चुनाव और चुनौतियां(सम्पादकीय)

   क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता 9837117141

(सम्पादकीय)

चुनाव और चुनौतियां

एक नगर निगम और दो विधानसभा चुनावों के नतीजों पर सबकी नजर लगी हुई थी। तीनों जगह सत्ताधारी भाजपा की साख दांव पर थी। सबसे अधिक दिलचस्पी गुजरात विधानसभा चुनाव को लेकर बनी हुई थी। माना जा रहा था कि वहां सत्ताविरोधी लहर है और भाजपा को काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है। सदा से वहां कांग्रेस और भाजपा के बीच टक्कर होती आई है, मगर इस बार एक तीसरी पार्टी पूरे जोशो-खरोश के साथ मैदान में उतरी थी और उसका दावा था कि वह वहां सरकार बनाएगी

चुनाव और चुनौतियां
Election 2022: हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव परिणाम 2022: शिमला के ऐतिहासिक रिज मैदान में नतीजों का इंतजार करते पार्टी समर्थक (Photo: PTI)

आम आदमी पार्टी वहां सबसे पहले चुनाव प्रचार में जुट गई थी और लोगों का शुरुआती रुझान उसकी तरफ दिख भी रहा था। फिर यह भी आंकड़ा बार-बार दोहराया जा रहा था कि पिछले तीन विधानसभा चुनावों से वहां भाजपा की सीटों में कमी और कांग्रेस की सीटों में बढ़ोतरी दर्ज हो रही है। इसलिए इस बार नतीजे भाजपा के खिलाफ जाने के कयास लगाए जा रहे थे। मगर भाजपा ने इस चुनाव में सारे कयासों को पटखनी देते हुए अभूतपूर्व विजय हासिल की है। विश्लेषक इसके पीछे जो भी कारण मानते हों, पर हकीकत यह है कि भाजपा ने न सिर्फ डेढ़ सौ से ऊपर सीटें अपने कब्जे में की है, बल्कि इसमें पहले की तुलना में उसका मत प्रतिशत भी बढ़ा है। जाहिर है कि वहां भाजपा पर लोगों का भरोसा कमजोर नहीं हुआ है।

हिमाचल प्रदेश में भाजपा को जरूर कुछ अधिक संघर्ष करना पड़ा, मगर वहां उसे शिकस्त इसलिए नहीं खानी पड़ी कि कांग्रेस ने उससे बेहतर प्रदर्शन किया या उसके पास बेहतर चुनावी मुद्दे थे। बल्कि इसलिए संघर्ष करना पड़ा कि भाजपा ने वहां शुरू से ही अपनी रणनीति अच्छी तरह नहीं बनाई थी। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के कामकाज से लोग संतुष्ट नहीं थे, मगर केंद्रीय नेतृत्व ने उनकी जगह किसी और को कमान सौंपने के बजाय उन्हें कार्यकाल पूरा करने दिया, जबकि गुजरात में पूरा मंत्रिमंडल ही बदल दिया था।

फिर टिकट बंटवारे के समय प्रत्याशियों के चुनाव में ठीक से समीकरण तय नहीं किया गया। कई कद्दावर नेताओं के टिकट काट दिए गए, जिससे नाराज होकर वे बागी हो गए। वे निर्दलीय मौदान में उतरे और भाजपा का नुकसान कर गए। जिन सीटों पर भाजपा को हार का सामना करना पड़ा है, उसमें मतों का अंतर बहुत कम है। इससे भाजपा दावा कर सकती है कि हिमाचल में भी उसका जनाधार कमजोर नहीं हुआ है। मगर जनतंत्र संख्याओं का खेल है और इस खेल में कांग्रेस विजयी हुई है।

दिल्ली में कहने को नगर निगम का चुनाव था, मगर वह भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच इस कदर मूंछ की लड़ाई बन चुका था कि पूरे देश की उसमें दिलचस्पी बनी हुई थी। आखिर आम आदमी पार्टी ने उसमें बहुमत हासिल कर लिया। मगर भाजपा का प्रदर्शन भी निराशाजनक नहीं कहा जा सकता। सौ से ऊपर सीटें आईं। जिन सीटों पर उसे हार मिली उन पर मतों का अंतर बहुत कम देखा गया।

मगर इन तीनों चुनावों में जिस तरह भाजपा को मेहनत करनी पड़ी, उससे स्पष्ट हो गया कि ये चुनाव उसके लिए आसान नहीं थे। जबकि हर जगह मुख्य प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस बहुत ढीले-ढाले ढंग से मैदान में उतरी थी। उत्तर प्रदेश की एक लोकसभा और विभिन्न राज्यों की विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनावों में भी भाजपा को ज्यादातर जगहों पर पटखनी मिली। इसलिए ये चुनाव एक तरह से भाजपा के लिए संकेत हैं कि उसका पहले वाला जादू बरकरार नहीं रह गया है।