वृंदावन बिहारीलाल का हिसाब

क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता 983711714

वृंदावन बिहारीलाल का हिसाब


एक बार मैं ट्रेन से आ रहा था, मेरी साथ वाली सीट पर एक वृद्ध औरत बैठी थी जो लगातार रो रही थी...
मैंने बार-बार पूछा मईया क्या हुआ, मईया क्या हुआ?
बड़ी मिन्नतों के बाद मईया ने एक लिफाफा मेरे हाथ पर रख दिया। मैंने लिफाफा खोल कर देखा उसमें चार पेड़े, 200 रूपये और इत्र से सनी एक कपड़े की कातर थी।

मैंने मईया से पूछा, मईया ये क्या है?
मईया बोली मैं वृंदावन बिहारी जी के मंदिर गई थी, मैंने मंदिर की गुल्लक में 200 रूपये डाले और दर्शन के लिऐ आगे बिहारी जी के पास चली गई। वहाँ गोस्वामी जी ने मेरे हाथ मे एक पेड़ा रख दिया। मैंने गोस्वामी जी को कहा मुझे दो पेड़े दे दो पर गोस्वामी जी ने मना कर दिया। मैंने उससे गुस्से में कहा कि मैंने 200 रूपये डाले हैं, मुझे पेड़े भी दो चाहिए पर गोस्वामी जी नहीं माने। मैंने गुस्से में वो एक पेड़ा भी उन्हें वापिस दे दिया और बिहारी जी को कोसते हुए बाहर आ कर बैठ गई। 
मैं जैसे ही बाहर आई तभी एक बालक मेरे पास आया और बोला मईया मेरा प्रसाद पकड़ लो, मुझे जूते पहनने हैं। वो मुझे प्रसाद पकड़ा कर खुद जूते पहनने लगा और फिर हाथ धोने चला गया। लेकिन फिर वो वापस नहीं आया। मैं पागलों की तरह उसका इंतजार करती रही। काफी देर के बाद मैंने उस लिफाफे को खोल कर देखा, उसमें 200 रूपये, चार पेड़े और एक कागज़ पर लिख रखा था (मईया अपने लाला से नाराज ना हुआ करो) ये ही वो लिफाफा है!

               भाव बिना बाज़ार में 
               वस्तु मिले न मोल,
               तो भाव बिना "हरी " कैसे मिले,
               वो तो है अनमोल!!

          देने के बदले लेना तो एक बीमारी है
             और जो कुछ देकर भी कुछ ना ले
                   वो बांके बिहारी हैँ ।