किसी से न डरने वाले आंदोलनवीर, और अग्निवीरों की भर्ती करने की क्या जरूरत?: हास्य व्यंग्य

  क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता 9837117141

जब इतनी बड़ी संख्या में आंदोलनवीर उपलब्ध हैं तो और अग्निवीरों की भर्ती करने की क्या जरूरत?
देश में कुछ खुशकिस्मत ऐसे भी हैं जिन्हें पनपने, फलने-फूलने के लिए किसी सहारे की जरूरत नहीं। वे पैदायशी निडर होते हैं। कानून की कुल्हाड़ी उनकी जड़ पर जितनी गहरी चोट करती है, उनकी हिम्मत उतनी ही बढ़ती जाती है। पूरा देश मुंह बाए उनकी काली करतूतों को उजागर होते देखकर उम्मीद लगाता है कि अब वे त्राहिमाम की टेर लगाते हुए किसी अंधेरे कोने में मुंह छिपाते नजर आएंगे, लेकिन उनकी प्रतिक्रिया ठीक उलटी होती है। वे शहरों के मुख्य चौराहों पर पालथी मार कर बैठ जाते हैं और झूठी अकड़ की जीती-जागती प्रतिमा बन जाते हैं। वे कभी संसद तो कभी विधानसभा के सामने प्रतिष्ठित महात्मा गांधी की मूर्ति के सामने खड़े होकर बापू को सत्य और अहिंसा के बोझ से झुके देखकर आश्चर्य करते हैं कि वह उनकी तरह निडर क्यों न हुए? फिर उस मूर्ति के सामने संवाददाताओं की भीड़ इकठ्ठा करके वे दहाड़ने लगते हैं-बापू को छोड़ो, हम जैसों को देखो, जो किसी से नहीं डरते।

शास्त्रीय संगीत के बड़े-बड़े गायक तार सप्तक में तान सुनाते हुए जब अपनी आंखें मूंद लेते हैं तो उनके अपने स्वर उनके दिलोदिमाग पर छा जाते हैं। वे स्वरब्रह्म के नाद में लीन हो जाते हैं तो उन्हें और कुछ दिखना बंद हो जाता है। उसी तरह अपनी दहाड़ की अनुगूंज पर रीझे हुए इन जांबाजों को समाचार पत्रों के पहले पृष्ठ पर सुर्खियों के साथ प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी के छापों में मिले करोड़ों रुपये के बंडल और हीरे-मोती जड़े स्वर्णाभूषणों के जखीरों की तस्वीरें दिखनी बंद हो जाती हैं।


समाचार चैनलों द्वारा टीवी स्क्रीन पर दिन-रात दिखाई जा रही महानगरों के सबसे महंगे लक्जरी फ्लैट की दीवारों पर लटके उनके और उनके छोटे-मोटे कारिंदों के नाम की तख्तियां उन्हें चतुर बुनकरों द्वारा बुने जा रहे तथाकथित पारदर्शी वस्त्र की तरह दिखाई नहीं देतीं, भले हर बच्चा चीख कर कह रहा हो कि राजा नंगा है। व्हीलचेयर में बैठकर भी उनके होंठों पर एक ही नारा होता है, 'हम किसी से नहीं डरते।' वे अपने इर्दगिर्द अपने जैसी ही भीड़ इकट्ठी करने में सिद्धहस्त होते हैं।

उनके चेलों और किराये के टट्टुओं की भीड़ भी बेधड़क होती है। वह पुलिस द्वारा खड़ी की गई बैरिकेड पर चढ़ जाती है और उसे तोड़ती है। बसों और रेलगाड़ियों को फूंक डालती है। निजी और सरकारी संपत्तियों को तहस-नहस करने में कोई भेदभाव नहीं बरतती। ‘हम किसी से नहीं डरते’ का मंत्र जपती हुई इस भीड़ को सेना में भर्ती करके चीन के साथ लगने वाली देश की सीमाओं पर भेजा जाता तो शायद डोकलाम और गलवन घाटी में चीनी सैनिक एक-एक कदम फूंककर उठाते। जब इतनी बड़ी संख्या में आंदोलनवीर उपलब्ध हैं तो और अग्निवीरों की भर्ती करने की क्या जरूरत, यह रक्षा मंत्रालय के लिए एक मौजूं सवाल है?

अग्निपथ पर चलने वाले इन साहस के पुतलों के दिल केवल अपनी निजी समृद्धि बढ़ाने के लिए धड़कते हैं। अपने दिल की धड़कन के आगे उन्हें किसी कानून, कोर्ट, कचहरी की पुकार नहीं सुनाई पड़ती। काश इन बेधड़क खिलाड़ियों को कामनवेल्थ खेलों में भाग लेने के लिए भेजा जाता। वहां हर तरह की बाधा दौड़ के ऊपर से ऊंची छलांग मारने के प्रयत्न में वे चोटिल हो जाने पर भी अपनी हार कभी नहीं मानते। ऐसी अद्भुत बहादुरी और मानसिक बल का प्रदर्शन करके वे जाने कितने स्वर्ण पदक लाते। अफसोस कि निजी संपदा के अर्जन में माहिर इन बेधड़क वीरों के दिल कामन वेल्थ अर्थात साझा संपदा के लिए धड़कना नहीं जानते।

ईडी अपनी आवाज को भरसक सुरीली बनाकर उनसे कहता रहता है, 'दिल धड़क-धड़क के कह रहा है आ भी जा, तू मुझसे आंख ना चुरा, तुझे कसम है आ भी जा', लेकिन वे सौ बहाने बनाकर उससे दूरी बनाए रखते हैं। अंततः जब अदालतों के आदेश के सहारे ईडी उन्हें अपने आगोश में बांध पाती है तो उसके नागपाश में बंधे-बंधे भी उनके होंठों से बस एक ही बात निकलती है कि वे बेधड़क हैं। वे किसी से डरते नहीं, क्योंकि जो डर गया सो मर गया।