भ्रष्टाचार पर राजनीति से कमजोर होता लोकतंत्र

 क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता 9837117141

Aam Aadmi Party

नई आबकारी नीति बनाने और शराब की दुकानों के लाइसेंस देने में अनियमितता के आरोप में जब केंद्रीय जांच ब्यूरो यानी सीबीआइ ने दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को पूछताछ के लिए तलब किया तो आम आदमी पार्टी के नेता और कार्यकर्ता सड़कों पर उतर आए।


पिछले सालों में शीर्ष मंत्रियों, सांसदों, विधायकों एवं राजनैतिक दलों के शीर्ष नेताओं पर भ्रष्टाचार के मामलों में जांच एंजेन्सियों की कार्रवाई की साहसिक परम्परा का सूत्रपात हुआ है, तभी से इस तरह की कार्रवाईयां में राजनीतिक दलों को अपना जनाधार बढ़ाने की जमीन नजर आने लगी है। इन शर्मनाक, अनैतिकता, भ्रष्टाचार एवं लोकतांत्रिक मूल्यों के हनन की घटनाओं में शामिल राजनीतिक अपराधियों को भरतसिंह से उपमित करना राजनीतिक गिरावट की चरम पराकाष्ठा है। अपने नेताओं के काले कारनामों पर परदा डालने के लिये राजनीतिक दलों के तथाकथित कार्यकर्ता प्रदर्शन करते हुए सड़कों पर उतर आते हैं जो आम जनता के लिये परेशानी का सबब बनते हैं। यह कैसा राजनीति चरित्र गढ़ा जा रहा है? यह कैसी शासन-व्यवस्थाएं बन रही है?

नई आबकारी नीति बनाने और शराब की दुकानों के लाइसेंस देने में अनियमितता के आरोप में जब केंद्रीय जांच ब्यूरो यानी सीबीआइ ने दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को पूछताछ के लिए तलब किया तो आम आदमी पार्टी के नेता और कार्यकर्ता सड़कों पर उतर आए। इससे पहले जब नेशनल हेराल्ड मामले में सोनिया गांधी और राहुल गांधी से पूछताछ हो रही थी, तब कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने उसे केंद्र के इशारे पर कार्रवाई करार देते हुए दिल्ली की सड़कों पर प्रदर्शन किया था। उसके चलते कई दिन तक दिल्ली पुलिस और उन रास्तों से गुजरने वालों को परेशानियों का सामना करना पड़ा था। पश्चिमी बंगाल में चिटफंड के आरोपी सांसद-मंत्रियों की सीबीआई धरपकड़ को लेकर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हाय-तौबा मचाया, तृणमूल कार्यकर्ताओं ने हिंसा एवं प्रदर्शन किये। 

सच जब अच्छे काम के साथ बाहर आता है तब गूंगा होता है और बुरे काम के साथ बाहर आता है तब वह चीखता है। यह चीखना-चिलाना, नारेबाजी, सड़कों पर प्रदर्शन, मार्ग अवरूद्ध करना, काले कारनामों को ढकने के लिये आरोप-प्रत्यारोप करने से सच छूप नहीं जाता। उपराज्यपाल ने आबकारी मामले में जांच के आदेश दिए, तभी से आम आदमी पार्टी के नेता इसे भाजपा की बदले की कार्रवाई बताते रहे हैं। वे दावा करते रहे हैं कि सीबीआइ के छापों में मनीष सिसोदिया के घर और उनके गांव में कुछ भी नहीं मिला। अब वह किन्हीं अपरिचित लोगों के यहां छापे मार कर उन्हें मनीष सिसोदिया के करीबी बता कर बेवजह परेशान करने की कोशिश कर रही है। प्रश्न है कि जब सिसोदिया निर्दोष है तो सच का सामना करने से भाग क्यों रहे हैं? यह कितना अजीब है कि कोई जनप्रतिनिधि अपने ऊपर लगे भ्रष्टाचार के आरोप को इस तरह महिमामंडित करे। अगर वे सचमुच पाक-साफ हैं और सीबीआइ को उनके घर से कुछ नहीं मिला है, तो फिर डर किस बात का। उन्हें जनता के सामने खुद को साफ-सुथरा, ईमानदार साबित करने के बजाय सीबीआइ का सामना करने की कोशिश करनी चाहिए। आम आदमी पार्टी खुद दो राज्यों में सत्ता में है, उस पर भी विपक्षी दल इसी तरह के पक्षपातपूर्ण व्यवहार के आरोप लगाते हैं। लोकतंत्र में राजनीति करने का हक सबको है, मगर उसकी प्रक्रियाओं को अपने ढंग से तोड़-मरोड़ कर अपने पक्ष में करने का हक किसी को नहीं है।

आजकल राष्ट्र में थोड़े-थोड़े अन्तराल के बाद ऐसे-ऐसे घोटाले, काण्ड या भ्रष्टाचार के किस्से उद्घाटित हो रहे हैं कि अन्य सारे समाचार दूसरे नम्बर पर आ जाते हैं। पुरानी कहावत तो यह है कि ”सच जब तक जूतियां पहनता है, झूठ पूरे नगर का चक्कर लगा आता है।“ इसलिए शीघ्र चर्चित प्रसंगों को कई बार इस आधार पर गलत होने का अनुमान लगा लिया जाता है। पर यहां तो सभी कुछ सच है। घोटाले झूठे नहीं होते। हां, दोषी कौन है और उसका आकार-प्रकार कितना है, यह शीघ्र मालूम नहीं होता। इसलिये सच को सामने लाने में राजनेताओं को जांच एजेसियों का साथ एवं सहयोग देना चाहिए। विपक्षी दलों के इस आरोप में कोई दम नहीं है कि केंद्र सरकार जांच एजेंसियों का दुरुपयोग अपने विरोधियों को सबक सिखाने के लिए कर रही है। मगर पहले की सरकारों पर भी यही आरोप लगते रहे हैं। यूपीए सरकार के समय तो सर्वाेच्च न्यायालय ने सीबीआइ को पिंजरे का तोता तक कह दिया था। मगर इस तरह किसी भी राजनीति दल को सड़क पर समांतर अदालत लगाने का अधिकार कैसे दिया जा सकता है? अनेक सफेद चमकते चेहरों पर जब कालिख लगती है तो छटपटाहट होना स्वाभाविक है।  

पहले भी आर्थिक घोटालों व राजनैतिक नेताओं के भ्रष्टाचार में लिप्त होने की कई घटनाएं हुईं। कई नेताओं पर आरोप लगे व त्याग-पत्र दिए। लेकिन अब तो इनकी चमड़ी इतनी मोटी हो गयी कि न उन्हें शर्म आती, न पश्चाताप होता, बल्कि वे इन कानूनी कार्रवाईयों को राजनीतिक जमीन मजबूत बनाने का हथियार तक बना लेते हैं। यह राष्ट्रीय लज्जा का ऊंचा कुतुबमीनार बनता जा रहा है। दिल्ली की आबकारी नीति काली ही नहीं, बल्कि काजल की कोठरी साबित हुई। यह देश की लोकतांत्रिक जीवन के लिए एक गंभीर खतरा है। आरोप सिद्ध होंगे या नहीं, यह बात कानून की दृष्टि से महत्त्व रख सकती है पर नैतिकता इससे भी बड़ा शब्द है। इसमें सबूतों, गवाहों की जरूरत नहीं होती, वहां केवल निजत्व है/अन्तरात्मा है। ”सब चोर हैं“ के राष्ट्रीय मूड में असली पराजित न सिसोदिया हैं, न राहुल गांधी हैं और न सोनिया हैं बल्कि मतदाता नागरिक हैं। अगर यह सब आग इसलिए लगाई गई कि इससे राजनीति की रोटियां सेकी जा सकें तो वे शायद नहीं जानते कि  रोटियां सेकना जनता भी जानती है। आग लगाने वाले यह नहीं जानते की इससे क्या-क्या जलेगा? फायर ब्रिगेड भी बचेगी या नहीं?

राजनीतिज्ञ आज आवश्यक बुराई हो गये हैं। इन्दिरा गांधी के उस दृढ़ कथन को कि भ्रष्टाचार विश्व जीवनशैली का अंग बन गया है, को दफना देना चाहिए। यह सच है कि आज हमारे अधिकांश कर्णधार सोये हुए हैं, पर सौभाग्य है कि एक-दो सजग भी हैं। न्यायालयों की भूमिका को जनता की सराहना मिली है। पिछले कई महीनों से सीबीआई एवं अन्य जांच एजेन्सियों की अनेक कार्रवाइयों को हम देख रहे हैं। न्यायालय शासकों एवं अधिकारियों पर अंकुश का काम कर रहा है। नागरिकों का जागृत व चौकन्ना रहना सबसे प्रभावी अंकुश होता है।

आजादी के अमृत महोत्सव मना चुके राष्ट्र की जांच समितियों की धीमी जांच के लिए कई अंगुलियां उठीं और तीखी आलोचनाएँ हुईं। लेकिन अब वे तीव्र गति से काम कर रही है तो भी उन्हें आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है। फिर भी उन्हें एक नया भारत, सशक्त भारत, ईमानदार भारत बनाने के लिये तीव्र गति, निष्पक्षता से एवं समानता की संवैधानिक अवधारणा को ध्यान में रखकर काम करना चाहिए। ‘न्याय होना चाहिए, चाहे आकाश ही क्यों न गिर पड़े।’ एवं ‘सच सामने आना ही चाहिए, चाहे जमीन ही क्यों न फट जाये।’ सीबीआई को अपनी जांच में सिसोदिया से पूछताछ का आधार हाथ लगा होगा, तभी उसने नोटिस भेजा। हो सकता है, सीबीआई का वह आधार गलत हो, मगर उसे साबित करने के लिए उसके सवालों का सामना तो करना पड़ेगा। यह सब मात्र भ्रष्टाचार ही नहीं, यह राजनीति की पूरी प्रक्रिया का अपराधीकरण है। और हर अपराध अपनी कोई न कोई निशानी छोड़ जाता है। इस प्रक्रिया में कोई-ना-कोई निशानी हाथ लगी है, अन्यथा लोकतांत्रिक प्रणाली में इस तरह एक प्रांत के सत्ताशीर्ष पर बैठे व्यक्ति पर ऐसे आरोप लगाना आग से खेलना है। सच तो यह है कि दुनिया में कोई सिकन्दर नहीं होता,वक्त सिकन्दर होता है। भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड कर सत्ता तक पहुंचने वाली आप पार्टी इतनी जल्दी भ्रष्टाचार के दलदल में धंस गयी कि उसका एक मंत्री जेल में है और दूसरा आरोपों से घिरा है। जब तक दृढ़ इच्छा शक्ति, पारदर्शिता और दलगत भावनाओं से ऊपर उठकर भ्रष्टाचार पर प्रहार नहीं किया जाएगा तब तक विश्व में भारत भ्रष्ट होने की ऐसे ही शर्मिंदगी का सामना करता रहेगा।