क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता। 9837117141
(सम्पादकीय)
आतंक के खिलाफ
अल कायदा नेता अयमन अल-जवाहिरी का मारा जाना आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक अभियानों के इतिहास में एक बड़ी कामयाबी के तौर पर जाना जाएगा। दरअसल, किसी अंतरराष्ट्रीय आतंकी गिरोह के शीर्ष नेताओं तक पहुंचना और दूसरे देश की सीमा में उन्हें मार गिराने के अभियान को अपेक्षित अंजाम तक पहुंचाना आसान काम नहीं रहा है। इससे पहले दुनिया भर में अन्य आतंकवादी संगठनों के मामले में भी इस तरह की जटिलताओं का अनुभव मौजूद था, इसलिए जवाहिरी के मामले में हर स्तर पर सावधानी बरतना स्वाभाविक ही था।
अमेरिका में विश्व व्यापार केंद्र पर हमले में हुई तबाही के बाद बीते दो दशकों से दुनिया भर में अल कायदा सहित आतंकी संगठनों की गतिविधियों को जिस रूप में देखा गया है, उसमें जवाहिरी का मारा जाना बेशक एक बेहद अहम कामयाबी है। यह एक जगजाहिर तथ्य है कि अनेक देशों में सख्ती की वजह से ऐसे संगठनों की हरकतों को सीमित किया गया है, मगर आज भी दुनिया अलग-अलग स्तर पर आतंकवाद के कई खतरों का सामना कर रही है।ग्यारह नवंबर, 2001 को हुए उन हमलों की याद आज भी बहुत सारे लोगों की जेहन में ताजा है और यही वजह है कि विश्व में जवाहिरी के मारे जाने को आतंकी हमले के पीड़ितों को न्याय दिलाने की दिशा में एक और कदम के तौर पर देखा जा रहा है। खुद बाइडेन ने भी अपनी प्रतिक्रिया में यह बात कही। दरअसल, जवाहिरी भी विश्व व्यापार केंद्र पर हुए हमले का एक मुख्य आरोपी था और ओसामा बिन लादेन के बाद अल कायदा का दूसरे नंबर का नेता था। स्वाभाविक ही, उसके मारे जाने की घटना को वैश्विक आतंकवाद का पर्याय बन चुके ऐसे संगठनों की गतिविधियों को खत्म करने के लिहाज से एक बड़ी उपलब्धि के तौर पर देखा जा रहा है।
इसमें कोई दो राय नहीं कि अफगानिस्तान में अब तालिबान का शासन है और वहां से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद के बाद यह सवाल उठेगा कि इस हमले के लिए क्या संबंधित देश की सहमति की औपचारिकता हासिल की गई थी। मगर आतंकवाद दुनिया भर के लिए जिस स्वरूप में एक जटिल समस्या बन चुका है, उसमें इस पर काबू पाने और खत्म करने के लिए अगर कोई ठोस पहलकदमी होती है तो उससे शायद ही किसी देश को असहमति होगी। आज अफगानिस्तान खुद भी आतंकवाद से जूझ रहा है।