तीनों लोकों में है जिनकी महिमा

  क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता 983711714

तीनों लोकों  में है जिनकी महिमा


डॉ कामिनी वर्मा

ज्ञानपुर ( उत्तर प्रदेश )

तन को विभिन्न प्रकार के रंगों से सराबोर करके, मन मे नवजीवन सा उल्लास जगाता , समाज मे समरसता और भाईचारे की भावना का विकास करके बुराई पर अच्छाई की और अधर्म पर धर्म की जीत का संदेश देकर होली पर्व के जाते ही कानो में माता के जयकारे गूंजने की आहट सुनाई देने लगती है । नवरात्र के 9 दिनों में घण्टों  और घड़ियालों के नाद से देश का कोना कोना घनघना उठता है । ऐसे श्रद्धामय परिवेश में मन में अकुलाहट हो रही है माँ के दिव्य दर्शन और विराट स्वरूप से भिज्ञ होने की । देश भर में जिनकेे आयतन , आस्था और श्रद्धा का केन्द्र हुआ करते है ।

मन की इस अकुलाहट को दूर करने के लिए पुरातात्विक और आभिलेखिक साक्ष्यों पर दृष्टि डालने पर ज्ञात हुआ कि हिन्दू धर्म मे देवी की उपासना प्रागेतिहासिक युग से ही हो रही है। सैन्धवकाल में शक्ति सम्पन्न मातृदेवी की आराधना के स्पष्ट प्रमाण प्राप्त होते है।

वैदिक काल में समाज पुरुष प्रधानता की ओर अग्रसर होने लगा। यद्दपि इंद्र वरुण , रुद्र आदि देव प्रमुख रूप से प्रतिष्ठित हो गए तथापि ऋग्वेद में उषा, अदिति और वाग्देवी की स्तुति के प्रमाण मिलते है व वाग्देवी का ओजस्वी रूप भी प्रदर्शित होता है। ब्राहाण ग्रंथो पर दृष्टिपात करने पर शतपथ ब्राह्मण में 'अम्बिका' नाम की देवी का रुद्र की बहन तथा तैत्तरीय आरण्यक में रूद्र की पत्नी पार्वती के रूप में उल्लेख है।

महाकाव्य काल मे देवी का पूर्ण रूप से शक्तिसंपन्न रूप प्रतिष्ठित है। महाभारत में अर्जुन तो रामायण में राम युद्ध में विजय प्राप्ति की आकांक्षा से इनकी उपासना करते दिखाई पड़ते है । महाभारत में इसी संदर्भ में उल्लिखित है प्रातःकाल शक्ति का स्त्रोत का पाठ करने वाला युद्ध क्षेत्र में विजयी होता है !

महाभारत में अर्जुन तो रामायण में राम युद्ध में विजय प्राप्ति की आकांक्षा से इनकी उपासना करते दिखाई पड़ते है । महाभारत में इसी संदर्भ में उल्लिखित है प्रातःकाल शक्ति का स्त्रोत का पाठ करने वाला युद्ध क्षेत्र में विजयी होता है तथा एकांतिक रूप से लक्ष्मी को प्राप्त करता है । वर्तमान में इनकी उपासना शिव की पत्नी शिवा पार्वती , उमा गिरिजा के रूप में होने के साथ साथ वह स्वतन्त्र रूप से भी पूजित हैं। यह शिव की शक्ति, भक्तों की रक्षिका तथा शत्रुओं की विनाशिका है।शिव की सहचरी के रूप में इनका सौम्य रूप तथा दुर्गा के रूप में यह उग्र रूप में पूजित हैं, इनकी चरण धूल को लेकर ब्रह्मा विश्व का सृजन, विष्णु पालन तथा रुद्र संहार करते है। कामप्रधान रूप में वह त्रिपुर सुंदरी की संज्ञा में विभूषित है और अलौकिक सौंदर्य शालिनी है।

पुराणों में देवी उत्पत्ति के अनेकशः प्रकरण है। हरिवंश व विष्णु पुराण में विष्णु द्वारा प्रार्थित पाताल निवासिनी, काल रूपिणी , योग निद्रा, पृथ्वी पर यशोदा के घर मे जन्म लेकर कंस द्वारा उनको शिला पर प्रक्षिप्त करते ही उसके हाथ से मुक्त होकर विंध्याचल पर्वत पर पहुंचकर वहीं निवास करने की कथा वर्णित है । मार्कण्डेय पुराण में महिसासुर का वध करने के लिए  ब्रह्मा , शिव , विष्णु, इंद्र, चन्द्र , वरुण, सूर्य आदि देवताओं के तेज से देवी के जन्म लेने तथा महिषासुर एवं शुम्भ निशुम्भ का संहार करने का उल्लेख मिलता है । चंड मुण्ड का वध करने से चामुंडा तथा महिसासुर का मर्दन करने के कारण महिसासुर मर्दिनी के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक काल मे ही यह महाकाली , महालक्ष्मी तथा महासरस्वती के नाम से स्थापित हो गयी थी।

 नवरात्रि देवी की आराधना का विशेष काल है। ऐसी मान्यता है इन दिनों में यह स्वयं पृथ्वी आकर निवास करती है।