क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता। 9837117141
यह सोच तिरंगा फहराना
मनस्थल मात वसुन्धरा के, अलगाव विवर न गहराना।
ठहरो रे हाथ जरा बढ़ते, यह सोच तिरंगा फहराना।।
गन्ध मधुश्री पीतसार से, बन्ध नेह- डोरी लहराना।
ठहरो रे हाथ जरा बढ़ते, यह सोच तिरंगा फहराना।।
विरल सुमन के विजयहार को,
विजत न छल - बल होने देना,
इसकी छाया की धरती पे,
मत शरणागत रोने देना,
करतल नेहिल विश्व बाँध के, कुटिल कौतुकी को हहराना।
ठहरो रे हाथ जरा बढ़ते, यह सोच तिरंगा फहराना।।
दुर्लक्ष्य- दलों का दल दो बल,
कर अन्तस का दुर्भाव दमन,
दुर्जन दस्यू-दल दहल- दहल,
तजदे कलबल हो शमन-शमन,
दुर्जेय दुर्मषित दृष्टिवंते, दुर्देव न दुर्दिन दुलराना।
ठहरो रे हाथ जरा बढ़ते, यह सोच तिरंगा फहराना।।
विजय-उत्सव पर जय-नन्दिनी,
विजर विजय - श्री तभी सजेगी,
अवनी पर विजया भारत की,
विजया - पूर्णी रजत रजेगी,
समत्व नीति शंख कर धारे, विजयक विजई नद घहराना।
ठहरो रे हाथ जरा बढ़ते, .यह सोच तिरंगा फहराना।।
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-डा. राजेश रस्तोगी