गौतमी (गोदावरी) नदी का जल सभी मृत लोगों पर छिड़क कर उन्हें जीवित कर दिया- कहानी

   क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता 9837117141

   एक समय की बात है जब गोदावरी नदी के तटपर एक ब्राह्मण रहता था जिसका नाम “श्वेत” था। “श्वेत” भगवान शिव की भक्ति में हमेशा लीन रहता था।  यहां तक कि वे हर व्यक्ति में एवं अतिथि में भी शिव को देखा करता था और सभी का भली-भाँती आदर सत्कार किया करता था तथा खाली समय में शिव भक्ति में लीन रहता था। ऐसा करते-करते एक दिन उसकी आयु पूर्ण हो गयी परन्तु उसे इस बात का तनिक भी पता न चला क्योकि भगवान शिव कि कृपा से उसे न तो कोई रोग था और न कोई शोक। उसका पूरा ध्यान तो केवल भगवान शिव की भक्ति में ही लगा रहता था। 
 


ऐसे में जैसे ही उसकी आयु पूरी हुई तो यमदूत उसके प्राण हरने के लिए आए परन्तु वे श्वेत के घर में प्रवेश न कर सके। ऐसे में जब चित्रगुप्त ने मृत्युदेव से पूछा की श्वेत अभी तक यहां पहुंचा क्यों नहीं? और न ही तुम्हारे दूत यहां अभी तक आए। ऐसा सुनकर मृत्युदेव को श्वेत पर अत्यंत क्रोध आया और वे उसे लेने के लिए स्वयं दौड़ गए। जब मृत्युदेव श्वेत के घर के सामने पहुंचे तब उन्होंने देखा कि उसके दूत उसके घर के बाहर खड़े है और डर के मारे काँप रहें है। मृत्युदेव के पूछने पर दूतों ने बताया कि श्वेत भगवान् शिव द्वारा सुरक्षित है, और उसके घर में घुसना तो दूर कि बात है बल्कि हम तो उसको देख भी नहीं पा रहें है।
दूतों की बात सुनकर मौत का क्रोध और भी ज्यादा बढ़ गया और वे बिना कुछ सोचे समझे श्वेत के घर में प्रवेश कर गये। ब्राह्मण को तो ये भी नहीं पता था की यहां हो क्या रहा है? मृत्यु देव श्वेत को सामने देख जैसे ही आगे झपटने को किये तभी वहां उपस्थित भैरव बाबा ने उसे वहां से जाने को कहा। पर मृत्यु देव ने भैरव बाबा की न सुनते हुए जैसे ही श्वेत के गले में अपना फंदा डाला वैसे ही भैरव बाबा ने अपने डंडे से उस पर प्रहार कर दिया जिससे मौत की भी मौत हो गयी। ये देख यमदूत भागकर यमराज के पास पहुंचे और उन्हें सारी घटना बताई। जैसे ही यमदेव को ये पता चला की मृत्यु की भी मृत्यु हो गयी है, उन्हें बड़ा क्रोध आया और वे अपने हाथ में यमदण्ड लेकर अपनी सेना के साथ स्वयं ही श्वेत के पास पहुँच गए।

यमदेव ने देखा कि वहां भगवान शिव के पार्षद तो पहले से ही मौजूद है। ऐसे में न यमदेव पीछे हटने को तैयार थे और न ही भगवान् शिव के गण।  इस प्रकार युद्ध के दौरान सेनापति कार्तिकेय के शक्ति-शस्त्र से पूरी सेना सहित यमदेव कि भी मृत्यु हो गयी।

क्या हुआ यमराज की मृत्यु के बाद
यमदेव की मृत्यु का समाचार सुनते ही सूर्यदेव सारे देवताओं के साथ भगवान् ब्रम्हा जी के पास पहुँच गए और उसके बाद ब्रम्हा जी सारे देवताओं के साथ घटना स्थल पर पहुँच गए। फिर सभी देवता भगवान् शिव की स्तुति करने लगे और उनसे कहने लगे कि – हे प्रभु ! यमराज सूर्यदेव के पुत्र है। ये लोकपाल है। इनकी मृत्यु से अव्यवस्था फैल जाएगी कृपया इन्हे जीवित करें। आपसे कि हुई प्रार्थना कभी भी व्यर्थ नहीं होती।
कालों के काल महाकाल ने देवताओं से कहा – ” मै भी व्यवस्था के पक्ष मै हूँ। वेद की एक व्यवस्था है कि जो मेरे अथवा भगवान् विष्णु के भक्त है, उनके स्वामी स्वयं हमलोग ही होते है। मृत्यु का उनपर कोई अधिकार नहीं होता है। बल्कि यमराज के लिए ये व्यवस्था कि गयी है कि वे भक्तों को अनुचरों के साथ प्रणाम करें।
अंत में देवताओं की प्रार्थना करने पर भगवान शिव ने गौतमी (गोदावरी) नदी का जल सभी मृत लोगों पर छिड़क कर उन्हें जीवित कर दिया और वे सब के सब स्वस्थ हो कर उठ खड़े हुए और भगवान् शिव से क्षमा मांगी..!!
हर हर महादेव