ज्योतिषीय गणना के हिसाब से सही नहीं थी 15 तारीख, ऐसे निकाला गया इसका हल, पंडित नेहरू ने अभिजीत मुहूर्त में दिया था आजादी का भाषण

 क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता 9837117141

independence day
आजादी के जश्न के लिए 15 अगस्त की तारीख तय हो गई मगर ज्योतिषियों ने इसका जमकर विरोध किया क्योंकि ज्योतिषीय गणना के अनुसार यह दिन अशुभ और अमंगलकारी था। ऐसे में दूसरी तारीखों का चुनाव किया जाने लगा मगर लॉर्ड माउंटबेटन 15 अगस्त की तारीख को नहीं बदलना चाहते थे।

देश अपना 75वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। ऐसे में हम 15 अगस्त का दिन हर हिंदुस्तानी के लिए गर्व और सम्मान का दिन है, इस दिन हम आजादी का महोत्सव मनाते हैं। लेकिन इस बार आजादी के 75वां साल होने की वजह से आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है। 15 अगस्त, 1947 के दिन भारत को आजादी मिली थी... यह दिन अपने आप में बहुत ज्यादा खास है क्योंकि हजारों लोगों की कुर्बानियों के बाद हमें स्वतंत्रता मिली थी। ऐसे में हम आपको आजादी की उस पावन रात की कुछ रोचक जानकारियां देने वाले हैं।

साल 1945 में दूसरे विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद ब्रिटेन में चुनाव हुए। जहां पर लेबर पार्टी ने जीत हासिल की और अपने चुनावी वादे को भी निभाया। लेबर पार्टी ने कहा था कि अगर उनकी सरकार बनती है तो ब्रितानी उपनिवेशवाद को समाप्त कर दिया जाएगा। जिसका मतलब था भारत सहित कई गुलाम मुल्कों को आजाद कर दिया जाएगा।

इसके लिए फरवरी 1947 में लॉर्ड माउंटबेटन की नियुक्ति हुई लेकिन फिर माउंटबेटन ने जून 1948 में आजादी देने की बात कही। इसके लिए बकायदा एक प्रस्ताव दिया। जिसका जमकर विरोध हुआ। जिसके बाद माउंटबेटन को एक साल पहले 1947 में आजादी देनी पड़ी।


ज्योतिषियों ने 15 तारीख का किया था विरोध

लॉर्ड माउंटबेटन की योजना के तहत 15 अगस्त, 1947 को आजादी का ऐलान करने का दिन तय किया गया क्योंकि इसी दिन 1945 में जापान ने आत्मसमर्पण किया था। लॉर्ड माउंटबेटन ने खुद इसके पीछे का तथ्य भी दिया था कि आखिर उन्होंने 15 अगस्त का दिन ही क्यों चुना था।

आजादी के जश्न के लिए 15 अगस्त की तारीख तय हो गई मगर ज्योतिषियों ने इसका जमकर विरोध किया क्योंकि ज्योतिषीय गणना के अनुसार यह दिन अशुभ और अमंगलकारी था। ऐसे में दूसरी तारीखों का चुनाव किया जाने लगा मगर लॉर्ड माउंटबेटन 15 अगस्त की तारीख को नहीं बदलना चाहते थे।

अभिजीत मुहूर्त में पंडित जी ने दिया था भाषण

ऐसे में ज्योतिषियों ने बीच का रास्ता निकलते हुए 14-15 तारीख की मध्य रात्रि का समय तय किया। क्योंकि अंग्रेजी समयनुसार 12 बजे के बाद अगला दिन लग जाता है। जबकि भारतीय मान्यता के मुताबिक सूर्योदय के बाद अगला दिन माना जाता है। ऐसे में आजादी के जश्न के लिए अभिजीत मुहूर्त को चुना गया जो 11 बजकर 51 मिनट से शुरू होकर 12 बजकर 39 मिनट तक रहने वाला था और इसी बीच पंडित जवाहरलाल नेहरू को अपना भाषण भी समाप्त करना था।

15 अगस्त की आधी रात को पंडित नेहरू ने आजादी का ऐतिहासिक भाषण 'ट्रिस्ट विद डेस्टनी' दिया था। पंडित नेहरू ने यह भाषण वायसराज लॉज जो मौजूदा राष्ट्रपति भवन है वहां से दिया था। उस वक्त पंडित नेहरू प्रधानमंत्री नहीं बने थे। 15 अगस्त के दिन लॉर्ड माउंटबेटन ने अपने ऑफिस में काम किया। दोपहर में पंडित नेहरू ने उन्हें अपने मंत्रिमंडल की सूची सौंपी थी और बाद में इंडिया गेट के पास प्रिसेंज गार्डेन में एक सभा को संबोधित किया था।

महात्मा गांधी ने पंडित जी का भाषण नहीं सुना

जब राजधानी दिल्ली में आजादी का जश्न मनाया जा रहा था उस वक्त महात्मा गांधी दिल्ली से हजारों किमी दूर पश्चिम बंगाल के नोआखली में थे और राज्य में शांति कायम करने का प्रयास कर रहे थे। विशेषज्ञों का मानना है कि पंडित नेहरू के ऐतिहासिक भाषण को पूरे देश ने सुना था मगर गांधी जी नहीं सुन पाए थे।

पंडित नेहरू और सरदार वल्लभभाई पटेल ने महात्मा गांधी को पत्र लिखकर बताया था कि 15 अगस्त को देश का पहला स्वाधीनता दिवस मनाया जाएगा। आप राष्ट्रपिता हैं। इसमें शामिल होकर अपना आशीर्वाद दें। जिसके बाद महात्मा गांधी ने भी जवाब में पत्र लिखते हुए कहा था कि जब बंगाल में हिन्दू-मुस्लिम एक दूसरे की जान ले रहे हैं, ऐसे में मैं जश्न मनाने के लिए कैसे आ सकता हूं। मैं दंगा रोकने के लिए अपनी जान दे दूंगा।

16 अगस्त को लाल किले में फहराया गया था तिरंगा

हर साल प्रधानमंत्री स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले से झंडा फहराते हैं लेकिन 15 अगस्त 1947 के दिन झंडा नहीं फहराया गया था। लोकसभा सचिवालय के एक शोध पत्र के मुताबिक, पंडित नेहरू ने 16 अगस्त 1947 को लाल किले से झंडा फहराया था। इतना ही नहीं 15 अगस्त को भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा रेखा का निर्धारण भी नहीं हुआ था। इसका फैसला 17 अगस्त को रेडक्लिफ लाइन की घोषणा से हुआ था। देश भले ही 1947 में आजाद हो गया हो लेकिन हमारे पास खुद का राष्ट्रगान नहीं था। ऐसे में रवींद्रनाथ टैगोर के 1911 में लिखे गए जन गण मन को 1950 में राष्ट्रगान के रूप में चयनित किया गया।