क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता। 9837117141
कुछ लोगों को चलती हुई ट्रेन में संडास करना बड़ा जोखिम भरा लगता है। यह गोल्फ के खेल में गेंद को छेद में डालने से भी ज्यादा मुश्किल होता है। यह दुनिया विकल्पों से भरी पड़ी हुई है। यह नहीं तो वह सही। इसी तरह संडासों में भी विकल्प होते हैं– भारतीय शैली और पाश्चात्य शैली। अधिकतर लोग भारतीय शैली में स्वयं को आरामदायक महसूस करते हैं। कम से कम उनको पता होता है कि कहाँ क्या हो रहा है। यहाँ स्पष्टता और पारदर्शिता की अधिक प्राथमिकता होती है। पाश्चात्य शैली वाले संडास किसी सस्पेंस थ्रिलर से कम नहीं होते। उस पर बैठने को तो बैठ जाते हैं, लेकिन अंदर क्या हो रहा है, कुछ पता नहीं चलता। खड़े होकर देखने तक सब रहस्य होता है। इसके फ्लश भी सभी जगह एक जैसे काम नहीं करते। कुछ फ्लश एक झटके में सब साफ कर देते हैं। कुछ कामचोर होते हैं। उसे कितना भी दबाओ एक्वेरियम में मछली की तरह घूमायेंगे लेकिन सफाई नहीं करेंगे।
आप कितना कमाते हैं, क्या खाते हैं यह महत्वपूर्ण नहीं है। आपका पेट आपका कितना साथ देता है यह सबसे महत्वपूर्ण है। एक मायने में आपके खाने का डायट चार्ट संडास ही तय करता है। यदि खुलकर संडास हुआ तो समझो दबाकर बिरयानी खा सकते हैं। यदि संडास हल्का-फुल्का हुआ तो दिन सलाद से गुजारना पड़ता है। यदि अंबुजा सिमेंट की तरह एकदम सॉलिड हुआ तब तो लिक्विड डायट जैसे जूस-सूप से काम चलाना पड़ता है। घर में बड़े-बूढ़ों को अपने संडास को लेकर बड़ी चिंता रहती है। दुनिया चाहे तीसरे विश्व युद्ध की तैयारी में ही क्यों न हो उन्हें अपने संडास के सिवाय किसी और की चिंता नहीं रहती। इस चक्कर में वे कई डॉक्टरों से मिलते भी हैं। डॉक्टरों के सवाल और बड़े-बूढ़ों के जवाब हालत खराब करने वाले होते हैं। यदि संडास पूरी फिल्म है तो कार्बन डाइ आक्साइड ट्रेलर की तरह होता है। बड़े-बूढ़े संडास से पहले और बाद में छोड़े गए कार्बन डाइ आक्साइड के बारे में ब्रह्मज्ञान देते है। वे कहते हैं कि सस्वरवाचक कार्बन डाइ आक्साइ छोडऩे वाला निडर और मौनवाचक कार्बन डाइ आक्साइड छोड़ने वाला डरपोक होता है। दुनिया का सबसे सुखी आदमी वही है जो निश्चिंत होकर संडास जाता है। इसलिए आप सभी से निवेदन है कि सोच-समझकर खाइए निश्चिंत होकर संडास जाइए। कारण, जीवन का मतलब खाना और जाना है।