क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता। 9837117141
यूएनएफसीसीसी की 10 में से 8 से ज्यादा पक्षों के पास एडाप्टेशन योजना उपाय मौजूद हैं।
एडाप्टेशन की अनुमानित लागत विकासशील देशों को अंतर्राष्ट्रीय ऐडाप्टेशन मदद के तौर पर दी जा रही धनराशि से पांच से 10 गुना ज्यादा है।
एडाप्टेशन के लिये अभूतपूर्व राजनीतिक इच्छाशक्ति और दीर्घकालिक निवेश करने की तुरंत आवश्यकता
यूनाइटेड नेशंस एनवॉयरमेंट प्रोग्राम (यूएनईपी) की रिपोर्ट के मुताबिक जिस तरह जलवायु परिवर्तन के प्रभाव पूरी दुनिया को अपनी गिरफ्त में लेते जा रहे हैं, उसके मद्देनजर देशों को जोखिम से घिरे मुल्कों और समुदायों की मदद के लिये तैयार किये गये क्रियाकलापों पर अपने वित्तपोषण और क्रियान्वयन में व्यापक बढ़ोत्तरी करनी ही होगी।
मिस्र के शर्म-अल-शेख में आयोजित होने जा रही सीओपी27 शिखर बैठक से पहले जारी हुई ‘द एडाप्टेशन गैप रिपोर्ट 2022 : टू लिटिल, टू स्लो- क्लाइमेट एडाप्टेशन फेलियर पुट्स वर्ल्ड एट रिस्क’, में कहा गया है कि वैश्विक स्तर पर एडाप्टेशन योजना, वित्तपोषण और क्रियान्वयन का काम उस रफ्तार से नहीं हो रहा है जितनी गति से जलवायु परिवर्तन के जोखिम विकराल रूप लेते जा रहे हैं।
अनुकूलन की दिशा में प्रगति धीमी और बिखरी हुई
रिपोर्ट में पाया गया है कि 10 में से 8 से ज्यादा देशों के पास कम से कम एक राष्ट्रीय अनुकूलन योजना उपकरण मौजूद है और वह देश ज्यादा बेहतर और अधिक समावेशी बन रहे हैं। यूएन फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (यूएनएफसीसीसी) में पार्टीज के तौर पर शामिल 197 देशों में से एक तिहाई ने एडाप्टेशन के लिए प्रमाणित और समयबद्ध लक्ष्य निर्धारित किए हैं। इस बीच विश्लेषित करीब 90% योजना उपकरण लैंगिक और वंचित समूह जैसे कि देशज लोगों के बारे में सोच को जाहिर करते हैं।
हालांकि इन योजनाओं को अमल में लाने के लिए वित्तपोषण का काम नहीं किया जा रहा है। अंतर्राष्ट्रीय एडाप्टेशन के लिए विकासशील देशों को दी जाने वाली धनराशि अनुमानित आवश्यकता के मुकाबले 5 से 10 गुना कम है और यह अंतर लगातार बढ़ता ही जा रहा है। दानदाता देशों की रिपोर्ट के मुताबिक विकासशील देशों को दिए जाने वाले अंतरराष्ट्रीय अनुकूलन वित्त का प्रवाह वर्ष 2020 में 29 बिलियन था। यह वर्ष 2019 के मुकाबले 4% अधिक था।
वर्ष 2020 में एडाप्टेशन और मिटीगेशन के लिए धन का प्रवाह विकासशील देशों को 100 बिलियन डॉलर उपलब्ध कराने के वादे से कम से कम 17 बिलियन डॉलर कम रह गया। अगर वर्ष 2025 तक 2019 के जलवायु वित्त को दोगुना करना है तो इसमें उल्लेखनीय तेजी लाने की जरूरत होगी, जैसा कि ग्लास्गो क्लाइमेट पैक्ट में भी कहा गया है।
एक अनुमान के मुताबिक सालाना एडाप्टेशन के लिए वर्ष 2030 तक 160 से 340 बिलियन डॉलर और 2050 तक 315 से 565 बिलियन डॉलर की जरूरत होगी।
कृषि जल पारिस्थितिकी और क्रॉस-कटिंग क्षेत्रों में अनुकूलन संबंधी कार्यवाही को लागू किए जाने का काम तेजी से हो रहा है, मगर इसकी रफ्तार जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों के मुकाबले कम है। इस दिशा में अधिक तेजी से कदम नहीं बढ़ाए गए तो इससे जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरों से मुकाबला नहीं किया जा सकेगा।
यूएनईपी के अधिशासी निदेशक इंगर एंडरसन ने “जलवायु परिवर्तन इंसानियत पर लगातार चोट पर चोट करता जा रहा है। जैसा कि हमने पूरे 2022 के दौरान देखा है। बाढ़ का कहर सबसे ज्यादा रहा, जिसने पाकिस्तान के ज्यादातर हिस्से को डुबो दिया। जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को सीमित करने के लिये दुनिया को ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में फौरन कटौती करनी होगी। मगर साथ ही साथ हमें उन प्रभावों के प्रति अनुकूलन के प्रयासों में तत्काल बढ़ोत्तरी करनी होगी जो पहले से ही मौजूद हैं या फिर आने वाले हैं।’’
“देशों को एडाप्टेशन पर निवेश और नतीजों को बढ़ाने के लिये मजबूत कदम उठाकर ग्लासगो क्लाइमेट पैक्ट में कही गयी दृढ़तापूर्ण बातों का समर्थन करने की जरूरत है।”
बढ़ रहे हैं जलवायु परिवर्तन के जोखिम
हॉर्न ऑफ अफ्रीका में परत दर परत सूखा, दक्षिण एशिया में अभूतपूर्व बाढ़ और उत्तरी गोलार्द्ध में भीषण ताप लहर जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरों की तरफ इशारा कर रहे हैं। यह दुष्परिणाम पूर्व औद्योगिक तापमान के मुकाबले वैश्विक तापमान में मात्र 1.1 डिग्री सेल्सियस ही की वृद्धि के चलते पैदा हो रहे हैं।
यूएनईपी की एमिशंस गैप रिपोर्ट में इस सदी के अंत तक ग्लोबल वार्मिंग में 2.4 से 2.6 डिग्री सेल्सियस तक की वृद्धि होने की बात कही गई है। यह रिपोर्ट 'एडेप्टेशन गैप रिपोर्ट- नेशनली डिटरमाइंड कंट्रीब्यूशंस अंडर द पेरिस एग्रीमेंट' का सहयोगी प्रकाशन है। इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज के शोध से पता चलता है कि 1 डिग्री के हर दसवें हिस्से की बढ़ोत्तरी के साथ जलवायु परिवर्तन के जोखिम और भी तीव्र होते जाएंगे।
रिपोर्ट के मुताबिक ऐसे हालात का मतलब है कि जलवायु परिवर्तन के प्रति वैश्विक प्रतिक्रिया में शमन के साथ-साथ अनुकूलन को भी कार्यवाही के केंद्र में लाना होगा क्योंकि एडाप्टेशन में महत्वाकांक्षी निवेश भी जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को पूरी तरह से नहीं रोक सकता लिहाजा उनसे होने वाले नुकसान का समाधान भी किया जाना चाहिए।
एक संयुक्त रवैया
रिपोर्ट में पाया गया है कि एडाप्टेशन और मिटिगेशन संबंधी कार्रवाइयों जैसे कि प्रकृति आधारित समाधान को योजना विधि तथा क्रियान्वयन की शुरुआत से जोड़ने पर सह-लाभों में वृद्धि की जा सकती है। इससे संभावित परस्पर विरोधी स्थितियों को भी सीमित किया जा सकता है जैसे कि पनबिजली से खाद्य सुरक्षा में कटौती होना या सिंचाई से ऊर्जा का खर्च बढ़ना।
रिपोर्ट के लेखक इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि अनुकूलन संबंधी निवेशों और परिणामों को बढ़ाने के लिए मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत है। यूक्रेन में हो रहा युद्ध और कोविड-19 महामारी जैसे संकटों के चलते अनुकूलन बढ़ाने के अंतरराष्ट्रीय प्रयासों को पटरी से नहीं उतरने देना चाहिए। अनुकूलन के इस अंतर को और चौड़ा होने से रोकने के लिए अभूतपूर्व राजनीतिक इच्छाशक्ति और अनुकूलन में अधिक दीर्घकालिक निवेश की फौरी जरूरत है।
संपादकों के लिए नोट-
यूनाइटेड नेशंस एनवायरमेंट प्रोग्राम (यूएनईपी) के बारे में
यूएनईपी पर्यावरण को लेकर एक अग्रणी वैश्विक आवाज है। यह राष्ट्रों तथा लोगों को आने वाली पीढ़ियों के हितों से समझौता किए बगैर अपने जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिए प्रेरित, सूचित तथा सक्षम बनाकर पर्यावरण का ख्याल करने के लिए नेतृत्व प्रदान करने के साथ साथ साझीदारियों को भी बढ़ावा देता है।