर अपने छोटे भाई बहनों को तथा घर का काम देखती हैं। 
कुछ बेटियाँ छोटी मोटी मजदूरी कम पैसों पर धनाढ्य परिवारों में घरेलू कार्य करते हुए आर्थिक मदद करती हैं। 
कुछ लड़कियां सहशिक्षा के कारण  नहीं जा पातीं क्योंकि अभिभावक नहीं भेजना चाहते।
आठवीं तक की पढ़ाई के पश्चात शहर सुरक्षा कारण से या संसाधन अभाव के कारण बेटियाँ घर बैठ जातीं हैं।  
दसवीं के पश्चात शहर के विद्यालय मनपसंद विषयों के साथ  प्रवेश देने में आनाकानी करते हैं जिससे भी शिक्षा की ओर बढ़ते कदम रुक जाते हैं। 
चूंकि माता-पिता का मात्र उद्देश्य होता है कि बस अपने काम लायक पढ़ लें फिर विवाह कर दें।
देखने में आया है कि छात्राएँ तथा अभिभावक किसी ध्येय के साथ शिक्षार्जन करते व कराते हैं, उनका प्रतिशत मात्र एक या दो ही रहता है।
लोनी चूंकि दिल्ली के करीब है परंतु कृषि प्रधान वातावरण व ग्रामीण संस्कृति से अधिक जोड़ होने पर भी शिक्षा की ओर रुझान है। 
सरकार ने दीनदयाल उपाध्याय बालिका आवासीय विद्यालय बनवाए हमें लगता है ये कस्तूरबा गाँधी बालिका आवासीय विद्यालय की तर्ज पर ही बना है निडोरी गाँव में।जिसमें प्रतियोगी परीक्षा उत्तीर्ण करने पर प्रवेश छठी कक्षा में होता है।जहाँ  सब निशुल्क सुविधा होती है तथा बालिकाएं बारहवीं तक शिक्षा पाती हैं। गाजियाबाद जिले में ही जवाहर नवोदय विद्यालय भी है जो अमीपुर बढ़ायला गाँव में है। जिसमें लड़कियां उच्च स्तरीय शिक्षा ग्रहण कर रहीं  हैं। 
महिला महाविद्यालयों में बढ़ती छात्राओं की संख्या के कारण अन्य खोलने की अति आवश्यकता है।एक महाविद्यालय सारा गाँव में बन रहा है। 
एक जिले के गाँव में राजकीय कन्या इन्टर कॉलेज है जिसकी वजह से आस पास की बालिकाओं का साक्षरता प्रतिशत लगभग 80 तक पहुंचा है परन्तु आगे की शिक्षा रुक जाती है वह रुके ना इसके लिए अंग्रेजों के जमाने में  नील की खेती की भूमि का प्रस्ताव शासन के माध्यम से लखनऊ अनुभाग 1 में नौयत परिवर्तन हेतु गया हुआ है।23-12-2018 को पतला नगरपंचायथ आदरणीय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी को पूरी फ़ाईल हमने अपने हाथ से सौंपी थी अभी तक लम्बित है।
साक्षरता दर वृद्धि  में सरकारी विद्यालयों के साथ निजि विद्यालयों की भी भूमिका प्रशंसनीय है। आजकल अपने बच्चों को पेट काटकर अंग्रेजी माध्यम के विद्यालय में पढ़ाना पसंद करते हैं।जबकि  परीक्षा परिणाम में श्रेष्ठ पाठ्यक्रम व स्वाध्याय तथा प्रशिक्षित अध्यापकों के कारण ग्रामीण बच्चे बाजी मारते हैं। प्रत्येक विधा में प्रथम स्थान पाने वाली बेटियों के लिये ही नहीं सभी नौनिहालों के लिए निशुल्क शिक्षा, समान पाठ्यक्रम,इच्छित विषयों के साथ इच्छित संस्थान में प्रवेश पाने का अधिकार हो ,परिवार में रोजगार के अवसर सुव्यवस्थित हो,सुरक्षा का वातावरण हो तब बालिका शिक्षा 90 % हो सकती है।
हमारा ध्यान शिक्षा की गुणात्मकता पर केन्द्रित होना चाहिए।शिक्षण संस्थान वह स्थान है जहाँ से शिक्षा ग्रहण करके एक श्रेष्ठ नागरिक समाज को राष्ट्र को मिलता है जो परिवर्तन का पर्याय बनता है।
पहले रिश्ते के लिए  कहते थे कि लड़की रामायण बांच लेती है और चिट्ठी भी लिख लेती है ।परंतु आज बालिका शिक्षा दर के बढ़ते मुख से यही निकलता है कि बेटी नभ में विचरती है,पर्वतों की चोटियों पर तिरंगा फहराती है,धरती की लम्बाई नापती है तो समुद्र की गहराई में जाकर सांस लेती है।
मोदीनगर विधानसभा को हम आधुनिक तक्षशिला व नालंदा की संज्ञा दें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। यहां स्थानीय बालिकायें ही नहीं  वरन् सम्पूर्ण भारत से शिक्षा राजन हेतु छात्र छात्राएँ आती हैं। 
डाक्टर अनिला सिंह आर्य 
शोध व नीति प्रभारी (प्रमुख)
जिला गाजियाबाद