हादसों का दायरा(सम्पादकीय)

 क्लू टाइम्स, सुरेन्द्र कुमार गुप्ता 9837117141

(सम्पादकीय)


हादसों का दायरा

अमूमन हर क्षेत्र में बढ़ती जागरूकता, संसाधनों और सुविधाओं के विस्तार के दौर में उम्मीद यही बंधती है कि रोजमर्रा की गतिविधियों में चूक और लापरवाही में कमी आएगी और हादसों में जानमाल के नुकसान से बचा जा सकेगा। विडंबना यह है कि सुविधाओं के साथ कई लोग इसके उपयोग को लेकर सावधानी और सजगता का खयाल नहीं रख पाते, जिसकी वजह से लोगों की नाहक ही जान चली जाती है।

हादसों का दायरा


महाराष्ट्र के नासिक में शुक्रवार की सुबह एक तेज रफ्तार बस और ट्रक की टक्कर में कम से कम दस लोगों की जान चली गई और बीस से ज्यादा लोग घायल हो गए। निश्चित रूप से यह आए दिन होने वाली सड़क दुर्घटनाओं की ही अगली कड़ी है, लेकिन ऐसी हर घटना यही बताती है कि किसी मामूली-सी चूक या लापरवाही की वजह से वाहनों में सवार वैसे लोगों की जान चली जाती है, जो अपने गंतव्य तक पहुंचने के लिए घर से निकले होते हैं। नासिक में हुए हादसे में खबरों के मुताबिक बस की रफ्तार काफी तेज थी। यानी केवल रफ्तार को काबू में रख कर बस का चालक सभी यात्रियों को सुरक्षित अपने घर या उनकी जरूरत की जगह पर पहुंचा सकता था।


एक रिवायत की तरह अब सरकार की ओर से दुर्घटना के कारणों की जांच कराने और पीड़ितों या हताहतों को राहत पहुंचाने के मकसद से मुआवजा देने घोषित की गई है। लेकिन सच यह है कि ऐसे हर मौके पर औपचारिक घोषणाओं में तात्कालिक मदद से आगे इस तरह की समस्या का कोई दीर्घकालिक समाधान नहीं निकलता। महाराष्ट्र में नासिक-औरंगाबाद राजमार्ग पर हुए ताजा हादसे के बाद यह जरूर कहा गया है कि अधिकारी शहर और जिले में दुर्घटना संभावित क्षेत्रों की पहचान के लिए काम कर रहे हैं।

यह एक विचित्र औपचारिकता है कि सरकार या संबंधित महकमों की नींद तभी खुलती है जब कोई बड़ी घटना हो जाती है और वह आम जनता के बीच चर्चा का मुद्दा बन जाती है। वरना क्या वजह है कि उन्नत अभियांत्रिकी के विकास के दौर में राजमार्ग जैसी जगहों पर सड़क बनाते हुए इस पर गौर करना जरूरी नहीं समझा जाता है कि किन-किन खास स्थानों पर और कैसी वजहों से हादसे हो सकते हैं। अगर वक्त पर ऐसी जगहें और वजहें चिह्नित कर ली जाएं, तो शायद बहुत सारे हादसे रोके जा सकते हैं और लोगों की जिंदगी बचाई जा सकती है।

अफसोस की बात यह है कि हमारे यहां किसी विपदा की आशंका और उसके पूर्व आकलन को बहुत जरूरी नहीं समझा जाता है। यह बेवजह नहीं है कि आम लोग किसी हादसे का शिकार होने से पहले तक उससे बचाव के उपायों पर ध्यान नहीं देते हैं। जबकि आधुनिक तकनीकी और संसाधनों का एक पहलू यह भी है कि ये जिस हद तक सुविधाजनक हैं, मामूली लापरवाही की स्थिति में उसी अनुपात में जोखिम के वाहक भी हैं। पानीपत में एक दंपती और चार बच्चे सिर्फ इसलिए जिंदा जल कर खाक हो गए कि उनका ध्यान इस पर नहीं गया कि उनके घर में गैस लीक होकर भर गया है।

यह घटना गैस सिलेंडर में आई खराबी या फिर चूक की वजह से लीक होने से भी हुई हो सकती है, लेकिन अगर सिर्फ इस ओर किसी का ध्यान चला गया होता तो सबकी जान बच सकती थी। त्रासदी यह है कि हर साल सड़क और अन्य हादसों के सिलसिले बदस्तूर कायम हैं, जिनमें हजारों वैसे लोगों की जान चली जाती है, जिन्हें मामूली सावधानी बरत कर बचाया जा सकता था। मगर एक घटना से सबक लेकर अगली बार ऐसा होने से रोकने को लेकर कोई ठोस उपाय नहीं निकल पा रहा